हरदा: विकास नहीं तो वोट नहीं ! चुनाव बहिष्कार !!
हरदा।
इस हाथ विकास दो, उस हाथ वोट लो। वीर सावरकर वार्ड (पील्याखाल) हरदा के सुविधाओं से वंचित एक बस्ती के बाशिंदे अब पूरी तरह मैदान में जमे नज़र आ रहे हैं। 28 नवम्बर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान से पहले करीब 500 लोगों द्वारा वोट नहीं देने की बात सामने आने पर माहौल गर्मा गया है।
इधर, जिला प्रशासन, नगरपालिका द्वारा जन-जनता की सुनवाई , राजनैतिक दल के कोरे वादे -दावे की न सिर्फ कलई खुल रही बल्कि भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
क्या है समस्याएं -
रेलवे लाइन से कुछ दूरी पर बनी इस बस्ती का मुख्य मार्ग से सीधा संपर्क नहीं है। पासी मोहल्ला के नाम से पहचाने जाने वाली इस बस्ती में संकरी गलियां हैं। नालियां नहीं हैं। पीने का पानी शुद्ध नहीं है। कुएं का पानी पीना जोखिम भरा है। बस्ती से लगा नाला बारिश में जब उफान पर होता है तो बस्ती लाचार हो जाती है। ऐसे हालात में बीमार को चिकित्सालय ले जाना, या चिकित्सक को बस्ती लाना टेढ़ी खीर होता है।
ऐसे हालात में, बस्ती की एक महिला को प्रसव पीड़ा होने पर ट्रेन पटरी पर प्रसव होने की बात बस्ती वालों से बातचीत में मालूम हुई। रास्ता उबड़ खाबड़ होने से बच्चों को स्कूल भेजना भी जोखिम भरा है। इस बस्ती के मृतक का पहले बस्ती के पिछले हिस्से में अस्थायी श्मशान पर दाह संस्कार करते थे। फिलहाल अब उन्हें हरदा मुक्तिधाम जो करीब 3 किमी दूर है, ले जाना पड़ता है। बस्ती में रास्ता न होने से शादी विवाह घर से सम्पन्न नहीं होते। रास्ता न होने से बारात न आती हैं, न जा पाती। बरसात में आने जाने के लिए रेल लाइन का इमरजेंसी में सहारा लेना पड़ता है। हालांकि यहां भी रुकावट है।
बस्ती के एक बाशिंदे ने बताया कि यहां 10-12 पक्के शौचालय हैं। कुछ कच्चे दरवाजा कुंडी वाले। बाकी खुले में शौच जाते हैं।
पीने के पानी के लिए एक कुआं है। जिसका पानी खारा और गन्ध लिए है। कुछेक घर मे नलकूप हैं। 80 प्रतिशत बस्ती कुएं पर निर्भर है। खबर लेखक ने जब कुएं का पानी थोड़ा सा गटका तो बस्ती की पीड़ा समझ मे आ गयी।
पहले ग्राम पंचायत उड़ा में स्थित इस बस्ती को वहां के निवासियों के मुताबिक कुछ सौ वर्षों पहले किन्हीं दानवीर भूमि मालिक ने बस्ती के लिए यह जगह दान दी थी। लेकिन इस जगह पर आज तक पक्का पटटा नहीं हुआ न हीं मालिकाना हक मिला। कुछ माह पहले हरदा के परिसीमन के कारण उड़ा ग्राम पंचायत का यह भाग नपा हरदा के हिस्से में आ गया।
क्या कहना है इनका-
वार्ड के 57 वर्षीय रामाधार कैथवास कहते हैं कि हमें ना तो पट्टे मिला ना मालिकाना हक। बारिश में यहां की दिक्कत हम ही जानते हैं। नेता आते हैं, वादे कर जाते हैं। होता कुछ नहीं। हमने कलेक्टर को भी शिकायत की। पंचायत में भी की। नगरपालिका को भी शिकायत की। हमने कांग्रेस विधायक को भी शिकायत की। हमने भाजपा नेता को भी शिकायत बताई । पर हल कुछ न हुआ। हमने निर्णय लिया कि सभी इस बार मतदान नहीं करेंगे।
उर्मिला बाई कहतीं हैं कि यहां सुविधा के नाम पर क्या है ? यहां रहके देखें सब समझ आएगा। ना सड़क, ना नाली, ना पानी ।बरसात में भारी कीचड़। रास्ते बंद।
बस्ती की अंजली कैथवास ने विकास न होने पर अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि यहां बस्ती के बच्चे किस जुर्म की सज़ा भुगत रहे हैं। उन्होंने भी मतदान के बहिष्कार का संकल्प दोहराया।
इधर, सूत्रों की मानें तो मीडिया के मौके पर पहुंचने के बाद प्रशासन ने वहाँ पहुंचकर समझाइश दी है। बिजली के खम्बे पर उनके द्वारा लटकाए बैनर को निकलवाया गया है।
पील्याखाल निवासियों की दास्तान भी अजीब है। यहां जन्म से लेकर मृत्यु तक संघर्ष ही संघर्ष है। पांच-सात पीढ़ी बिता चुके यहां के परिवार शिकायत करने और हल न निकलने से हलाकान हैं। छोटे बच्चे से लेकर जवान, बुजुर्ग तक को वाकई पता नहीं है कि विकास आखिर किस चिड़िया का नाम है?
याद रहे, आप यदि पील्याखाल की इस बस्ती के दौरे पर हैं तो पीने का पानी साथ लेकर जाएं।