कम मतदान से भाजपा हलाकान चुनाव बाद गिर सकती है कलेक्टरों पर गाज
गुरुपूर्णिमा होने की वजह से दूसरे चरण में भी मतदान का प्रतिशत गड़बड़ा सकता है
भोपाल। मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के प्रथम चरण का मतदान छह जुलाई को हुआ। अधिकांश नगर निगमों में अपेक्षा से कम मतदान हुआ। लोग भी खूब परेशान हुए। अब भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियां इस मुद्दे पर चुनाव आयोग को घेर रही है। सवाल पूछ रही है, जिसके जवाब आयोग के पास भी फिलहाल नहीं दिखाई दे रहे। प्रदेश में सात साल बाद नगरीय निकाय चुनाव हो रहे हैं। पहले चरण में 61 प्रतिशत वोटिंग हुई। दूसरे चरण की वोटिंग 13 जुलाई को है और पार्टियों को लग रहा है गुरुपूर्णिमा होने की वजह से उस दिन भी मतदान का प्रतिशत गड़बड़ा सकता है। पहले चरण में वोटिंग कम होने से प्रत्याशियों का गुणा-भाग भी गड़बड़ा गया है। कोई दावे के साथ कह नहीं सकता कि कौन जीत रहा है। कांग्रेस तो इस पर भी भाजपा के पन्ना प्रभारी से लेकर अन्य व्यवस्थाओं पर सवाल उठा रही है।
कम मतदान से भाजपा आशंकित
मतदान कम होने से भाजपा आशंकित है। निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रही है। वहीं, निर्वाचन आयुक्त बीपी सिंह ने इसका ठीकरा केंद्रीय कर्मचारियों पर फोड़ दिया। इससे वह भी नाराज है। कांग्रेस ने सरकार पर षड्यंत्र का आरोप लगाया है। यानी सब कुछ इतना घुमावदार है कि हर कोई बलि का बकरा तलाश रहा है। इधर, मप्र के निकाय चुनाव के पहले चरण में कम मतदान पर भाजपा के केंद्रीय कार्यालय ने रिपोर्ट मांगी है। उसके बाद पार्टी के अंदर इसके जवाब तलाशे जा रहे हैं, क्योंकि आलाकमान ने मप्र को दस फीसदी वोट शेयर बढ़ाने का टारगेट दिया था। उलटा मतदान घट गया। वहीं मप्र के निकाय चुनाव में भाजपा कम वोटिंग की बड़ी वजह प्रशासनिक स्तर पर जबलपुर, भोपाल, ग्वालियर, छिंदवाड़ा, सागर और सिंगरौली की प्रशासनिक मशीनरी की विफलता को मान रही है। इन जगहों पर मतदाता पर्चियों का नहीं बांटा जाना कम मतदान की प्रमुख वजह के रूप में सामने आया है। इन जगहों पर कालोनियों से मतदान केंद्र को दूर स्थानों पर बनाना और वोटर लिस्ट में एक ही कालोनी के वोटर्स के नाम अलग-अलग मतदान केंद्रों पर रहे। इस झमेले के बाद अब इन 6 जिलों के कलेक्टरों और उनके उपनिर्वाचन अधिकारियों को सरकार चुनाव बाद बदलने जा रही है। सरकार की ओर से उन्हें इस गड़बड़ी का अंजाम भुगतने को तैयार रहने को कहा गया है।
पर्ची न बांटने से बने ऐसे हालात
कम मतदान के लिए राज्य निर्वाचन आयोग, जिला प्रशासन और नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। मतदाता पर्ची बांटने और मतदाताओं के सत्यापन पर लापरवाही हुई। कई जिलों में लोगों को मतदाता पर्ची बांटी ही नहीं। फिर मतदान केंद्र बदल दिए गए। मतदाता तो भटकते ही रह गए। लोगों को पता ही नहीं चला कि किस मतदान केंद्र पर जाकर वोट डालना है। इसका भी भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में मतदान पर असर हुआ।
एक-दूसरे पर डालते गए काम
भोपाल में पर्ची बांटने का काम मतदान के चार-पांच दिन पहले बीएलओ को दिया गया। इसके साथ ही उन्हें दूसरी जिम्मेदारी भी सौंप दी गई। केंद्रीय कर्मचारियों के ड्यूटी से हटने से मतदान केंद्र पर भी उनकी ड्यूटी लगा दी। इससे मतदाता पर्ची बांटने का काम हुआ ही नहीं। मतदान से दो दिन पहले नगर निगम को पर्ची बांटने का काम मिला। इससे वार्ड में ही मतदाता पर्ची रखी रह गई और मतदाता भटकते मिले।
एसडीएम से रिपोर्ट तलब
15 अप्रैल के बाद वोटर लिस्ट के सत्यापन का काम शुरू किया। समय कम था, इसलिए सत्यापन नहीं हुआ। बीएलओ ने खानापूर्ति कर उसे अपडेट बता दिया। किसी ने इस पर ध्यान दिया ही नहीं। एक ही परिवार के नाम अलग-अलग वार्ड में जुड़ गए। मतदाता सूची में कई गड़बडिय़ां रह गई। मतदान के दिन करीब 60 हजार लोग मतदान ही नहीं कर सके। कुछ लोग यह आंकड़ा और भी ज्यादा बता रहे हैं। अब जिला निर्वाचन अधिकारी ने सभी एसडीएम से रिपोर्ट मांगी है।
बीएलओ नहीं नहीं बांटी पर्ची
राज्य निर्वाचन आयुक्त ने गड़बड़ी का ठीकरा केंद्रीय कर्मचारियों पर फोड़ा तो उनका एसोसिएशन बिदक गया। केंद्रीय कर्मचारियों की समन्वय समिति ने राज्य निर्वाचन आयुक्त से अपना बयान वापस लेने की बात कही है। ऐसा नहीं हुआ तो वह भी आंदोलन करने को आमादा है। समन्वय समिति के महासचिव यशवंत पुरोहित का कहना है कि केंद्रीय कर्मचारी मतदान अधिकारी का काम करते हैं। बीएलओ ने घर-घर जाकर सर्वे नहीं किया, पर्चियां नहीं बांटी। हालांकि, राज्य निर्वाचन आयोग ने कहा कि आयुक्त ने केंद्रीय कर्मचारियों को कठघरे में खड़े करने का कोई बयान नहीं दिया।
अब घर-घर पर्ची पहुंचाने के निर्देश
निकाय के दूसरे चरण का मतदान 13 जुलाई को है। इस दिन 214 नगरीय निकायों में मतदान होगा। इसमें पांच नगर निगम, 40 नगर पालिका और 169 नगर परिषद हैं। प्रथम चरण में मतदाता पर्ची बांटने में गड़बड़ी के कारण कम मतदान होने के चलते अब राज्य निर्वाचन आयोग ने दूसरे चरण में हर मतदाता को पर्ची पहुंचाने की जिम्मेदारी जिला निर्वाचन आयोग पर डाली है।