हर साल क्यों बंद कर दिए जाते हैं बद्रीनाथ के कपाट

हर साल क्यों बंद कर दिए जाते हैं बद्रीनाथ के कपाट

उत्तराखंड के चमोली में स्थित बद्रीनाथ धाम की हिंदू धर्म में बहुत मान्यता है। ये मंदिर बद्रीनारायण मंदिर के नाम से भी मशहूर है। अलकनंदा नदी के तट पर बसे इस इलाके को भी बद्रीनाथ ही कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के बद्रीनारायण स्वरूप को पूजा जाता है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप की मूर्ति रखी गयी है जिसके बारे में कहा जाता है कि आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने नारद कुंड से वो मूर्ति निकाल कर स्थापित की थी।

कपाट होंगे बंद
चारों धामों में से एक बद्रीनाथ धाम भी है। इस साल यानि 2018 में बद्रीनाथ धाम के कपाट 20 नवंबर, मंगलवार को दोपहर 3 बजकर 21 मिनट पर बंद होंगे। कपाट बंद होने से पूर्व दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ इस पवित्र स्थान पर पहुंचती है। इस बार मंदिर को तकरीबन 20 क्विंटल गेंदे के फूलों से सजाया गया। भगवान बद्री के श्रृंगार के पश्चात् माता लक्ष्मी को सखी वेश में सुसज्जित करके भगवान बद्री के पास गर्भ गृह में स्थापित किया जाता है।

क्यों किये जाते हैं कपाट बंद
भगवान विष्णु को समर्पित बद्रीनाथ धाम सहित शेष मुख्य धाम उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित है। ठंड का मौसम आने के बाद चारों धामों में भीषण ठंड और बर्फ़बारी बढ़ जाती है। ऐसे समय में श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बद्रीनाथ ही नहीं बल्कि चारों धामों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

कब खुलते हैं धाम के कपाट
आपको बता दें कि मंदिर के कपाट बंद करने के लिए भी मुहूर्त निकाला जाता है। इस बार विजयादशमी के अवसर पर मंदिर परिसर में पूजा पाठ के बाद कपाट बंद करने के मुहूर्त पर चर्चा की गई। जहां बद्रीनाथ के अलावा रूद्रप्रयाग जिले में स्थित केदानाथ धाम और उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिरों के कपाट बंद होने की तिथि भी तय की गई।

बर्फ़बारी और पहाड़ी इलाकों में भयंकर ठंड की वजह से हर साल अक्टूबर-नवंबर में बंद होने वाले कपाट छह माह के शीतकाल के बाद दोबारा अप्रैल-मई में खोले जायेंगे। उसके बाद फिर से भक्तों को अपने भगवन के दर्शन करने का मौका मिल जाएगा।

दक्षिण के हैं पुजारी
इस मंदिर की एक और खासियत जो आपको हैरान कर देगी वो है यहां के पुजारी। जी हां, भारत के उत्तरी हिस्से में ये मंदिर होने के बावजूद इस मंदिर के पुजारी जिन्हें रावल कहा जाता है वो भारत के दक्षिण राज्य केरल के नम्बूदरी समुदाय के ब्राह्मण होते हैं।