मुश्किल सीटें जीतने को फतह करने भाजपा ने बनाई रणनीति

भोपाल। विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रचंड जीत की आस लेकर काम कर रही है। इसके लिए पार्टी ने मुश्किल सीटें जीतने का लक्ष्य बनाया है। इनमें राघौगढ़, छिंदवाड़ा और लहार जैसी कांग्रेस की अभेद्य सीटें शामिल हैं, जो दशकों से भाजपा के लिए अभेद्य रही हैं। भाजपा का हर दांव इन सीटों के कांग्रेसी क्षत्रपों के आगे बेअसर साबित हुआ। इसलिए भाजपा इन्हें भेदने की रणनीति पर काम कर रही है। प्रदेश भाजपा के नेताओं के अनुसार इन मुश्किल सीटों को जीतने का तोड़ पार्टी ने ढूंढ़ निकाला है।
सीटें, कांग्रेस कई दशकों से लगातार जीतती आ रही
राज्य में विधानसभा चुनाव मानो सिर पर आ गए हैं। महज कुछ माहों में ही राज्य की अगली सरकार का फैसला होना है। पिछले चुनावों में भाजपा मात खा चुकी है। हालांकि कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई का लाभ बीजेपी को मिला और सिंधिया के सहयोग से सरकार बन गई लेकिन चुनाव की डगर कठिन है। पार्टी भी यह तथ्य भली—भांति जानती है। ऐसे में बीजेपी ने पार्टी के लिए कठिन रही सीटों को जीतने का भी लक्ष्य बनाया है। इनमें राघौगढ़, छिंदवाड़ा और लहार जैसी सीटें शामिल हैं जोकि कांग्रेस कई दशकों से लगातार जीतती आ रही है। भाजपा के लिए 36 से ज्यादा ऐसी सीटें और हैं, जिन्हें जीतना मुश्किल होता है। इनमें आरिफ अकील की भोपाल उत्तर, सचिन यादव की कसरावद, बाला बच्चन की बड़वानी जिले की राजपुर सहित कई सीटें शामिल हैं। इन सीटों के लिए भी भाजपा को जोर लगाना होगा।
गुजरात मॉडल से उम्मीदें
भाजपा को गुजरात मॉडल से इस बार बेहतहाशा उम्मीदें हैं। वजह यह कि नए चेहरों को मौका देकर प्रचंड जीत हासिल की गई। इसलिए मप्र में इन मुश्किल सीटों पर भाजपा सभी दांव खेलकर जीत की कोशिश करेगी। गुजरात में वोटों का ध्रुवीकरण भी अहम था। उत्तरप्रदेश मॉडल का हितग्राही को जोडऩे वाला कॉन्सेप्ट भी मप्र में अपनाया जा रहा है। कठिन सीटें जीतने के लिए पार्टी नेता बूथ नेटवर्क से आस लगाए बैठे हैं। इसके अलावा इन सीटों पर वरिष्ठ नेताओं के दौरे भी कराए जा रहे हैं।