rajesh dwivedi
सतना। मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) फिलहाल सभी सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला बेशक बसपा हाईकमान ने लिया हो लेकिन बसपा के शीर्ष प्रबंधन द्वारा लिए गए इस निर्णय का असर कई कांग्रेसियों में देखा जा रहा है। बसपा के इस फैसले ने कांग्रेस की टिकट के रेस में शामिल ऐसे कांग्रेसियों के चेहरे पर मुस्कान ला दी है जिन्हें आशंका थी कि कांग्रेस-बसपा के गठबंधन के चलते उनकी टिकट पर कैंची चल सकती थी।

हालांकि बसपा-कांग्रेस गठबंधन के हिमायती अभी भी आशान्वित हैं कि मप्र की कुछ सीटों पर बसपा के प्रभाव को देखते चुनावी बेला नजदीक आने तक गठबंधएनर की खिचड़ी पक सकती है , लेकिन पार्टी नेतृत्व ने पदाधिकारियों और कार्यकतार्ओं को जिस प्रकार से बूथ स्तर तक संगठन मजबूत करने के साथ ही प्रचार के निर्देश दिए हैं, उससे जानरकार कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावना कम ही जता रहे हैं। ऐसे में हाथी की सवारी कर सतना समेत समूचे राज्य में जीत का फार्मूला तलाशने की कांग्रेस की कवायद धुंधली पड़ती नजर आ रही है ।
गठबंधन के बारे में कोई निर्देश नहीं
याद कीजिए पिछले दिनों बसपा प्रदेशाध्यक्ष नर्मदा प्रसाद अहिरवार द्वारा भोपाल में आयोजित की गई उस प्रेस वार्ता को जिसमें उन्होने गठबंधनर के सवाल पर स्पष्ट किया था कि फिलहाल पार्टी नेतृत्व ने ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया है। पार्टी सभी सीटों पर अपनी तैयारी कर रही है। इसी प्रेस वार्ता में राष्ट्रीय महासचिव रामअचल राजभर ने भी कहा था कि हमारी पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। हम जमीनी स्तर पर अपना संगठन तैयार कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से ही गठबंधन की चचार्ओं पर विराम लगाने के लिए कहा गया है जिसके बाद से गठबंधनर के सवाल पर बसपा के प्रदेश पदाधिकारियों ने यह पालिटिकल स्टैंड लिया है।
उपचुनाव के दौरान कांग्रेस ने किया था भुनाने का प्रयास
जिले में बसपा के प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता है। बसपा के प्रभाव का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जहां बसपा एक मर्तबा यहां सांसद दे चुकी है, वहीं तीन विधानसभा सीटों पर बसपा के विधायक भी बन चुके हैं। जिलेवासियों के जेहन से अभी भी चित्रकूट उपचुनाव के दौरान कांग्रेस द्वारा बसपा से गठबंधन होने की उड़ाई गई अफवाहों की यादें ताजा है।