'जर्जर' शिक्षा व्यवस्था, जान जोखिम में डालकर पढ़ने मजबूर है बच्चे

'जर्जर' शिक्षा व्यवस्था, जान जोखिम में डालकर पढ़ने मजबूर है बच्चे

महासमुंद 
छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने और बेहतर शिक्षा का दावा करते हुए हर साल करोड़ों रूपए सरकारी स्कूलों में खर्च करने का दिलासा देती है. लेकिन इसकी जमीनी हकिकत इन तमाम दावों की पोल खोल देती है. सरकारी स्कूलों का जिर्णोद्धार तो दूर इन स्कूलों में बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर है. महासमुंद जिले में 1280 प्राथमिक स्कूल और 480 मिडिल स्कूल संचालित है. 1760 शासकीय स्कूलों में 1 लाख 35 हजार छात्र-छात्राएं अपना भविष्य गढ़ने आते है. इन्ही स्कूलों में से 230 स्कूल मरम्त के लायक, 51 प्राथमिक और मिडिल स्कूल ऐसे है, जो या तो जर्जर है या फिर स्कूल का भवन गिर चुका है. ऐसे में बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर यहां पढ़ने को मजबूर है. शिक्षा विभाग के आंकड़ों में भी इन स्कूलों को जर्जर घोषित किया जा चूका है. इन्हीं स्कूलों में से कुछ स्कूल सारे सरकारी दावों की पोल खोल देते है.

महासमुंद विकास खण्ड के ग्राम भुरका मिडिल स्कूल और बागबाहरा विकास खंड के प्राथमिक शाला तेलीबांधा पूरी तरह जर्जर हो चूका है. इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का कहना है कि बारिश के मौसम में छत से पानी टपकता है. दीवार टूटी हुई है. सालों से स्कूल की मरम्मत तक नहीं की गई है. फिर भी स्कूल में पढ़ने बच्चे मजबूर है. यहां के शिक्षक भी मान रहे है कि ऐसे हालतों में बच्चों को यहां पढ़ाना मजबूरी है. स्कूल भवन की हालत ऐसे है कि कभी भी कोई भी दुर्घटना घट सकती है. गर्मी के दिनों में जैसे-तैसे काम चल जाता है लेकिन बरसात के दिनों में मजबूरी और बढ़ जाती है.

ऐसा नहीं है कि जिले के इन 51 और 230 स्कूलों की दशा और दिशा शिक्षा विभाग को डोर संभाले अधिकारियों को नहीं पता है. नीचे से लेकर उपर तक के अधिकारी पूरे मामले से अवगत है और परेशानियों को स्वीकार भी कर रहे है. जिला शिक्षा अधिकारी बीएल कुर्रे का कहना है कि स्कूलों के मरम्त के लिए राशि दिया गया है लेकिन मरम्मत कितान हुआ इसका आकड़ा भी नहीं. साथ ही अधिकारी साहब एक भी स्कूलों की स्थिति खराब होने के बात से भी नकार रहे है.

गौरतलब है कि शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए शासन तमाम योजनाएं संचालित कर रही है. इन योजनाओं के तहत सरकार हर साल करोड़ों रूपए भी फूंक रही है. महासमुंद जिले में साल 2018 में केवल मरम्मत के लिए 65 लाख औऱ इस साल 69 लीख खर्च कर रही है. पर स्कूल भवनों की ये जर्जर हालत सरकार के दावों को खोखला साबित करने के लिए काफी है.