भोपाल गैस कांड: मुआवजा बढ़ाने की याचिका पर SC ने केंद्र से मांगा जवाब

भोपाल गैस कांड: मुआवजा बढ़ाने की याचिका पर SC ने केंद्र से मांगा जवाब

नई दिल्ली । भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Incident) मामले में केंद्र सरकार (Central Government) की क्यूरेटिव पिटीशन (Curative Petition) पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ (Constitution Bench) ने केंद्र सरकार से पूछा है कि, पीड़ितों को मुआवजा बढ़ाने पर आपका स्टैंड क्या है?, जिसमें 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (750 करोड़ रुपये) का मुआवजा यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) द्वारा पहले ही किया जा चुका है। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को इस मामले में 11 अक्टूबर तक निर्देश देने को कहा है। इस संविधान पीठ में जस्टिस एस के कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओक, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल हैं।

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केंद्र सरकार ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी
दरअसल, केंद्र सरकार ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे के लिए क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी. केंद्र की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने कहा था कि अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कंपनी, जो अब डॉव केमिकल्स (Dow Chemicals) के स्वामित्व में है, को 7413 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा देने के निर्देश दिए जाएं।

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सरकार के फैसले की परवाह किए बिना पीड़ितों की सुनवाई करनी चाहिए
पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता करुणा नंदी (Karuna Nandi) ने कहा कि अदालत को सरकार के फैसले की परवाह किए बिना पीड़ितों की सुनवाई करनी चाहिए। पीड़ितों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने भी कहा कि वे उपचारात्मक याचिका को वापस लेने के केंद्र के फैसले का विरोध करेंगे। केंद्र ने अपनी उपचारात्मक याचिका में कहा कि मुआवजे की गणना 1989 में की गई थी, जिसकी गणना वास्तविकता से असंबंधित सत्य की मान्यताओं पर की गई थी।

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सरकार को एक स्टैंड लेना होगा 
जस्टिस संजीव खन्ना, ए.एस. ओका, विक्रम नाथ और जे.के. माहेश्वरी की बेंच ने केंद्र के वकील से कहा कि, सरकार को एक स्टैंड लेना होगा कि वह क्यूरेटिव पिटीशन पर दबाव डालेगी या नही। इसके अलावा बेंच ने कहा कि, वह क्यूरेटिव पिटीशन के संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए सरकार की प्रतीक्षा करेगी। पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील से कहा, अगर सरकार क्यूरेटिव पिटीशन को दबाती है, तो उनका काम आसान हो जाएगा।

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त्रासदी एक दुर्लभ मामला था
पारिख ने कहा कि पिछले कुछ सालों में, त्रासदी की तीव्रता पांच गुना बढ़ गई है। मौतें, पीड़ितों की संख्या और चोटें। सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि, क्या मुआवजा समय के साथ बदलता रह सकता है और सिस्टम को निश्चितता प्रदान करनी चाहिए। इसमें कहा गया है, निरंतर अनिश्चितता नहीं हो सकती। किसी भी चीज के लिए कोई आदर्श स्थिति नहीं है। पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि त्रासदी एक दुर्लभ मामला था।

2011 में SC ने यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन को नोटिस जारी किया था
शीर्ष अदालत को सूचित किया गया था कि समीक्षा याचिका (Review Petition ) पर फैसला होने के 19 साल बाद एक उपचारात्मक याचिका दायर की गई थी, और मुकदमे को अंतिम रूप दिया जाना चाहिए, और पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील से पूछा कि सरकार की उपचारात्मक याचिका तक, आपने नहीं देखा कोई क्यूरेटिव फाइल करने की जरूरत है?, 2011 में शीर्ष अदालत की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन को नोटिस जारी किया था, जो अब डॉव केमिकल्स कंपनी, यूएस की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।

कब हुआ था भोपाल गैस कांड
मध्यप्रदेश के भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 को दर्दनाक हादसा हुआ था। इतिहास में जिसे भोपाल गैस कांड यानी भोपाल गैस त्रासदी का नाम दिया गया है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जिससे लगभग 15 हजार से अधिक लोगों की जान गई थी और कई लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए थे, जो आज भी त्रासदी की मार झेल रहे हैं।

मिक नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था
भोपाल गैस कांड में मिथाइल आइसो साइनाइट (methyl iso cyanite) नामक जहरीली गैस (poisonous gas) का रिसाव हुआ था, जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता है। मरने वालों के अनुमान पर विभिन्न स्त्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से इसमें भिन्नता मिलती है, फिर भी पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2 हजार 259 बताई गई थी।

8 हजार से ज्यादा लोगों की मौत, सरकार ने 3 हजार 787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी 
मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3 हजार 787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी, जबकि अन्य अनुमान बताते हैं कि 8 हजार से ज्यादा लोगों की मौत तो दो सप्ताह के अंदर ही हो गई थी। लगभग अन्य 8 हजार लोग रिसी हुई गैस से फैली बीमारियों के कारण मारे गये थे। उस भयावह घटनाक्रम को फिर से याद करने पर भुक्तभोगियों की आंखें आज भी डबडबा जाती हैं।

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