बिना तैयारियों वाला बिहार का स्वास्थ्य विभाग बच्चों की मौत की जिम्मेदारी लेगा?
पटना
बिहार में इन दिनों हाहाकार मचा है. एक तरफ AES यानी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिड्रोम से अभी तक सवा सौ से अधिक बच्चों की मौत हो गई है, तो वहीं दूसरी तरफ आसमान से आग बरसाती गर्मी और लू से भी सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी है. हैरानी की बात तो यह है कि जिस राज्य में हर तरफ मौत बरस रही है, उस राज्य में स्वास्थ्य महकमे के पास इस हालात से निपटने के लिए कोई तैयारी नहीं दिख रही है. हर तरफ अस्पताल में अफरातफरी मची हुई है.
ऐसे में सवाल उठना जायज है कि जो मौतें अब तक हुई, क्या वह वाकई बीमारी से मरे या फिर कुव्यवस्थाओं ने उन्हें मार दिया और इसी कारण वे अभी भी मर रहे हैं? ऐसा तो है नहीं कि दिमागी बुखार, चमकी बुखार और लू जैसे नामों वाली यह आपदा पहली बार और अचानक से बिहार में आई? तो फिर सरकार और स्वास्थ्य विभाग इन सबके लिए तैयार क्यों नहीं था? या फिर लोगों की सेहत खुद स्वास्थ्य विभाग के एजेंडे में ही नहीं है?
बिहार में इस समय लोगों का हर वक्त यह सोचकर दिल दहल रहा है कि आखिर और कितने मासूम बच्चों की मौत को देखना होगा? क्योंकि जिस तरह एक-एक करके यह संख्या बढती जा रही है, वह कहां जाकर रुकेगी. अकेले मुजफ्फरपुर के SKMCH में काल के गाल में समा जाने वाले मासूम बच्चों की संख्या सौ से अधिक पार कर गई है.
पिछले कुछ वर्षों में AES और उससे मरने वाले बच्चों के आंकडों को देखें तो 2012 में 89 बच्चे, 2013 में 35 बच्चे, 2014 में 117 बच्चे, 2015 में 15 बच्चे, 2016 में 6 बच्चे, 2017 में 18 बच्चे और 2018 में 12 बच्चों की मौत हुई.