सार्वजनिक स्थल पर जातिसूचक टिप्पणी हो तभी बनेगा एससी-एसटी एक्ट का मामला: सुप्रीम कोर्ट

सार्वजनिक स्थल पर जातिसूचक टिप्पणी हो तभी बनेगा एससी-एसटी एक्ट का मामला: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के पफैसले को खारिज करते हुए एससी-एसटी एक्ट से जुड़े एक मामले में बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा, जातिसूचक टिप्पणी जब सार्वजनिक तौर पर होगी, तभी एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला बनेगा। इससे जुडे एक मामला पहले लोवर कोर्ट में पहुंचा, वहां से अर्जी खारिज कर दी गई थी। फिर हाई कोर्ट पहुंचा, हाई कोर्ट ने FIR के आदेश जारी कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए ये बडा फैसला दिया।

जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच में हुई सुनवाई

जस्टिस एमएम सुंदरेश की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि यदि मामले में आरोप स्पष्ट नहीं है और अपराध के लिए जो तथ्य होने चाहिए उस बारे में डिटेल नहीं है तो ऐसे मामले में केस दर्ज कर छानबीन का आदेश जारी नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, एससी-एसटी एक्ट की धारा-3 कहती है कि जानबूझकर विक्टिम को जाति के आधार पर अपमानित किया गया है और ये पब्लिक के सामने हुआ हो, जबकि जो केस अभी सामने आया है, उसमें पब्लिक के सामने टिप्पणी नहीं हुई है। ऐसे में दिल्ली हाई कोर्ट के एफआईआर दर्ज करने के आदेश को खारिज किया जाता है।

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एक्ट का 80% गलत इस्तेमाल

2018 में एससी-एसटी एक्ट को लेकर देश में सबसे बड़ा हिंसक आंदोलन सामने आया था। उस समय सुप्रीम कोर्ट के मामलों के जानकार सत्यनारायण राव ने बताया था कि कोर्ट में 80% ऐसे मामले पहुंच रहे हैं, जिनमें लोग इस एक्ट का गलत इस्तेमाल करते हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश भर में 2013 में कुल 11060 एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज हुए थे। इनमें से जांच के दौरान 935 शिकायतें पूरी तरह से गलत पाई गई थी। समय के साथ इस आंकड़े में वृद्धि होती गई।

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1955 से अब तक एक्ट का सफर

— 1955 में संसद में अछूत (अपराध) एक्ट पास किया गया था। इस एक्ट को 30 जनवरी 1990 से जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सारे भारत में लागू कर दिया गया।
— 1976 में अछूत (अपराध) एक्ट को प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स एक्ट कर दिया गया।
— 1989 में इस एक्ट अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, 1989 एक्ट बना दिया गया।
— वर्ष 2015 में एक्ट में बड़ा बदलाव करते हुए जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करना भी अपराध मानते हुए कार्रवाई/सजा का प्रवधान शामिल कर दिया गया।
— आज भी इस एक्ट को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम), 1989 एक्ट के नाम से ही जाना जाता है।

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