सामान्य वर्ग के गरीबों को 10% आरक्षण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट, सुनाया फैसला

सामान्य वर्ग के गरीबों को 10% आरक्षण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट, सुनाया फैसला

नई दिल्ली, आर्थिक आाधार पर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण के मामले में सुप्रीमकोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने अपना पफैसला सुना दिया है। आर्थिक आधार पर देश में आरक्षण अब आगे भी जारी रहेगा। चीफ जस्टिय यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच में से तीन जजों ने आरक्षण के पक्ष में अपना फैसला दिया है। जबकि दो जजों ने पर अपनी असहमति जताई है।

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जस्टिस माहेश्वरी ने कहा 103वां संशोधन वैध  
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय बेंच की तरफ से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था पर फैसला सुनाया। पांच जजों में से तीन जजों ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का समर्थन किया है। जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि आर्थिक आरक्षण संविधान के मौलिक ढांचे के खिलाफ नहीं है। 103वां संशोधन वैध है।

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आरक्षण सीमित समय के लिए, लेकिन 75 साल बाद भी यह जारी: जस्टिस बेला त्रिवेदी  
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी इस फैसले पर सहमति जताई है। उन्होंने कहा कि मैं जस्टिस माहेश्वरी के निष्कर्ष से सहमत हूं। एससी/एसटी/ओबीसी को पहले से आरक्षण मिला हुआ है। उसे सामान्य वर्ग के साथ शामिल नहीं किया जा सकता है। संविधान निर्माताओं ने आरक्षण सीमित समय के लिए रखने की बात कही थी लेकिन 75 साल बाद भी यह जारी है।

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50 प्रतिशत से ऊपर आरक्षण गलत: जस्टिस रविन्द्र भट
आर्थिक आधार पर आरक्षण फैसला देते हुए जस्टिस रविन्द्र भट ने असहमति जताई है। रविन्द्र भट ने कहा कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा SC/ST/OBC का है। उनमें बहुत से लोग गरीब हैं। इसलिए, 103वां संशोधन गलत है। जस्टिस एस रविंद्र भट ने 50 प्रतिशत से ऊपर आरक्षण देने को भी गलत माना है।

27 सिंतबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 15(6) और 16(6) रद्द होने चाहिए। जबकि, चीफ जस्टिस ललित ने भी आर्थिक आधार पर आरक्षण का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि मैं जस्टिस रविंद्र भाट के फैसले से सहमत हूं। यानी सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 के बहुमत से EWS आरक्षण को बरकरार रखा है। इस मामले पर कोर्ट ने EWS कोटे की वैधयता को चुनौती देने वाली 30 से ज्यादा याचिकाओं पर सुनवाई के बाद 27 सिंतबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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जानिए क्या है पूरा मामला
ये व्यवस्था 2019 में यानी पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्री सरकार ने लागू की थी और इसके लिए संविधान में 103वां संशोधन किया गया था। 2019 में लागू किए गए ईडब्लूएस कोटा को तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके समेत कई याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान के खिलाफ बताते हुए अदालत में चुनौती दी थी। आखिरकार, 2022 में संविधान पीठ का गठन हुआ और 13 सिंतबर को चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस रवींद्र भट्ट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पादरीवाला की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की। 

याचिकाकर्ताओं की दलील- 50 फीसदी आरक्षण की सीमा का उल्लंघन 
याचिकाकर्ताओं ने दलील है कि आरक्षण का मकसद सामाजिक भेदभाव झेलने वाले वर्ग का उत्थान था, अगर गरीबी आधार तो उसमें एससी-एसटी-ओबीसी को भी जगह मिले। ईडब्लूएस कोटा के खिलाफ दलील देते हुए कहा गया कि ये 50 फीसदी आरक्षण की सीमा का उल्लंघन है।

ईडब्ल्यूएस तबके को समानता का दर्जा दिलाने के लिए ये व्यवस्था जरूरी: सरकार
वहीं, दूसरी तरफ सरकार की ओर से कहा गया कि ईडब्ल्यूएस तबके को समानता का दर्जा दिलाने के लिए ये व्यवस्था जरूरी है। केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि इस व्यवस्था से आरक्षण परा रहे किसी दूसरे वर्ग को नुकसान नहीं है। साथ ही 50 प्रतिशत की जो सीमा कही जा रही है, वो कोई संवैधानक व्यवस्था नहीं है, ये सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से आया है, तो ऐसा नहीं है कि इसके परे जाकर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।

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