छत्तीसगढ़: गुटबाजी और असंतोष को रोकने के लिए कांग्रेस ने ताम्रध्वज साहू को उतारा
रायपुर/नई दिल्ली
छत्तीसगढ़ में जहां एक ओर जनता में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की पंद्रह साल की सरकार के खिलाफ असंतोष नजर आ रहा है लेकिन दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इस मौके का फायदा लेने की बजाय आपस में उलझा नजर आ रहा है। कांग्रेस में आपसी गुटबाजी और खींचातानी का आलम यह है कि ऐन मौके पर कांग्रेस हाईकमान को प्रदेश से आने वाले अपने इकलौते सांसद और पार्टी के ओबीसी विभाग के चीफ ताम्रध्वज साहू को मैदान में उतारना पड़ा है। नॉमिनेशन से महज एक दिन पहले कांग्रेस हाईकमान ने दुर्ग ग्रामीण से प्रतिमा चंद्राकर का नाम काटकर ताम्रध्वज को आगे कर दिया है। हाईकमान के इस कदम को जहां एक ओर आपसी गुटबाजी के काट की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश की एक बड़ी आबादी साहू समाज को अपनी ओर करने की कवायद माना जा सकता है। रोचक है कि साहू समुदाय आमतौर पर बीजेपी का वोटर माना जाता है। यही वजह है कि 90 असेंबली सीटों के लिए बीजेपी ने 14 साहू उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, वहीं कांग्रेस की ओर से भी एक दर्जन साहू चेहरे मैदान में थे लेकिन कांग्रेस की दिक्कत किसी बड़े चेहरे का ना होना था।
साहू और कुर्मी समुदाय की अच्छी-खासी तादाद
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में साहू समुदाय की आबादी लगभग 25 लाख के आसपास है। प्रदेश में ओबीसी की तादाद अच्छी खासी है, इनमें दो समुदाय प्रमुख है- कुर्मी और साहू। ये दोनों ही तबके जहां समाज में अपना वर्चस्व रखते हैं, वहीं इन दोनों की आपस में पटरी नहीं खाती। साहू जहां कारोबारी तबके से आते हैं, वहीं कुर्मी जमीनदारी या जमीन के मालिक होते हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल कुर्मी तबके से आते हैं। ऐन मौके पर साहू को उतारने के पीछे एक वजह भूपेश बघेल भी हैं। दरअसल, बघेल के खिलाफ जहां पार्टी के में काफी असंतोष है, उनके खिलाफ शिकायतें दिल्ली तक पहुंची हैं। वहीं उन पर एक आरोप यह भी लगा है कि टिकट बंटवारे में उन्होंने ओबीसी और खासकर कुर्मियों को मौका दिया। जिन प्रतिमा चंद्राकर का टिकट काटकर साहू को दिया गया, वह न सिर्फ खुद कुर्मी समुदाय से आती हैं बल्कि बघेल की करीबी भी मानी जाती हैं।
कांग्रेस अपने लिए देख रही है संभावना
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस 15 साल की ऐंटी-इन्कंबेंसी में अपने लिए बेहतर संभावनाएं देख रही है। साहू को उतारने के पीछे सीएम के लिए एक मजबूत दावेदार को उतारना भी माना जा रहा है। दरअसल, वहां प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल, सीएलपी लीडर टीएस सिंहदेव और कैंपेन कमिटी के चरणदास महंत सीएम पद के दावेदार के तौर पर देखे जा रहे हैं। ऐसे में साहू का आना एक नए समीकरण का संकेत माना जा सकता है। वहां बघेल के खिलाफ असंतोष और उनसे जुड़े विवादों के मद्देनजर कांग्रेस हाईकमान ने एक साफ सुथरे और गैर विवादित चेहरे को आगे करना ठीक समझा है। पिछले कुछ अर्से में जिस तरह साहू को कांग्रेस संगठन में जिम्मेदारियां दी गईं, उससे साफ है कि वह राहुल के काफी भरोसेमदं हैं। राहुल ने ओबीसी विभाग का अध्यक्ष बनाने के साथ-साथ उन्हें कर्नाटक चुनावों में स्क्रीनिंग कमिटी का अध्यक्ष बनाया और संगठन के चुनाव में पीआरओ भी बनाया।