गुरु हरगोबिंद सिंह की जयंती आज, उन्होंने सिखों को बनाया योद्धा

सिखों के छठें गुरु हरगोबिंद सिंह के बारे में कहा जाता है कि उन्‍होंने ही सिख समुदाय को सेना के रूप में संगठित होने के लिए प्रेरित किया था। आज उनकी जयंती के उपलक्ष्‍य में हम जानेंगे उनके जीवन से जुड़ी अन्‍य खास बातें… 11 साल की उम्र में ही मिल गई गुरु की उपाधि गुरु हरगोबिंद सिंह का जन्‍म माता गंगा और पिता गुरु अर्जुन देव के यहां 21 आषाढ़ (वदी 6) संवत 1652 को हुआ था। सन 1606 में ही उन्‍हें 11 साल की उम्र में गुरु की उपाधि मिल गई। उनको अपने पिता और सिखों के 5वें गुरु अर्जुन देव ये यह उपाधि मिल गई। मुगल शासक जहांगीर के आदेश पर गुरु अर्जुन सिंह को फांसी दे दी गई। फिर गुरु हरगोबिंद सिंह ने सिखों का नेतृत्‍व संभाला। जीते जी अपने पिता के निर्देशानुसार उन्‍होंने सिख पंथ को एक योद्धा के चरित्र के रूप में स्‍थापित किया। गुरु हरगोबिंद सिंह ने धारण कीं दो तलवारें शांति और ध्‍यान में रहने वाली कौम को क्रांतिकारी रूप प्रदान करने के लिए हर गोबिंद सिंह ने दो तलवारें धारण करनी शुरू कीं। उनकी एक तलवार का नाम पिरी और एक का नाम मिरी था। कहा जाता है कि पिरी को उन्‍होंने आध्‍यात्मिक शक्ति के लिए और सैन्‍य शक्ति के लिए मिरी को धारण किया था। मुगलों के अत्‍याचार को रोकने के लिए बढ़ाए कदम सन 1627 में हुई जहांगीर की मृत्‍यु के बाद मुगलों के नए बादशाह शाहजहां ने सिखों पर और अधिक कहर ढहाना शुरू कर दिया। तब अपने धर्म की रक्षा के लिए हरगोविंद सिंह को आगे आना पड़ा। पूर्व में स्‍थापित आदर्शों में हरगोविंद सिंह ने यह आदर्श भी जोड़ा कि सिखों को यह अधिकार है कि अगर जरूरत हो तो वे तलवार उठाकर भी अपने धर्म की रक्षा कर स‍कते हैं। 12 वर्षों तक रहे कैद सिखों द्वारा बगावत किए जाने के बाद मुगल शासन काल में उन्‍हें 12 वर्ष तक कैद में डाल दिया गया। रिहा होने के बाद उन्‍होंने शाहजहां के खिलाफ बगावत शुरू कर दी। सन 1628 में अमृतसर के निकट युद्ध में मुगल फौज को हरा दिया। अंत में उन्‍हें कश्‍मीर के पहाड़ों में जाकर शरण लेनी पड़ी। यहां रहते हुए सन 1644 में पंजाब के कीरतपुर में उनकी मृत्‍यु हो गई। सिखों के गुरु के रूप में उनका कार्यकाल सबसे अधिक था। उन्‍होंने 37 साल, 9 महीने, 3 दिन तक अपने उत्‍तरदायित्‍व का निर्वहन किया। गुरु हरगोविंद की थीं तीन पत्नियां गुरु हरगोविंद सिंह ने 3 विवाह किए थे। दामोदरी, नानकी और महादेवी उनकी 3 पत्नियां थीं। तीनों पत्नियों से उनकी कई संतानें थीं। उनके जीवित रहते ही उनके दो बड़े पुत्र स्‍वर्गवासी हो गए। उनकी पत्‍नी नानकी के पुत्र तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु बने। गुरु हरगोबिंद सिंह ने अपने पोते गुरु हर राय को सिखों का सातवां गुरु बनाया। अकाल तख्‍त का किया निर्माण उन्‍होंने अपने कार्यकाल में ही सिखों के मामलों के फैसले के लिए अकाल तख्‍त का निर्माण किया। सिखों की यह अदालत आज भी अमृतसर में हरमिंदर साहिब के सामने स्थित है।