विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को बसपा से मिली मजबूत चुनौती

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को बसपा से मिली मजबूत चुनौती
khemraj morya शिवपुरी। शिवपुरी जिले की विधानसभा सीटों पर जहां मुख्य तौर पर संघर्ष कांग्रेस और भाजपा के बीच होता रहा है, लेकिन पहली बार जिले में बसपा थर्ड फोर्स के रूप में सामने आई है। बसपा उम्मीद्वार पांच में से कम से कम चार विधानसभा सीटों पर काफी मजबूती से चुनाव लड़े। इनमें से दो सीटों पर बसपा जहां जीतने की लड़ाई में जूझी हुई है वहीं शेष दो सीटों पर भले ही उसे जीत हासिल न हो, लेकिन वह खेल बिगाडऩे की स्थिति में अवश्य है। [caption id="attachment_6" align="alignnone" width="300"] bhavtarini[/caption] शिवपुरी जिले की पांच विधानसभा सीटों में से तीन सीटों पर कांग्रेस और भाजपा जहां सीधे संघर्ष की स्थिति में हैं वहीं शेष दो सीटों करैरा और पोहरी में बसपा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। मतदान समाप्त होने के बाद किस विधानसभा सीट पर किसे विजयश्री हासिल होगी इसके अनुमान लगना शुरू हो गए हैं। शिवपुरी विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया और कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ लढ़ा के बीच मुख्य मुकाबला है। हालांकि मैदान में शेष 11 प्रत्याशी भी हैं। इनमें बसपा, सपाक्स, आम आदमी पार्टी सहित निर्दलीय उम्मीद्वार हैं। मतदान समाप्त होने के बाद अब जीत हार का गणित लगना शुरू हो गया है। कल शाम छह बजे से भाजपा प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया ने अपने चुनावी कार्यालयों में बैठकर विभिन्न मतदान केन्द्रों का फीडबैक लिया। इस विधानसभा क्षेत्र में शहर में भाजपा मजबूत मानी जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में यशोधरा राजे सिंधिया शहर से लगभग 16 हजार मतों से विजयी हुई थीं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी शहर से 15 हजार मतों से पीछे रहना पड़ा था और भाजपा के शिवपुरी के लिए अंजान प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया को बढ़त हासिल हुई थी। कल मतदान के दिन यशोधरा राजे सिंधिया मुख्य तौर पर शहरी क्षेत्र में सक्रिय रहीं ताकि यहां अपनी स्थिति अधिक से अधिक मजबूत कर सकें। शहर की निचली गरीब बस्तियों में भाजपा प्रत्याशी को अच्छा समर्थन मिलने के समाचार हैं। हालांकि भाजपा का प्रतिबद्ध मतदाता कहा जाने वाले वैश्य वर्ग में कांग्रेस ने कुछ सेंध अवश्य लगाई है। ब्राह्मण मतदाता भी भाजपा से नाराज से नजर आए। बसपा प्रत्याशी मोहम्मद इरशाद राईन को भी पार्टी के परम्परागत मतों का अच्छा समर्थन हासिल हुआ। इससे कांग्रेस को नुकसान की आशंका है। शहरी क्षेत्र में भाजपा को जहां बढ़त की उम्मीद है वहीं कांग्रेस की आशाओं का केन्द्र ग्रामीण क्षेत्र है। पिछले विधानसभा चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों में यशोधरा राजे को पांच हजार मतों से हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में माना जा रहा है कि भाजपा का खाता खुला तो शुरूआत शिवपुरी से होगी। पोहरी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीद्वार सुरेश राठखेड़ा, भाजपा उम्मीद्वार प्रहलाद भारती और बसपा उम्मीद्वार कैलाश कुशवाह के बीच जबर्दस्त घमासान है। मतदान के बाद जो आंकलन सामने आएं हैं उसका निष्कर्ष है कि मुकाबला चाहे कांग्रेस प्रत्याशी से हो अथवा भाजपा प्रत्याशी से, सामने बसपा प्रत्याशी कैलाश कुशवाह होंगे। देखना यह है कि इस विधानसभा क्षेत्र में बसपा उम्मीद्वार कैलाश कुशवाह जीतेंगे अथवा किसी का खेल बिगाड़ेंगे। करैरा विधानसभा क्षेत्र में देखने को मुख्य संघर्ष कांग्रेस उम्मीद्वार जसवंत जाटव और बसपा उम्मीद्वार प्रागीलाल जाटव के बीच माना जा रहा है। मतदान के बाद जिस तरह की सूचनाएं सामने आईं हैं उससे लगता है कि दोनों में से कोई उम्मीद्वार किसी से कम नहीं है, लेकिन यह भी साफ है कि दोनों ही उम्मीद्वार एक दूसरे के मतों में सेंध लगा रहे हैं और इसका फायदा भाजपा उम्मीद्वार राजकुमार खटीक को मिल सकता है। कांग्रेस और बसपा के बीच जबर्दस्त घमासान में भाजपा उम्मीद्वार राजकुमार खटीक कहीं छुपा रूस्तम न साबित हो जाएं। कोलारस विधानसभा क्षेत्र में जिस तरह का भितरघात कांग्रेस और भाजपा में हुआ उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं है। भाजपा प्रत्याशी वीरेन्द्र रघुवंशी महल विरोधी माने जाते हैं और उनकी चुनाव में चौतरफा घेराबंदी की गई। इस विधानसभा क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सर्वाधिक तीन आमसभाओं को संबोधित किया और भावनात्मक आधार पर कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र यादव ने यहां तक कहा कि कांग्रेस की सरकार बनने पर वह यहां से इस्तीफा देंगे और सिंधिया कोलारस का प्रतिनिधित्व करेंगे। श्री रघुवंशी को हराने के लिए कोलारस भाजपा के बड़े से बड़े नेता पूरी ताकत से जुटे रहे। कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र यादव की जड़ों में मठा डालने का काम कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने किया। इसके बाद भी इस विधानसभा क्षेत्र में काफी जोरदार मुकाबला माना जा रहा है। कांग्रेस और भाजपा में से कोई भी यहां से जीत हासिल कर सकता है, लेकिन यह अवश्य कहा जा रहा है कि भाजपा की जीत जहां कम अंतर की होगी वहीं कांग्रेस प्रत्याशी जीते तो अधिक मतों से जीतेंगे। पिछोर विधानसभा क्षेत्र में पहली बार पांच बार से जीत रहे कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह की सीट संकट में फंसी हुई नजर आ रही है। इस विधानसभा क्षेत्र में उनके खिलाफ एंटीइनकम्वंशी फैक्टर का प्रभाव देखने को मिला वहीं भाजपा प्रत्याशी प्रीतम लोधी को भाजपा सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं और पिछले चुनाव में कम अंतर से हार का फायदा मिलता हुआ दिख रहा है। यहां भी मुकाबला काफी नजदीकी हो सकता है।