शांति के टापू मप्र में सुरक्षित नहीं सरकारी कर्मचारी
छतरपुर और शहड़ोल क्षेत्रों में सबसे अधिक मारपीट की घटनाएं
भोपाल। मप्र को भले ही शांति का टापू कहा जाता है, लेकिन यहां शासकीय कर्मचारी भी सुरक्षित नहीं है। औसतन 4 कर्मचारियों को हिंसा का सामना करना पड़ता है। पिछड़े इलाकों में सुमार छतरपुर और शहडोल जैसे इलाकों में जहां गंभीर हालात चिंता जनक हैं। वहीं भोपाल और इंदौर जैसे बड़े शहर के कर्मचारी भी इससे अछूते नहीं है।
विधानसभा को दिये गये सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करें तो 555 दिनों में 2011 शासकीयक कर्मचारियों को मारपीट का शिकार होना पड़ा है। एक जनवरी 2023 से 10 जून 2024 के दौरान सबसे ज्यादा मारपीट शहडोल संभाग में हुई है। जहां सबसे ज्यादा 528 कर्मचारियों ने वारदात होने की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई है। इसके बाद दूसरे स्थान छतरपुर ने बनाया है। जहां 517 अधिकारी-कर्मचारियों ने शासकीय कार्य के दौरान हुई हिंसा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है।
भोपाल और इंदौर परिक्षेत्र भी सुरक्षित नहीं
अपराधों पर नियंत्रण के दृष्टिगत सरकार ने प्रशासनिक व्यवस्था के तहत भोपाल और इंदौर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की है। आम जन के परे इसके बाद भी यहां शासकीय कर्मचरी सुरक्षित नहीं है। भोपाल आयुक्त कार्यालय परिक्षेत्र में इस अवधि में जहां 64 प्रकरण दर्ज किये गए। वहीं इंदौर में यह संख्या 52 बताई गई है।
मुख्य संभागों के यह हाल
शासकीय कर्मचारियों की पिटाई के मामले में प्रदेश के बड़े शहरों के हालात भी खराब है। सागर सिरमौर बनकर उभरा है। जहां सबसे अधिक 248 प्रकरण दर्ज किये गये हैं। इसके बाद मालवा के उज्जैन में 260 मामले पंजीबद्ध किये गये हैं। जिसमें इंदौर भी अछूता नहीं है। यहां 203 शिकायतें पुलिस को मिली है। जबलपुर में यह संख्या 172 है। जबकि राजधानी होने के बाद भी भोपाल में 196 वारदाते सामने आई है।
निशाने पर इन विभागों के कर्मचारी
मारपीट की घटनाओं में सबसे ज्यादा शिकार सरकार का मैदानी अमला है। इसमें वन और पुलिस के अलावा उर्जा विभाग ग्रामीण विकास और नगरीय निकायों के कर्मचारी मुख्यरूप से शामिल है। जिनको आये दिन शासकीय दायित्व निर्वहन में अकारण हिंसा का सामना करना पड़ता है।
अमला काम कैसे करेगा
कर्मचारी संगठनों का मानना है कि इस तरह के मामले में सरकार को न केवल गंभीर होने की जरूरत है बल्कि ठोक कार्रवाई की भी आवश्यकता है। मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के सचिव उमाशंकर तिवारी इस स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि सरकार को सोचना चाहिये कि सुरक्षा के अभाव में अमला काम कैसे करेगा।