स्कूलों में बांटे 56 करोड़ के टेबलेट, एक साल में ही हो गए कंडम

रायपुर
एक साल पहले सरकारी स्कूलों में कॉसमास योजना के तहत बांटे गये शालाकोष टेबलेट की गुणवत्ता कटघरे में आ गई है। स्कूली शिक्षा में डिजिटलाइजेशन के नाम पर पिछली सरकार ने करोड़ों रुपये के टेबलेट तो बांटे, लेकिन इनका इस्तेमाल नहीं हो पाया है। अब रायपुर में ही ज्यादातर स्कूलों से टेबलेट खराब या बंद होने की शिकायत है। इसके पहले भी लगातार शिकायतें आई। ऐसे में टेबलेट खरीदारी में भी भ्रष्टाचार की आशंका है।
आलम यह है कि बस्तर अंचल के आसपास के जिलों में जहां नेटवर्क और चार्जिंग करने के लिए बिजली की सुविधा तक नहीं है वहां भी पिछली सरकार ने टेबलेट बांट दिये। बताया जाता है कि नेटवर्क नहीं मिलने से यहां के शिक्षकों को 50 से 60 किमी का सफर तय करके हफ्ते में एक बार सिर्फ टेबलेट अपडेट करने के लिए आना पड़ रहा है।
जहां नेटवर्क नहीं वहां भी बांट दिये...
राज्य के 13 हजार गांवों में अभी नेटवर्क नहीं है। इसकी जानकारी होने के बाद भी टारगेट पूरा करने लिए चिप्स के जरिए स्कूल शिक्षा विभाग ने 100 फीसद स्कूलों में टेबलेट बांट दिए। राज्य में 48 हजार 398 स्कूलों में टेबलेट बांटने का लक्ष्य रखा गया था। प्रदेश के नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कोण्डागांव, सुकमा आदि इलाकों में कुछ टेबलेट खराब देने की शिकायत पहले ही आ चुकी है। इसके अलावा राजनांदगांव के छुईखदान , मानसूर ,दंतेवाड़ा के कटेकल्याण, कुआंकोण्डा समेत कई अंदरूनी इलाकों में इस टेबलेट का इस्तेमाल नहीं हो पाया है।
यह है कॉसमास योजना ?
पिछली सरकार ने एक साल पहले स्कूलों में 56 करोड़ से अधिक रुपये खर्च करके टेबलेट बांटे थे। टेबलेट के जरिए एक साथ शिक्षकों की उपस्थिति, बच्चों की ऑनलाइन उपस्थिति, मिड डे मील की मॉनिटरिंग, यूनिफार्म, स्कूल बिल्डिंग समेत पेयजल व शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं की मॉनिटरिंग करने का दावा किया गया था। एक टेबलेट को खरीदने के लिए शिक्षा विभाग ने 11 हजार 600 रुपये खर्च किया है।