PM मोदी का ब्लॉग वार, वंश की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकती है कांग्रेस

नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव की जंग इस बार ना सिर्फ रैलियों में लड़ी जा रही है बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी पक्ष-विपक्ष आमने-सामने हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार सुबह ब्लॉग लिखकर कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा, उन्होंने वंशवाद-लोकतंत्र-संसद समेत के कई मुद्दों पर कांग्रेस को घेरा. प्रधानमंत्री ने गिनाया कि उनके कार्यकाल के दौरान कई काम ऐसे हुए हैं जो कांग्रेस सरकारों के दौरान नहीं हुए थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा कि इमरजेंसी लागू कर कांग्रेस ने साबित किया कि वह एक वंश की रक्षा करने के लिए किस हद तक जा सकती है.
प्रधानमंत्री ने लिखा कि 2014 में देशवासी इस बात से बेहद दुखी थे कि हम सबका प्यारा भारत आखिर फ्रेजाइल फाइव देशों में क्यों है? क्यों किसी सकारात्मक खबर की जगह सिर्फ भ्रष्टाचार, चहेतों को गलत फायदा पहुंचाने और भाई-भतीजावाद जैसी खबरें ही हेडलाइन बनती थीं.
तब आम चुनाव में देशवासियों ने भ्रष्टाचार में डूबी उस सरकार से मुक्ति पाने और एक बेहतर भविष्य के लिए मतदान किया था, वर्ष 2014 का जनादेश ऐतिहासिक था. भारत के इतिहास में पहली बार किसी गैर वंशवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था.
जब कोई सरकार ‘Family First’ की बजाए ‘India First’ की भावना के साथ चलती है तो यह उसके काम में भी दिखाई देता है. पीएम ने लिखा कि यह हमारी सरकार की नीतियों और कामकाज का ही असर है कि बीते पांच वर्षों में, भारत दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ब्लॉग में संसद के कामकाज, प्रेस की अभिव्यक्ति, संविधान-न्यायालय और सरकारी संस्थानों के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरा. उन्होंने कहा कि लोकसभा में गैर वंशवादी सरकार थी इसलिए काम हुआ जबकि राज्यसभा में काम नहीं हुआ पाया क्योंकि वहां हंगामा होता रहा. पीएम ने अपने ब्लॉग में इमरजेंसी का मुद्दा भी उठाया.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा शुरू किए गए 'मैं भी चौकीदार' कैंपन ने भी सोशल मीडिया पर धूम मचाई हुई है, बीते दिनों ट्विटर के जारी रिपोर्ट के मुताबिक इस कैंपेन ने सोशल मीडिया पर चौकीदार चोर है को पछाड़ दिया है.
वह 2014 की गर्मियों के दिन थे, जब देशवासियों ने निर्णायक रूप से मत देकर अपना फैसला सुनाया:
परिवारतंत्र को नहीं, लोकतंत्र को चुना.
विनाश को नहीं, विकास को चुना.
शिथिलता को नहीं, सुरक्षा को चुना.
अवरोध को नहीं, अवसर को प्राथमिकता दी.
वोट बैंक की राजनीति के ऊपर विकास की राजनीति को रखा.
2014 में देशवासी इस बात से बेहद दुखी थे कि हम सबका प्यारा भारत आखिर फ्रेजाइल फाइव देशों में क्यों है? क्यों किसी सकारात्मक खबर की जगह सिर्फ भ्रष्टाचार, चहेतों को गलत फायदा पहुंचाने और भाई-भतीजावाद जैसी खबरें ही हेडलाइन बनती थीं.
तब आम चुनाव में देशवासियों ने भ्रष्टाचार में डूबी उस सरकार से मुक्ति पाने और एक बेहतर भविष्य के लिए मतदान किया था. वर्ष 2014 का जनादेश ऐतिहासिक था. भारत के इतिहास में पहली बार किसी गैर वंशवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था. जब कोई सरकार ‘Family First’ की बजाए ‘India First’ की भावना के साथ चलती है तो यह उसके काम में भी दिखाई देता है
यह हमारी सरकार की नीतियों और कामकाज का ही असर है कि बीते पांच वर्षों में, भारत दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया है. हमारी सरकार के दृढ़संकल्प का ही नतीजा है कि आज भारत ने सेनिटेशन कवरेज में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है. 2014 में जहां स्वच्छता का दायरा महज 38% था, वो आज बढ़कर 98% हो गया है.
हमारी सरकार के प्रयासों से ही हर गरीब का आज बैंक में खाता है. जरूरतमंदों को बिना बैंक गारंटी के लोन मिले हैं. भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया गया है. बेघरों को घर उपलब्ध कराए गए हैं. गरीबों को मुफ्त चिकित्सा की सुविधा मिली है और युवाओं को बेहतर शिक्षा और रोजगार के अवसर मिले हैं. आज हर क्षेत्र में हुए इस बुनियादी परिवर्तन का अर्थ यह है कि देश में एक ऐसी सरकार है, जिसके लिए देश की संस्थाएं सर्वोपरि हैं.
भारत ने देखा है कि जब भी वंशवादी राजनीति हावी हुई तो उसने देश की संस्थाओं को कमजोर करने का काम किया.
संसद:
16वीं लोकसभा की कुल प्रोडक्टिविटी शानदार तरीके से 85% रही, जो 15वीं लोकसभा से कहीं अधिक है.
वहीं 2014 से 2019 के बीच राज्यसभा की प्रोडक्टिविटी 68% रही.
अंतरिम बजट सत्र में लोकसभा की प्रोडक्टिविटी जहां 89% रही, वहीं राज्यसभा में यह महज 8% देखी गई.
दोनों सदनों की प्रोडक्टिविटी के इन आंकड़ों का क्या अर्थ है, इसे देश भली-भांति जानता है. यह स्पष्ट हो जाता है कि जब भी किसी गैर वंशवादी पार्टी की संख्या सदन में अधिक होती है तो उसमें स्वाभाविक रूप से अधिक काम करने की प्रवृत्ति होती है. देशवासियों को यह पूछना चाहिए कि आखिर राज्यसभा ने उतना काम क्यों नहीं किया, जितना लोकसभा में हुआ? वे कौन सी शक्तियां थीं, जिन्होंने सदन के भीतर इतना हंगामा किया और क्यों?
प्रेस और अभिव्यक्ति:
वंशवाद को बढ़ावा देने वाली पार्टियां कभी भी स्वतंत्र और निर्भीक पत्रकारिता के साथ सहज नहीं रही हैं. कोई आश्चर्य नहीं कि कांग्रेस सरकार द्वारा लाया गया सबसे पहला संवैधानिक संशोधन फ्री स्पीच पर रोक लगाने के लिए ही था. फ्री प्रेस की पहचान यही है कि वो सत्ता को सच का आईना दिखाए, लेकिन उसे अश्लील और असभ्य की पहचान देने की कोशिश की गई.