मरीजों की बजाए मजदूरों को ढोने में लगी हैं एंबुलेंस

भोपाल
शहर में कोराना क्या आया लोगों की संवेदना ही मर गर्इं। गैस कांड के बाद यह दूसरा मौका है, जब यहां पर इंसानियत का ही सौदा किया जा रहा है। इस समय स्थिति यह है कि शहर में मरीजों को अस्पताल ले जाने वाली एंबुलेंस ने अब इस आपदा में भी कमाई का अवसर तलाश लिया है और वह बाहर से आए मजदूरों को ढोने में लग गई हैं। शहर से बाहर जाने के संसाधनों के बंद होने के कारण बाहर से आए प्रवासी श्रमिकों से मनमाने पैसे लेकर उनको शहर से बाहर ले जाया जा रहा है।
लॉकडाउन के बार शहर में लगे कोरोना कर्फ्यू के कारण श्रमिकों को एंबुलेंस वाले प्रति व्यक्ति 200 से 500 रुपए तक विदिशा, सीहोर और बैरसिया ले जाने के चार्ज कर रहे हैं। इस खेल के चलते अब एंबुलेंस शहर के अस्पतालों में कम और भारत टॉकीज, रेलवे स्टेशन चौराहे और भोपाल टॉकीज पर नजर आती हैं। एंबुलेंस होने के कारण इनको प्रतिबंधित मार्गों पर रोका नहीं जाता है और उसके चलते इनका काम अब कारोबार में तब्दील हो गया है।
दिल्ली और मुंबई में लॉकडाउन लगने के बाद प्रवासी श्रमिकों का भोपाल लौटना जारी है। इनमें से अधिकांश महाराष्ट्र और दिल्ली से आ रहे हैं। भोपाल पहुंचने के बाद रेलवे स्टेशन पर मजदूरों की स्क्रीनिंग तो की जाती है लेकिन उनको भोपाल रेलवे स्टेशन से घर भेजने के लिए बसों की व्यवस्था नहीं की जाती है। इसका लाभ उठा कर एंबुलेंस वाले मनमानी कीमतों पर उनको ले जाने का सौदा कर रहे हैं।