विकास के बडे सवालों के बीच टिकटों की दावेदारी

विकास के बडे सवालों के बीच टिकटों की दावेदारी
sudeep पन्ना, जनमानस क्या सोचता है? और दलों की गणित क्या कहती है? इस घमासान में...... चुनावी समर एक पर्व अथवा एक त्योहार की तरह मनाया जाना है, इसमें सभी दलों, जातियों, वर्णों तथा विभिन्न संस्कृतियों का समागम होना है। कोई समरसता की दुहाई देता है तो कोई विकास की बात कहता है, कोई धर्म संस्थापना की..कोई एकता की बात कहता है; मगर कहता है कुछ और करता है कुछ यह राजनीति है। इस समर में फिर वही दावे; फिर वही दुहाई और लुभावने आश्वासन किन्तु परदे के पीछे फिर वही अन्जाना सा खेल जोड-तोड का नज़र आता है। विधानसभा क्षेत्रों के विकास की धुरी से परे लोग जोड़-जोड़, खींचा-तानी, आकाओं की चापलूसी, में टिकिट के दावेदार लगे ही हैं साथ ही अपनी दावेदारी के मनगढ़ंत और झूठे कामों के पुलिंदे खोलकर दुकान की तरह विखराए बैठे हैं; आम जनता की आवश्यकता, समस्या इत्यादि से उनका कोई लेना देना आज भी नहीं है, दावेदारों का अपना एजेण्डा अपना ही है। विकास के नाम पर पन्ना को पैरिस बनाए जाने जैसे सब्ज़बाग दिखाए जाने हैं क्षेत्र के विकास के मूल मुद्दों की चर्चा कहीं नज़र नहीं आ रही है सिवाय इसके कि टिकिट कैसे मिले और किला फतह किस जोड़-जोड़ से किया जाए। आज के बदलते परिवेश में जनता जागरूक हो चुकी है; मीड़िया के विभिन्न माध्यमों से लोगों में जागरूकता बढ़ी है, जनता जानती है कि उनकी आजीविका के विकास के आयाम क्या होने चाहिए? विकास नहीं होने की मूल वजह क्या है? और इन बातों का जिम्मेदार कौन है? जनता बड़े विश्वास के साथ दावेदारों में से किसी को जिम्मेदारी सौंपती है; विकास की अपेक्षा रखती है, दावेदारों का सहयोग करने के लिए छोटे-छोटे प्रयास भी करती है मगर पद और प्रतिष्ठा पा जाने के बाद नेता जनता को अनदेखा करती है जिसका खामियाजा शायद इस पर्व में देखने मिलेगा.... ’’कोउ नहीं जनमा अस जग माॅहीं; प्रभुता पाए ताहि मद नाहीं।। जनता अब जागरूक और अनुभवी हो चुकी है।  राजस्व और वन-विभाग की हरी लाईन अथवा जमीन विवाद आज तक समाप्त ना हो पाने के कारण यहाॅ की आजीविका का मूल स्त्रोतों पर गाज गिरी है, जिसके कारण पन्ना जिला पिछड़ता ही चला जा रहा है। विश्वप्रसिद्ध हीरा एवं पत्थर की खदानों पर वन-विभाग की नादिरशाही बता रही है कि वन और राजस्व का सीमांकन सही है ही नहीं जिसका खामियाजा जनता भुगत रही है। जिले का 60 प्रतिशत युवा जिले के बाहर उच्च शिक्षा के लिए पलायन कर चुका है और मजदूरी के लिए भी यहाॅ का आदमी पलायन करता है, जो जिले के लिए शर्मनाक है; जबकि यहाॅ उच्च शिक्षा, स्वास्थ शिक्षा, कृषि शिक्षा, वन्यप्राणी शिक्षा के आयामों को लाने के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं। उपरोक्त बातों की जनता दावेदारों से पूॅंछेगी और उसी के अनुसार इस बार मतदान भी करेगी। समूचा बुल्देलखण्ड पानी के स्त्रोतों एवं बडे-बडे जलाशयों के लिए प्रशिद्ध है किन्तु स्वतंत्रता के बाद इन स्त्रोतों का सिकुडना बता रहा है कि जनप्रतिनिधि संसाधनों और जनता की समस्याओं के प्रति कितने सजग हैं। जनता के जिहन में यही सारी बातें चल रहीं हैं और यही मतदान के समय सामने आएॅगीं; जनता जागरूक है। जिला पन्ना जिसे विश्वप्रसिद्ध पर्यटन स्थाल होना चाहिए था वह मृत प्रायः है आखिर क्यों? यह बात भी जनता के जिहन में है। पन्ना जिले की आजीविका एवं विकास का एक बड़ा साधन हो सकने वाला पन्ना के टूरिज़्म को बढ़ावा देने के लिए हमारे किस प्रतिनिधि ने; किस दावेदार ने कितनी पहल की है यह बात भी जनता जानती है। यह सभी सवालों के जबाब जनता अपने वोट के माध्यम से दावेदारों को देगी...... ’’ दिल की कोरी किताब लाया हू; नर्म नाज़ुक गुलाब लाया हँ तुमने डर डर के जो लिखे ही नहीं, उन ख़तों के जबाब लाया हँ ।।’’ इस चुनावी समर में जनता पूूरी तरह सजग और समझ तथा जागरूकता के साथ अपने आप को प्रस्तुत करेगी, यह बात इस बार के मतदान में दावेदारों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। प्रशासन भी पूरी सजगता और निःष्पक्षता से चुनाव आयोग के साथ मिलकर काम को अंजाम दे रहा है और आम जनता को पूरी पादर्शिता और सुविधा मुहैया करा रहा है चाहे फिर वह ’’दिव्यांग’’ ही क्यों ना हों।।