रामगढ़ महोत्सव-2019 : दो दिवसीय आयोजन 17 एवं 18 जून को 

रामगढ़ महोत्सव-2019 : दो दिवसीय आयोजन 17 एवं 18 जून को 

अम्बिकापुर
 सरगुजा जिले के उदयपुर विकासखण्ड मुख्यालय के समीप रामगढ़ के ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व से परिपूर्ण भारत की प्राचीनतम नाटयशाला के रूप में विख्यात महोत्सव स्थल पर प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी ‘आषाढ़ के प्रथम दिवस’ पर रामगढ़ महोत्सव का आयोजन किया जायेगा। 

दो दिवसीय रामगढ़ महोत्सव का आयोजन 17 एवं 18 जून को होगा। महोत्सव के प्रथम दिवस 17 जून को राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी सह कवि सम्मेलन अम्बिकापुर में किया जायेगा। राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में भाग लेने वाले प्रतिभागी शासकीय राजीव गांधी स्नाकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एस.के. त्रिपाठी से 15 जून तक सम्पर्क कर सकते हैं। इसी प्रकार रामगढ़ महोत्सव के दूसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन रामगढ़ में होगा। रामगढ में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने के इच्छुक स्थानीय कलाकार अम्बिकापुर के अनुविभागीय राजस्व अधिकारी श्री अजय त्रिपाठी एवं साक्षर भारत कार्यक्रम के जिला परियोजना अधिकारी श्री गिरीश गुप्ता से सम्पर्क कर सकते है। इसी प्रकार सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के इच्छुक विद्यालय एवं महाविद्यालय के विद्यार्थी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से सम्पर्क कर सकते है।  कलेक्टर डॉ. सारांश मित्तर द्वारा रामगढ़ महोत्सव सफल आयोजन हेतु अधिकारियों एवं कर्मचारियों की ड्यूटी लगा दी गयी है। उन्होंने कर्तव्यस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों निर्देशानुसार अपने दायित्वों का निर्वहन करने के निर्देश दिये हैं।    

पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक गरिमा का प्रतीक: रामगढ़
 यूं तो छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व के अनेक स्थल हैं। सृष्टि निर्माता ने छत्तीसगढ़ को अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजा है। दक्षिण कौशल का यह क्षेत्र रामायणकालीन संस्कृति का परिचायक रहा है। ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व की ऐसी ही एकस्थली रामगढ़ सरगुजा जिले में स्थित है। सरगुजा संभागीय मुख्यालय अम्बिकापुर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर उदयपुर विकासखण्ड मुख्यालय के समीप रामगढ़ की पहाड़ी स्थित है। दूर से इस पहाड़ी का दृश्य बैठे हुए हाथी के सदृश्य प्रतीत होता है। समुद्र तल से इसकी ऊॅचाई लगभग 3 हजार 202 फीट है। 

महाकवि कालिदास की अनुपम कृति ‘‘मेघदूतम’’ की रचनास्थली और विश्व की सर्वाधिक प्राचीनतम् शैल नाट्यशाला के रूप में विख्यात ‘‘रामगढ़’’ पर्वत के साये में इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोए रखने और इसके संवर्धन के लिए प्रतिवर्ष आषाढ़ का पहला दिन यहां रामगढ़ महोत्सव का आयोजन किया जाता रहा है।    

प्राचीनतम नाट्यशाला-    प्राकृतिक आभा से सम्पन्न रामगढ़ पर्वत के निचले शिखर पर स्थित ‘‘सीताबेंगरा’’ और ‘‘जोगीमारा’’ गुफाएं प्राचीनतम शैल नाट्यशाला के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। ये गुफाएं तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्यकाल के समय की मानी जाती हैं। जोगीमारा गुफा में मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में अभिलेख तथा सीताबेंगरा गुफा में गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में अभिलेख है। जोगीमारा गुफा में भारतीय भित्ति चित्रों के सबसे प्राचीन नमूने अंकित हैं। 

भरतमुनि द्वारा प्रतिपादित नाट्यशाला की जो लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊंचाई निर्धारित की गई है, उस पर रामगढ़ की नाट्यशाला लगभग खरी उतरती है। शोधकर्ताओं ने बताया है कि एशिया में ऐसी कोई दूसरी नाट्यशाला नहीं है। इतिहासकार डॉ. राखाल दास बैनर्जी के अनुसार इस नाट्यशाला का निर्माण गंधर्व लोगों ने कराया होगा। श्री मधुसूदन सहाय रूपदक्ष को रंग करने और सुतनुका को नायिका मानकर इसे नाट्यशाला प्रतिपादित करते हैं। नाट्यशाला के ठीक पीछे दो और कमरों का उल्लेख मिलता है।

डॉ. ई. मिडियन प्रिंसिपल इविंग क्रिश्चियन कॉलेज इलाहाबाद मानव संसाधन विभाग के क्षेत्रीय सर्वेक्षण दल के साथ 23 नवम्बर 1957 में सरगुजा आए थे। उन्होंने अपने लेख ’’वण्डर ऑफ सरगुजा’’ में रामगढ़ की नाट्यशाला का उल्लेख किया है।