मातम में डूबा बरौं गांव, गुरूवार को एक साथ जली तीन चिताएं

मातम में डूबा बरौं गांव, गुरूवार को एक साथ जली तीन चिताएं
rajesh dwivedi सतना। छुई निकालने खदान में घुसे ग्रामीणों की मौत के बाद बरौं गांव में मौत का सन्नाटा पसर गया है। जैसे ही ग्रामीणों के मलवे में दबकर मौत की खबर बरौं गांव पहुंची वैसे ही समूचा गांव मातम में डूब गया और सैकड़ों की तादाद में ग्रामीण घटना स्थल की ओर पहुंच गए। जिन घरों के लोगों ने अपने परिजन गंवाए उनके आंसू अब थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। इस घटना ने जहां बंद खदानों को लेकर बरती जा रही प्रशासनिक गफलत की पोल खोल दी है वहीं वन अमले की लापरवाही भी उजागर कर दी है। हालांकि वन विभाग के अधिकारियों का दावा है कि उन्होंने शिकायत मिलने पर दो-तीन दिन पूर्व ही ग्रामीणों को बंद खदान में न घुसने की चेतावनी दी थी। गुरूवार को जब श्यामलाल, जयकरण व रोहित का एक साथ अंतिम संस्कार किया गया तो समूचा गांव फफक पड़ा । [caption id="attachment_6" align="aligncenter" width="353"] bhavtarini[/caption] काल के गाल से निकला राजकुमार जिस खदान में श्यामलाल, जयकरण व रोहित ने अपने प्राण गंवाए हैं उस खदान में मृतकों के साथ 40 वर्षीय राजकुमार साकेत भी मौजूद था लेकिन वह मौत को छलावा देने में कामयाब रहा। राजकुमार साकेत का पांव मलवे में फंस गया था लेकिन उसने मजबूत इच्छा शक्ति का परिचय देते हुए किसी तरह अपने फ ंसे पांव को निकाला और मौत को धोखा देकर बाहर निकल आया। इस दौरान 60 वर्षीय लक्ष्मण साकेत गुफा के प्रवेश द्वार पर उनका इंतजार कर रहा था। मुखिया विहीन हुआ साकेत परिवार खदान धसने की घटना ने बरौं गांव के एक साकेत परिवार को मुखिया विहीन कर दिया है। बताया गया है कि बरौं गांव निवासी रामसजीवन साकेत के केवल दो पुत्र श्यामलाल व जयकरण थे जो बुधवार की सुबह खदान में घुसे हुए थे। घटना में दोनों की मौत हो गई जिसके बाद साकेत परिवार मुखिया विहीन हो गया। बताया गया कि श्यामलाल साकेत अपने पीछे दो पुत्र व एक पुत्री तथा उसका भाई जयकरण साकेत भी अपने पीछे दो पुत्र व एक पुत्री समेत भरा-पूरा परिवार बिलखता छोड़ गया है, जबकि तीसरे मृतक रोहित साकेत का विवाह गत वर्ष ही हुआ था। सरपंच का दावा, वन विभाग में की थी शिकायत ग्राम पंचायत बरौं के सरपंच वेद प्रकाश मिश्रा का दावा है कि उन्होंने विगत दिवस वन अधिकारियों से अवैध रूप से खदान से छुई निकालने की शिकायत की थी, जिसे विभागीय अधिकारियों ने संजीदगी से नहीं लिया। उधर रेंज के डिप्टी रेंजर सत्य नारायण पाण्डेय ने कहा कि शिकायत मिलने पर ग्रामीणों को खदान न जाने के निर्देश दिए गए थे। मगर ग्रामीण नहीं माने जिसके चलते यह घटना घट गई। अब तक क्या कर रहा था विभाग बताया जाता है कि जिस छुई खदान में तीन ग्रामीणों की समाधि बनी है वह खदान कभी रामचन्द्र बंसल संचालित किया करते थे। जानकारी के मुताबिक यह खदान कागज में 1995 से बंद है लेकिन यहां उत्खनन जारी रहा। जिसे अधिकारी नजरअंदाज करते रहे और छुई व रामरज का उत्खनन यहां होता रहा। दिलचस्प बात यह है कि वन भूमि के कम्पार्टमेंट 886 में लगातार उत्खनन चलता रहा मगर विभाग द्वारा कभी भी छुई या रामरज के मामले में पीओआर नहीं काटा गया। जाहिर है कि खुली खदान को यूं ही छोड़ दिया गया और अवैध रूप से छुई व रामरज ले जाने वालों को छूट दी जाती रही। न तो कभी वीट गार्ड सतीश साकेत ने और न ही डिप्टी रेंजर सत्य नारायण पाण्डेय ने उचित कार्रवाई करने का प्रयास किया। नतीजतन यह खदान तीन ग्रामीणों की मौत का सबब बन गई। उत्खनन क्षेत्र में आपदा से निपटने इंतजाम नहीं झुलना हार के पहाड़ में खदान के मलवे में दबे ग्रामीणों को निकालने के लिए जिस प्रकार से संसाधनों की कमी आड़े आई उससे यह बात भी स्पष्ट हो गई है कि प्रशासन के पास उत्खनन क्षेत्र में आपदा से निपटने के कोई इंतजाम नहीं हैं। बुधवार की सुबह 8 बजे मलवे में फंसे ग्रामीणों की सूचना मिलने पर धारकुण्डी, बिरसिंहपुर समेत विभिन्न थानों का पुलिस बल व वन विभाग के कर्मचारियों के अलावा तहसीलदार मनीष पाण्डेय मौके पर तो पहुंचे लेकिन खदान में फंसे ग्रामीणोंं को निकालने के मसले पर संसाधन हीनता के चलते बगलें झांकते नजर आए। अंतत: कुछ उत्साही युवक आगे आए और ग्रामीणों द्वारा मुहैया कराए गए तगाड़ी, फावड़े लेकर खदान में सुबह 11 बजे घुसे। इन्हीं उत्साही युवकों की चार घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद खदान में फंसे शव निकाले जा सके। तुर्रा की मौतों से भी प्रशासन ने नहीं लिया था सबक ऐसी ही एक खुली खदान में 6 जनवरी 2014 को हुई 9 मौतों के बाद भी जिला प्रशासन सबक नहीं ले सका था। जिसके चलते ऐसी खुली खदानें जिले के कई स्थलों पर मौत को आमंत्रण अभी भी दे रही हैं। उल्लेखनीय है कि जनवरी 2014 में बरौंधा थाना क्षेत्र के तुर्रा गांव में ऐसी ही एक खदान धस गई थी जिसमें तुर्रा गांव निवासी 27 वर्षीय फूलचंद पिता टोली, 20 वर्षीय राजकुमार पिता भूरा, 45 वर्षीय विनोद मवासी पिता मइका मवासी, 30 वर्षीय रामकेश पिता हरीलाल, 30 वर्षीय मुन्नूलाल मवासी पिता राजमणि, 35 वर्षीय ददोला पिता सूरजदीन, 12 वर्षीय राधा पिता भोले, चंदा पिता शारदा प्रसाद के अलावा तागी निवासी 30 वर्षीया कमलेश बाई पत्नी राजललन सिंह व 42 वर्षीय रामरती पत्नी पन्नेलाल खदान में धस कर कालकवलित हो गई थीं। विडम्बना की बात है कि 4 वर्ष पूर्व खदान धसने से हुई 9 मौतों के बाद भी प्रशासन कागज में बंद हो चुकी खदानों को वास्तव में बंद करने की कोई रणनीति नहीं बना सका है।