धोनी की देश भक्ति के कायल हुए प्रंसक

नई दिल्ली
'लेफ़्टिनेंट कर्नल' महेंद्र सिंह धोनी कश्मीर में सेना के साथ ट्रेनिंग कर रहे हैं और 31 जुलाई से 15 अगस्त तक गार्ड और पैटरोलिंग की भूमिका निभा रहे हैं.
देश के लिए धोनी का सेवाभाव सराहनीय है और युवाओं के लिए प्रेरणादायी भी लेकिन भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल कप्तान महेंद्र सिंह धोनी वेस्ट इंडीज़ में टीम के साथ नहीं हैं.
इस सिरीज़ से खुद को अलग कर लिया था. ऐसा क्यों? आइसीसी के दो वर्ल्ड कप जीतने वाले इकलौते कप्तान धोनी कुछ ऐसे सवालों के साथ जूझ रहे हैं जिनका जवाब अगर उनसे आए तो अच्छा होता.
धोनी ने कहा कि उन्हें खुद ही पता नहीं है कि वो कब रिटायरमेंट लेंगे. बात ठीक है, इतना हक़ तो उनका बनता है. लेकिन क्रिकेट के इतिहास में फ़ैसले दिल से नहीं बल्कि दिमाग़ से लिए जाते रहे हैं.
धोनी के साथ खेलने वाले भारतीय क्रिकेट के कई दिग्गजों का टीम के साथ आखिरी वक्त वैसा नहीं था जैसा उन्होंने सोचा होगा.
वीवीएस लक्ष्मण से बड़ा जेंटलमैन क्रिकेटर शायद ही कोई टीम में रहा होगा. टेस्ट क्रिकेट में भारत के लिए सबसे शानदार पारियों में से एक खेलने वाले वीवीएस ने जब 2012 में अचानक संन्यास की घोषणा की तो मानो हड़कंप मच गया.
हैदराबाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे सवाल पूछा गया कि क्या उन्होंने कप्तान धोनी को इसके बारे में बताया तो उन्होंने मुस्कुरा कर कहा था कि धोनी से संपर्क करना कितना मुश्किल है सब जानते हैं.
हालांकि बाद में लक्ष्मण ने अपनी आत्मकथा 281 नॉट आउट में लिखा कि इस बात को मीडिया ने ग़लत तरीके से तोड़ मरोड़ कर पेश किया.
लेकिन कई पूर्व खिलाड़ियों ने उस वक्त धोनी की आलोचना की और कहा कि वो कप्तान कैसा जो टीममेट की ही न सुने?
तो क्या सचमुच धोनी ऐसे कप्तान हैं जो खिलाड़ियों की नहीं सुनते थे?
युवा खिलाड़ियों की सुनें तो जवाब ठीक विपरीत मिलेगा. लेकिन लक्ष्मण सरीखे कई सीनियर खिलाड़ियों को, खासकर उनके आखिरी दिनों में, बेहतर ट्रीटमेंट की उम्मीद रही होगी.
2011-12 की ऑस्ट्रेलियाई सिरीज़ में भारत को टेस्ट में 4-0 से करारी हार मिली. अब तैयारी वनडे सिरीज़ की हो रही थी.
कप्तान धोनी ने टीम मीटिंग बुलाई. संदेश दिया गया कि गंभीर, सहवाग और सचिन तीनों 30 के ऊपर हैं और तीनों को साथ खिलाने से फील्डिंग पर असर पड़ेगा.
हालांकि गंभीर ने उस सिरीज़ में युवा विराट कोहली के बाद सर्वाधिक रन बनाए लेकिन इसके बाद गंभीर और सहवाग ज़्यादा नहीं खेल सके.
मत भूलिए कि गंभीर के पास अभी भी काफी वक्त था. 2011 के वर्ल्ड कप में गंभीर भारत के सर्वाधिक रन स्कोरर थे.
गंभीर ने बाद में कहा कि उन्हें बड़ा सदमा लगा था. उन्होंने धोनी पर सवाल उठाते हुए कहा था कि 2012 में कोई कैसे कह सकता था कि फलां खिलाड़ी 2015 के वर्ल्ड कप में नहीं खेल सकता?
युवराज सिंह के पिता और पूर्व क्रिकेटर योगराज सिंह ने तो यहाँ तक कहा कि गंभीर, सहवाग और युवराज को टीम से निकालने में धोनी ने बड़ी भूमिका निभाई.
फील्डिंग को वजह बताकर धोनी ने 2008 के ऑस्ट्रेलियाई सिरीज़ से पहले गांगुली और राहुल द्रविड़ की वनडे से छुट्टी करा दी थी. फ़ैसला सही था क्योंकि इसने 2011 की वर्ल्ड कप विजेता टीम की नींव रखी थी.
वीरेंदर सहवाग ने एक इंटरव्यू में बताया कि क्यों युवा धोनी अपने करियर के लिए कप्तान गांगुली को धन्यवाद दें.
उन्होंने बताया कि धोनी करियर में कुछ पहली पारियों में असफल रहे थे. गांगुली ओपनिंग पोजीशन सहवाग के लिए छोड़ कर तीन नंबर पर बैटिंग कर रहे थे.
उन्होंने कुछ पारियों में नंबर तीन भी धोनी के लिए छोड़ दिया था. हम सब जानते हैं किस तरह धोनी ने फिर विशाखापट्टनम में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ विस्फोटक शतक लगाकर अपनी जगह पक्की की थी.
धोनी अब वो बल्लेबाज़ नहीं हैं जिनसे दुनिया खौफ़ खाती है. वर्ल्ड कप के दौरान उनकी कुछ धीमी पारियों ने टीम को जीत नहीं दिलाई. वो सिचुएशन जहाँ धोनी से बेहतर कोई फिनिशर नहीं था वहाँ अब वे चूकने लगे हैं.
धोनी ने कहा कि उन्हें खुद नहीं पता कि वे कब रिटायर होंगे. शायद उनके दिमाग में अगले साल का टी20 वर्ल्ड कप हो. वे चाहते हों कि जीत के साथ ही उनके करियर का अंत हो. लेकिन अतीत में कई ऐसे फ़ैसले हुए हैं जिनमें खिलाड़ियों को लगा होगा की उन्हें ठीक से रिटायर होने का मौका नहीं मिला.
धोनी के पास इस शिकायत से बचने का मौका है.