मजदूरी करने को मजबूर नेशनल कुश्ती खिलाड़ी पूनम यादव

मजदूरी करने को मजबूर नेशनल कुश्ती खिलाड़ी पूनम यादव

4 बार नेशनल और 7 बार स्टेट में कुश्ती खेल चुकी है

कैमूर: जिले के छोटे से गांव की आने वाली पूनम यादव जो 4 बार नेशनल और 7 बार स्टेट में कुश्ती खेल चुकी है, आज स्थिति खराब होने की वजह से मजदूरी करने को मजबूर है. कई मेडल, सर्टिफिकेट और शाहाबाद केसरी अवार्ड जितने के बाद भी पूनम को आगे अपने खेल को निखारने के लिए सरकार की ओर कोई मदद नहीं मिल पा रही है. ऐसे में वह गुहार लगा रही है कि सरकार लड़कियों के लिए भी व्यामशाला खोले, नहीं तो उनकी प्रतिभा गांव में ही दम तोड़ देगी. उसका कहना है कि "अगर सरकार लड़कियों पर ध्यान देगी तो वो भी बिहार का नाम रौशन कर सकती हैं." दरसअल, लॉकडाउन के कारण पिता की नौकरी छूट जाने के बाद बेटी मजदूरी कर घर खर्च चला रही है. जिले के सहूका गांव की रहने वाली पूनम के पिता ड्राइवर की नौकरी करते थे, लेकिन जब लॉकडाउन लगा तो पिता नौकरी छोड़कर घर पर बैठ गए. अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ी पूनम पर परिवार के खर्चे की जिम्मेवारी आ गई. ऐसे में वो मेहनत मजदूरी कर परिवार की जिम्मेदारी उठा रही है. लड़कियों के लिए नहीं है व्यामशाला पूनम बताती है कि "मेरे मामा पहलवान हैं. मैं पहले अथलिटिक्स में अपना भाग्य आजमा रही थी, लेकिन चांस नहीं मिलने की वजह से मामा के पहल पर कुश्ती में भाग्य आजमाया. लड़कियों के लिए व्यामशाला नहीं था, फिर भी मैं साइकिल से 15 किलोमीटर दूर बिछिया गांव में लड़कों के लिए बने व्यामशाला में कुश्ती सीखने जाती थी, जहां मेरे मामा कोच थे." उनसे बताया कि " मैंने चार बार नेशनल खेला जिसमें उपविजेता तक रही हूं और 7 बार स्टेट भी खेल चुकी हूं. स्टेट में गोल्ड मेडल भी जीती हूं. मुझे शाहाबाद केसरी पुरस्कार भी मिला है. लेकिन सरकार से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण दंगल में जितने भी पैसे इनाम मे मिले थे सब घर खर्च चलाने में खत्म हो गए. परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. ऐसे में घर पर खेती करने में परिवार का हाथ बटा रही हूं. मैं दंगल खेलना चाहती हूं, आज भी अपने भाई के साथ छत पर प्रैक्टिस करती हूं. लेकिन सरकार से कुछ मदद मिल जाए तो अच्छा रहेगा. तभी लड़कियां बढ़ पाएंगी." बेटी के काम से हूं खुश पूनम के पिता बताते हैं कि "मेरी बेटी ने जब पलवानी करने के लिए इच्छा जताई थी तब मैंने उनसे कहा था कि आप पहलवानी करिए. मैं पहले ट्रक चलाता था, लेकिन अब लॉकडाउन के कारण ट्रक नहीं चला पा रहा. इन्हीं के पैसे से घर में खेती हो पाई है क्योंकि मैं लॉकडाउन के कारण कमा नहीं पा रहा हूं. परिवार परेशानी से गुजर रहा है, लेकिन बेटी के काम से मैं बहुत खुश हूं." पूनम की मां गीता देवी बताती हैं कि 2018 से पूनम पहलवानी सीख रही है. बेटी की जो इक्षा थी, उसी में हम लोगों की भी खुशी थी. इसके पिता गाड़ी चलाते थे लेकिन कोरोना के मद्देनजर लागू लॉकडाउन की वजह से घर की स्थिति बहुत खराब हो गई है. मेरे भाई पहलवान हैं जो बिछिया धर्मशाला पर पहलवानी सिखाते थे, उनसे ही पूनम पहलवानी सीखती थी.