1 नहीं पूरी 8 हैं लक्ष्मी, इस तरह बनाती हैं धनवान
धर्मग्रंथों में धन समृद्धि की देवी लक्ष्मी को बताया गया है। इन्हें भगवान विष्णु की पत्नी और आदिशक्ति भी कहा गया। धन समृद्धि के लिए लोग इनकी पूजा अर्चना करते हैं लेकिन देवी लक्ष्मी एक नहीं पूरी 8 हैं और यह अलग-अलग माध्यमों से अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं। इसलिए धर्मग्रंथों में अष्ट लक्ष्मी का उल्लेख किया गया है। ये अष्ट लक्ष्मी अपने नाम के अनुसार फल देती हैं इसलिए आपको मनोकामना और सुख-समृद्धि की चाहत के अनुसार ही देवी लक्ष्मी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करनी चाहिए इससे फल की प्राप्ति शीघ्र होती है।
आदिलक्ष्मी पहला स्वरूप
देवी लक्ष्मी का पहला स्वरूप आदिलक्ष्मी का है इन्हें मूललक्ष्मी, आदिशक्ति भी कहा जाता है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार महालक्ष्मी ने ही सृष्टि के आरंभ में त्रिदेवों को प्रकट किया और इन्हीं से महाकाली और महासरस्वती ने आकार लिया। इन्होंने स्वयं जगत के संचालन के लिए भगवान विष्णु के साथ रहना स्वीकार किया। यह देवी जीव-जंतुओं को प्राण प्रदान करती हैं, इनसे जीवन की उत्पत्ति हुई है। इनके भक्त मोह-माया से मुक्ति होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इनकी कृपा से लोक-परलोक में सुख-संपदा प्राप्त होती है।
धनलक्ष्मी देवी दूसरा स्वरूप
देवी लक्ष्मी का दूसरा स्वरूप हैं धनलक्ष्मी। इन्होंने भगवान विष्णु को कुबेर के कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिए यह रूप धारण किया था। इस देवी का संबंध भगवान वेंकटेश है जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। वेंकटेश रूप में भगवान ने देवी पद्मावती से विवाह के लिए कुबेर से कर्ज लिया। इसी कर्ज को चुकाने में भगवान की सहायता के लिए देवी लक्ष्मी धनलक्ष्मी रूप में प्रकट हुईं। इनके पास धन से भरा कलश है और एक हाथ में कमल फूल है। इनकी पूजा और भक्ति आर्थिक परेशानियों और कर्ज से मुक्ति दिलाती है। कर्ज से परेशान लोगों को देवी लक्ष्मी के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।
धान्यलक्ष्मी देवी का तीसरा स्वरूप
धान्य का अर्थ है अन्न संपदा। देवी लक्ष्मी का यह स्वरूप अन्न का भंडार बनाए रखती हैं। इन्हें माता अन्नपूर्णा का स्वरूप भी माना जाता है। यह देवी हर घर में अन्न रूप में विराजमान रहती हैं। इन्हें प्रसन्न करने का एक सरल तरीका है कि घर में अन्न की बर्बादी ना करें। जिन घरों में अन्न का निरादर नहीं होता है उस घर में यह देवी प्रसन्नता पूर्वक रहती हैं और अन्न धन का भंडार बना रहता है।
गजलक्ष्मी देवी का चौथा स्वरूप
देवी लक्ष्मी अपने चौथे स्वरूप में गजलक्ष्मी रूप में पूजी जाती हैं। इस स्वरूप में देवी कमल पुष्प के ऊपर हाथी पर विराजमान हैं और इनके दोनों ओर हाथी सूंड में जल लेकर इनका अभिषेक करते हैं। देवी की चार भुजाएं हैं जिनमें देवी ने कमल का फूल, अमृत कलश, बेल और शंख धारण किया है। देवी गजलक्ष्मी को कृषि और उर्वरता की देवी माना गया है। राज को समृद्धि प्रदान करने वाली देवी होने के कारण इन्हें राजलक्ष्मी भी कहा जाता है। यह संतान सुख भी प्रदान करती हैं। कृषिक्षेत्र से जुड़े लोगों और संतान की इच्छा रखने वालों को देवी के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।
सन्तानलक्ष्मी देवी का पांचवां स्वरूप
माता लक्ष्मी का पांचवां स्वरूप संतान लक्ष्मी का है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार देवी आदिशक्ति का पांचवां स्वरूप स्कंदमाता का है जो अपनी गोद में बालक कुमार स्कंद को बैठाए हुई हैं। माता संतानलक्ष्मी का स्वरूप स्कंदमाता से मिलता-जुलता हुआ है और यह देवी लक्ष्मी का पांचवां स्वरूप हैं इसलिए स्कंदमाता और संतान लक्ष्मी को समान माना गया है। संतान लक्ष्मी माता की चार भुजाएं हैं जिनमें दो भुजाओं में माता ने कलश धारण किया है और नीचे के दोनों हाथों में तलवार और ढ़ाल है। यह देवी भक्तों की रक्षा अपने संतान के समान करती हैं। इनकी पूजा से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। संतान से घर में सुख समृद्धि आती है।
वीरलक्ष्मी मां लक्ष्मी का छठा स्वरूप
अपने नाम के अनुसार यह देवी वीरों और सहसी लोगों की आराध्य हैं। यह युद्ध में विजय दिलाती हैं। इनकी आठ भुजाएं हैं जिनमें देवी ने विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किया हुआ है। माता वीर लक्ष्मी भक्तों की रक्षा करती हैं और अकाल मृत्यु से बचाती हैं। इनकी कृपा से सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इन्हें मां कात्यायिनी का स्वरूप भी माना जाता है जिन्होंने महिषासुर का वध करके भक्तों की रक्षा की।
विजयलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का सातवां स्वरूप
देवी का सातवां स्वरूप विजयलक्ष्मी का है इन्हें जयलक्ष्मी भी कहा जाता है। इस स्वरूप में माता सभी प्रकार की विजय प्रादान करने वाली हैं। अष्टभुजी यह माता भक्तों को अभय प्रदान करती हैं। कोर्ट-कचहरी में जीत का मामला हो या किसी क्षेत्र में आप संकट में फंसे हों तो देवी के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।
विद्यालक्ष्मी देवी लक्ष्मी का आठवां स्वरूप
शिक्षा और ज्ञान से समृद्धि प्रदान करने वाली देवी लक्ष्मी माता का आठवां स्वरूप है। इनका स्वरूप मां दुर्गा से दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी माता से मिलता-जुलता है। इनकी साधना से शिक्षा के क्षेत्र में सफलता और ज्ञान की वृद्धि होती है। इनके साधक अपनी बुद्धि और ज्ञान से प्रसिद्धि पाते हैं।