बगावत रोकने कांग्रेस असंतुष्टों को बाट रही पद वाली रेवडी

बगावत रोकने कांग्रेस असंतुष्टों को बाट रही पद वाली रेवडी
भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में नाम वापसी के लिए बुधवार तीन बजे तक का समय बचा है और अभी तक अपनी पार्टियों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकने वाले कई बागी पटरी पर नहीं लौट पाए हैं। इस कारण भाजपा-कांग्रेस दोनों का ही टेंशन बढ़ गया है। लिहाजा इन असंतुष्टों को मनाने के लिए संगठनात्मक स्तर पर रेवड़ी की तरह पद बांटे जा रहे हैं। इस मामले में भाजपा के बजाय कांग्रेस ज्यादा आगे निकली दिखाई दे रही है। क्योंकि प्रदेश कार्यकारिणी में स्थान देकर असंतुष्टों को संतुष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। जबकि इस स्थिति के लिए पार्टी के ही वरिष्ठ नेता जिम्मेदार बताए जाते हैं। क्योंकि सीमित टिकट की संख्या की जानकारी होने के बाद भी पार्टी से जुड़े उन व्यक्तियों को भी संभावित प्रत्याशी बता दिया गया, जिनकी हैसियत वार्ड में पार्षद या पंच का चुनाव जीतने की नहीं है। लेकिन टिकट की फेहरिस्त से नाम गायब कर दिया गया। लिहाजा इन नेताओं का असंतोष सामने आने लगा। मामला सिर्फ विपक्षी दल कांग्रेस तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि सत्तारूढ़ भाजपा भी इससे अछूती नहीं रही है। आंकलन इसी से किया जा सकता है कि बड़े स्तर पर ही कांग्रेस के 24 प्रत्याशी और भाजपा के 14 मंत्रियों के सामने बागी मुसीबत बनकर सामने खड़े हो गए। इनके अलावा वह छोटे-छोटे कार्यकर्ता व पदाधिकारी भी हैं, जो सौ-पचास वोट के दम पर संगठन नेताओं को लोकप्रियता का भय दिखा रहे हैं। लिहाजा सत्ता के मार्ग में चुनौती बन रहे ऐसे असंतुष्टों को साधने की गरज से संगठन रेवड़ी की तरह पद बांटने लगा है। क्योंकि जातिवाद, एंटीइंकम्बेंसी के कारण इन बागियों को ताकत मिली है। इसको समझते हुए ही डैमेज कंट्रोल के तहत भाजपा ने कुछ नए कार्यकारी जिलाध्यक्ष भी घोषित कर दिए हैं। आंकलन इसी से किया जा सकता है कि गरोठ के विधायक चंदर सिंह सिसोदिया ने जब टिकट कटने के बाद बगावती तेवर अपनाए तब संगठन ने उन्हें मंदसौर का कार्यकारी जिलाध्यक्ष बनाया गया है। क्योंकि जिलाध्यक्ष देवीलाल धाकड़ को भाजपा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद यहां विरोध की प्रबल संभावना थी। यही नहीं प्रदेश के दूसरे स्थानों पर भी इन बागियों को देखते हुए सीधे प्रकोष्ठों और मोर्चा का दायित्व सौंपते हुए ऐन चुनाव के वक्त मुख्य कार्यकारिणी में जगह दी जा रही है। सीधे प्रदेश महासचिव व प्रवक्ता का पद मौजूदा समय में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं दिखाई देता है। लिहाजा वह असंतुष्टों को पद देकर खुश करने में लगी है। आंकलन इसी से किया जा सकता है कि टिकट के लिए दावेदारी कर रहे सतना के जिला उपाध्यक्ष को जहां प्रदेश सचिव बना दिया गया है। वहीं दूसरी ओर राजधानी की हुजूर सीट से दावेदारी निरस्त होने के बाद बगावत पर उतारू विष्णु विश्वकर्मा को सचिव बना दिया गया। संगठन महामंत्री चंद्रप्रभाष शेखर के हस्ताक्षर से पदाधिकारी बनाने का सिलसिला यही बंद नहीं हुआ है क्योंकि किसी को महासचिव बनाया जा रहा है, तो किसी को मीडिया विभाग में प्रवक्ता बनाकर कांग्रेस संगठन में जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। हाल ही में प्रवक्ता बनाए गए मो. सरवर, मुन्नवर कौसर, और प्रवीण धौलपुर के नाम अहम हैं। इसके पहले कई नेताओं को जिला कार्यकारिणी की जिम्मेदारी सौंपकर जिले का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया था।