तलाक-ए-बाइन और तलाक-ए-किनाया: मुस्लिम देशों में प्रतिबंध, लेकिन भारत में जारी, SC ने जारी किया नोटिस

तलाक-ए-बाइन और तलाक-ए-किनाया: मुस्लिम देशों में प्रतिबंध, लेकिन भारत में जारी, SC ने जारी किया नोटिस

नई दिल्ली, एक बार फिर तलाक से जुड़ा एक अलग मामला सुप्रीम कोर्ट में पहु्ंचा है। याचिकाकर्ता का कहना है कि कई इस्लामिक राष्ट्रों में इन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन भारत में ये जारी हैं। 'तलाक-ए-किनाया' और 'तलाक-ए-बाइन' को असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नोटिस जारी किया है। अदालत तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन से जुड़ी याचिकाओं के साथ कल यानी 11 अक्टूबर को इन मामलों पर सुनवाई करेगी। जस्टिस एस अब्दुल एस नज़ीर की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया और इसी तरह की याचिका के साथ इसे टैग किया। सुनवाई के दौरान सुनवाई के दौरान जस्टिस नज़ीर ने कहा, 'यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके बारे में पढ़कर मैं हैरान रह गया.' न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने पूछा कि उन्हें ऐसी शब्दावली कहां से मिल रही है।"

इस तरह के तलाक का किसी अन्य देश में चलन नहीं है 
'तलाक-ए-किनाया' और 'तलाक-ए-बाइन' की वैधता और एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक के सभी रूपों को चुनौती देते हुए कर्नाटक की एक महिला डॉक्टर सैयदा अमरीन ने दायर की है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने पीठ से कहा कि इस तरह के तलाक का किसी अन्य देश में चलन नहीं है और कई देशों में इस पर प्रतिबंध है। जनहित याचिका में केंद्र को 'लिंग तटस्थ धर्म, तलाक के तटस्थ समान आधार और सभी नागरिकों के लिए तलाक की एक समान प्रक्रिया' के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की भी मांग की गई है। उन्होंने अपनी याचिका में इस बात पर जोर दिया है कि ऐसी प्रथाएं न केवल महिला की गरिमा के खिलाफ हैं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 में दिए गए मूल अधिकारों का भी उल्लंघन करती हैं।

मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 की वैधता को भी चुनौती 
याचिकाकर्ता ने मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 की वैधता को भी चुनौती दी है और इसे सुप्रीम कोर्ट से अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने का आग्रह किया है। क्योंकि यह तलाक के इन रूपों से मुस्लिम महिलाओं को सुरक्षा देने में विफल रहता है। याचिका में तर्क दिया गया है कि तलाक ए किनाया और तलात ए बाइन और तलाक के अन्य रूप सती की तरह दुष्ट रोग हैं जिससे मुस्लिम महिलाएं परेशान हो रही हैं।

एक दुष्ट रोग है और दुर्भाग्य से मुस्लिम महिलाओँ को परेशान कर रहा है, 
याचिकाकर्ता ने मुस्लिम मैरिज डिसॉल्यूशन एक्ट, 1936 की वैधता को भी चुनौती दी है। याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से इसे अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने का आग्रह किया, क्योंकि यह तलाक के इन रूपों से मुस्लिम महिलाओं को सुरक्षित करने में विफल रहता है। याचिका में तर्क दिया गया है कि तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बाइन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य रूप सती के समान एक दुष्ट रोग है और दुर्भाग्य से मुस्लिम महिलाओँ को परेशान कर रहा है, जो बेहद गंभीर स्वास्थ्य, समाजिक, आर्थिक स्थिति पैदा करता है।

जानिए क्या है पूरा मामला
याचिकाकर्ता ने बताया कि उसके माता-पिता को दहेज देने के लिए मजबूर किया गया था और बाद में बड़ा दहेज नहीं मिलने पर उसे प्रताड़ित किया गया। जब उसके पिता ने दहेज देने से इनकार कर दिया, तो उसके पति ने उसे एक काजी और वकील के माध्यम से तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बाइन दि दिया। याचिकाकर्ता ने बताया कि उसके पति और उसके परिवार ने पिटाई करने के साथ-साथ मौखिक रूप से उसे खूब प्रताड़ित भी किया। पिटाई के दौरान याचिकाकर्ता को गंभीर चोटें आई और कई फ्रैक्चर भी हुए। अक्टूबर 2021 में उसके पति ने उसे उसके माता-पिता के घर छोड़ दिया और जनवरी 2022 में तलाक-ए-किनया और तलाक-ए-बाइन दे दिया।

जनवरी 2022 तक मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों को दरकिनार किया गया
याचिका में कहा गया है कि जनवरी 2022 तक मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों को दरकिनार किया गया, जिसमें कहा गया है कि 'काजी विवादों को निपटाने के लिए मध्यस्थ के रूप में कार्य कर सकते हैं, लेकिन उन्हें स्थगित नहीं कर सकते हैं और एक डिक्री की तरह आदेश पारित कर सकते हैं।'याचिका में कहा गया है कि तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बैन मनमाने ढंग से तर्कहीन हैं और न केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के विपरीत हैं बल्कि पूरी तरह से नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के खिलाफ हैं। इसलिए, याचिकाकर्ता तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बैन की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रहा है।

अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन 
याचिका में कहा गया है, ''धार्मिक अधिकारी और इमाम मौलवी काजियों आदि, जो तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बाइन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य रूपों का प्रचार, समर्थन और अधिकृत करते हैं, अपनी स्थिति, प्रभाव का घोर दुरुपयोग कर रहे हैं और मुस्लिम महिलाओं को इस तरह के घोर व्यवहार के अधीन करने की शक्ति जो उन्हें संपत्ति के रूप में मानती है, जिससे अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 में निहित उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।''

जानिए तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बाइन का अर्थ?
किनाया शब्दों के माध्यम से तलाक-ए-किनाया/तलाक-ए-बाइन दिए जाते हैं। जिनका अर्थ है कि मैं तुम्हें आजाद करता हूं, अब तुम आजाद हो, तुम/यह रिश्ता 'हराम' है, तुम अब मुझसे अलग हो आदि हो सकते हैं।

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