लगातार छठे महीने शून्य से नीचे रही महंगाई, सितंबर में थोक महंगाई बढक़र -0.26 हुई
नई दिल्ली, देश में थोक मुद्रास्फीति दर लगातार छठे महीने शून्य से नीचे रही और सितंबर में यह -0.26 प्रतिशत दर्ज की गई। अगस्त महीने में थोक महंगाई दर पांच महीने के उच्च स्तर -0.52 फीसदी पर पहुंच गई थी। रॉयटर्स द्वारा सर्वेक्षण किए गए अर्थशास्त्रियों ने अनुमान लगाया था कि सितंबर के लिए थोक मूल्य सूचकांक 0.5 प्रतिशत बढ़ेगा।
अगस्त में महंगाई दर -0.52प्रतिशत और जुलाई के महीने में -1.36 प्रतिशत पर आ गई थी। सरकार ने सितंबर में रासायनिक और रासायनिक उत्पादों, खनिज तेल, कपड़ा, बुनियादी धातुओं और खाद्य उत्पादों की कीमतों में पिछले वर्ष के इसी महीने की तुलना में गिरावट को थोक महंगाई दर के शून्य से नीचे रहने का कारण बताया है। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) कंपनियों के साथ थोक में बेचे और कारोबार किए गए सामानों की कीमतों में बदलाव का मूल्यांकन करता है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के विपरीत, जो उपभोक्ताओं की ओर से खरीदी गई वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को ट्रैक करता है, डब्ल्यूपीआई खुदरा कीमतों से पहले फैक्ट्री गेट कीमतों को ट्रैक करता है।
बता दें कि सितंबर में खुदरा महंगाई दर में सितंबर में गिरावट दर्ज की गई। देश की खुदरा मुद्रास्फीति सितंबर में सालाना आधार पर घटकर 5.02 प्रतिशत पर आ गई, यह अगस्त में 6.83 प्रतिशत थी। सितंबर में खाद्य मुद्रास्फीति 6.56 प्रतिशत रही जो अगस्त में 9.94 प्रतिशत थी। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की बात करें तो सितंबर महीने में खुदरा महंगाई दर क्रमश: 5.33 प्रतिशत और 4.65 प्रतिशत रही।
सितंबर में सब्जियों की कीमतें नरम पड़ीं
सितंबर महीने में सब्जियों की महंगाई दर घटकर 3.39 फीसदी रह गई, जो अगस्त में 26.14 फीसदी थी। सितंबर महीने में अनाज की महंगाई दर 10.95 फीसदी रही। ईंधन और बिजली खंड की महंगाई में सितंबर में शून्य से 0.11 प्रतिशत की गिरावट आई। खाने-पीने के सामानों में गिरावट के बीच सितंबर महीने में भारत की थोक महंगाई दर बढक़र -0.26प्रतिशत पर पहुंच गई है। यह लगातार छठा महीना है जब थोक महंगाई शून्य से नीचे रही है। इससे पहले अगस्त में थोक महंगाई -0.52 प्रतिशत थी। वहीं जुलाई में यह -1.36 प्रतिशत थी। पिछले साल सिंतबर में यह 10.7 प्रतिशत थी। सरकार हर महीने होलसेल प्राइस इंडेक्स के आंकड़े जारी करती हैं। इससे पहले गुरुवार यानी 12 अक्टूबर को रिटेल महंगाई के आंकड़े जारी किए गए थे। रिटेल महंगाई भी तीन महीने के निचले स्तर 5.02 प्रतिशत पर रही थी।
निगेटिव मंहगाई से भी प्रभावित होती है इकोनॉमी
महंगाई का निगेटिव में रहना भी इकोनॉमी पर प्रभाव डालता है। इसे डिफ्लेशन कहा जाता है। निगेटिव महंगाई तब होती है वस्तुओं की आपूर्ति उन वस्तुओं की मांग से ज्यादा हो जाती है। इससे दाम गिर जाते हैं और कंपनियों का प्रॉफिट घट जाता है। प्रॉफिट घटता है तो कंपनियां वर्कर्स को निकलाती हैं और अपने कुछ प्लांट या स्टोर भी बंद कर देती हैं।