कैंसर से जूझ रही महिलाएं आर्टिफिशल ओवरी से फिर बन सकेंगी मां
कैंसर के इलाज के दौरान होने वाली कीमो थेरपी महिलाओं की प्रजनन क्षमता को खत्म कर देती है, लेकिन एक नई रिसर्च उम्मीद की किरण बनकर सामने आई है। डेनमार्क के कोपेनहेगन स्थित एक अस्पताल के शोधकर्ताओं ने 'बायो इंजिनियर्ड' ओवरी बनाने में सफलता हासिल की है। यह आर्टिफिशल ओवरी महिलाओं के अंडों को फर्टिलाइज करने में सक्षम है। इस ओवरी को महिलाओं में ट्रांसप्लांट भी किया जा सकेगा।
फिलहाल, कैंसर से पीड़ित महिलाओं की कीमोथेरपी या रेडियोथेरपी शुरू करने से पहले उनके अंडों को फ्रीज कर लिया जाता है। कीमो महिलाओं के ओवरी सेल्स की जीवन क्षमता को खत्म कर देती है। वहीं कम उम्र की लड़कियों की कीमो या रेडियोथेरपी से पहले उनकी ओवेरियन टिशू को निकालकर सुरक्षित रख लिया जाता है। इस टिशू में हजारों की मात्रा में अविकसित अंडे होते हैं। ट्रीटमेंट के बाद टिशू को फिर से शरीर में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है।
हालांकि, इन मामलों में सबसे बड़ा खतरा टिशू में कैंसर से प्रभावित सेल्स की मौजूदगी का रहता है। अगर इन प्रभावित सेल्स के साथ ही टिशू को शरीर में ट्रांसप्लांट कर दिया जाए तो लड़की फिर से कैंसर की चपेट में आ जाती है।
'बायो इंजिनियर्ड' ओवरी इस खतरे से बचने का एक अच्छा तरीका है। इस तकनीक में ओवरी टिशू के सेल्स को केमिकल से ट्रीट कर उसका डीएनए या ऐसे किसी भी हिस्से को अलग कर लिया जाता है जिसमें कैंसर प्रभावित सेल होने की आशंका हो।
इसके बाद अविकसित अंडों को खाली आर्टिफिशल ओवरी में इम्प्लांट कर दिया जाता है। रिसर्च टीम ने बताया कि इस ओवरी में अंडे सुरक्षित रह सकते हैं, जिसके बाद उन्हें शरीर में ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। शरीर में अंडे विकसित होना शुरू हो जाएंगे और हर महीने मासिक धर्म के साथ साइकल पूरा करेंगे।
रिसर्च टीम की एक सदस्य ने बताया कि, ऐसी खोज पहली बार हुई है जिसमें ह्यूमन फॉलिकल शरीर से बाहर किसी डीसेलुलराइज्ड ह्यूमन स्कैफोल्ड में सुरक्षित रहते हुए विकसित रहा हो। यह तरीका दूसरे तरीकों के मुकाबले सुरक्षित भी है क्योंकि इसमें कैंसर से प्रभावित सेल्स के री-इम्प्लांटेशन के दौरान शरीर में चले जाने की आशंका काफी कम हो जाती है। हालांकि, इस प्रोसेस को पूरी तरह सुरक्षित बनाने को लेकर रिसर्च टीम अभी भी काम कर रही है।