16 साल की कानूनी लड़ाई के बाद अमिता को मिलेगी हरिशंकर परसाई की रचनाओं की रॉयल्टी

16 साल की कानूनी लड़ाई के बाद अमिता को मिलेगी हरिशंकर परसाई की रचनाओं की रॉयल्टी

रायपुर 
देश के प्रख्यात साहित्यकार हरिशंकर परसाई की रचनाओं की रॉयल्टी को लेकर कोर्ट में लंबे समय से चल रहे मामले में फैसला आ गया है. परसाई की मौत के बाद उनकी रचनाओं पर मिलने वाली रॉयल्टी में हिस्सा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की रहने वाली अमिता शर्मा को भी मिलेगा. अमिता रिश्ते में हरिशंकर परसाई की भतीजी हैं. जिला एवं सत्र न्यायालय जबलपुर के एक फैसले में उन्हें रायल्टी का हकदार माना गया है.

मिली जानकारी के मुताबिक रॉयल्टी के इस अधिकार के लिए बिलासपुर की अमिता शर्मा ने 16 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी. हरिशंकर परसाई के भांजे प्रकाश दुबे को रॉयल्टी का हिस्सा अब तक मिलता रहा है. जबलपुर कोर्ट ने प्रकाश दुबे से साल 2000 से अब तक का हिसाब मांगा है. उन्हें आगामी 25 जून तक कोर्ट में जानकारी प्रस्तुत करनी है.

बता दें कि मध्यप्रदेश के जबलपुर निवासी हरिशंकर परसाई की रचनाओं पर मिलने वाली रॉयल्टी को लेकर जबलपुर जिला न्यायालय के सोलहवें अपर जिला सत्र न्यायाधीश वारींद्र कुमार तिवारी की कोर्ट ने फैसला दिया है. इसमें रॉयल्टी की राशि अब परसाई परिवार के वैध उत्तराधिकारियों के बीच बराबर बंटेगी. साहित्यकार परसाई की मौत 10 अगस्त 1995 को हुई थी. वे अविवाहित थे, उनकी बहन सीता दुबे के बेटे यानी भांजे प्रकाश चंद्र दुबे एक वसीयत के आधार पर पिछले कई वर्षों से अकेले ही रॉयल्टी प्राप्त कर रहे थे. परिजनों का कहना है कि परसराई ने ऐसी कोई भी वसीयत नहीं की थी. इसके बाद भी वसीयत बताई जा रही है.

वसीयत को फर्जी करार देते हुए हरिशंकर परसाई के भाई गौरीशंकर परसाई की बेटी अमिता शर्मा पति सुनील शर्मा पहले रॉयल्टी के लिए सामने आई. उन्होंने 30 सितंबर 2003 में बिलासपुर जिला एवं सत्र न्यायालय में मामला प्रस्तुत कर रायल्टी पर अपना हक जताया. साथ ही परसाई. परिवार की वंशावली प्रस्तुत की. इसके अनुसार परसाई के 2 भाई और 3 बहन थीं. अमिता ने रॉयल्टी पर इन सब का हक बताया. 28 मार्च 2011 को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने मामला जिला न्यायालय जबलपुर में प्रस्तुत करने का आदेश दिया. इसके बाद अमिता ने जबलपुर में मामला प्रस्तुत किया. यहां कोर्ट ने 10 जुलाई 1995 को बने वसीयत को लेजर प्रिंटर से बनाए जाने के कारण शून्य घोषित किया. क्योंकि 1995 में भारत में लेजर प्रिंटर आया था या नहीं इस सवाल पर प्रकाश दुबे जवाब नहीं दे पाए.