प्रदेश में पहला लीवर ट्रांसप्लांट, 40 डॉक्टरों की टीम ने 20 घंटे की सर्जरी

रायपुर
राजधानी के एक निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने लीवर ट्रांसप्लांट कर इतिहास रच दिया। 40 डॉक्टरों की टीम ने 20 घंटे तक मैराथन सर्जरी कर 45 वर्षीय रमेश (बदला हुआ नाम) को नया जीवन दिया। रमेश को लीवर डोनेट करने वाला कोई और नहीं, बल्कि उनकी पत्नी माया (बदला हुआ नाम) है। उन्होंने अपने पति को मौत के मुंह से खींच लिया। यह ट्रांसप्लांट इसलिए ज्यादा चुनौतीभरा था, क्योंकि रमेश ने एक ही किडनी के साथ जन्म (कन्जनाइटल सोलिट्री) लिया था।
छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स 10वीं बटालियन में हेड कांस्टेबल रमेश की जांच श्रीबालाजी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल मोवा में हुई तो लीवर खराब होने का पता चला। ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प था। रमेश के परिजन ट्रांसप्लांट के लिए राजी हुए तो सवाल था कि लीवर कौन देगा, पत्नी माया आगे आईं।
हॉस्पिटल संचालक डॉ. देवेंद्र नायक ने बताया कि इसमें हैदराबाद के डॉ. बाला चंद्रन मेमन की मदद ली गई। 40 डॉक्टरों को इस सर्जरी के लिए अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई। एक-एक चीज को प्लान किया गया। बता दें कि रमेश की स्थिति काफी नाजुक थी, ऑपरेशन के दौरान जान जाने का खतरा था।
इसकी जानकारी परिजनों को दी गई। इसके बाद सर्जरी शुरू हुई और जब 20 घंटे बाद समाप्त हुई तब डॉक्टरों ने राहत की सांस ली। मरीज स्वस्थ हैं। डोनर-रिसीपिएंट को गहन निगरानी में रखा गया है।
ऐसे चली मैराथन सर्जरी-
प्रत्यारोपण करने वाली टीम में हैदराबाद के डॉ. बाला चंद्रन मेमन, डॉ. देवेंद्र नायक, डॉ. पुष्पेन्द्र नायक समेत अलग-अलग विभागों डॉक्टर शामिल थे। लीवर डोनर से लीवर का पार्ट निकालने के लिए ऑपरेशन सुबह 6.30 बजे शुरू हुआ, जो रात दो बजे तक चला। जैसे ही पार्ट निकाला गया, उसे तुरंत दूसरे ऑपरेशन थियटर में रिसीपिएंट के पास ले जाया गया। छह बजे ऑपरेशन शुरू हुआ, जो रात ढाई बजे पूरा हुआ।
पत्नी को पता चला तो लीवर डोनेट करने को तैयार हुईं-
माया देवी ने बताया कि पति रमेश अंबिकापुर में 2001 से छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स 10वीं बटालियन में हेड कांस्टेबल के पद पर पदस्थ हैं। बीते आठ साल से उन्हें लीवर संबंधी परेशानी थी। डॉ. बाला चंद्रन रायपुर आए और जांच के बाद बताया कि ट्रांसप्लांट ही एक मात्र विकल्प है तो वे तुरंत लीवर डोनेट करने को तैयार हो गईं।