आरक्षण व्यवस्था की जगह ‘मेरिट’ के आधार पर एडमिशन, नियुक्ति और प्रमोशन होना चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट

आरक्षण व्यवस्था की जगह ‘मेरिट’ के आधार पर एडमिशन, नियुक्ति और प्रमोशन होना  चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट

नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने बीते बुधवार को कहा कि आरक्षण की वर्तमान प्रवृत्ति जाति व्यवस्था को मजबूत कर रही है और ‘मेरिट’ के आधार पर अवसर दिए जाने चाहिए। लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और जस्टिस पीडी ऑडीकेसावालु की पीठ ने आरक्षण को लेकर ऐसी कई टिप्पणियां की।

कोर्ट द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) पार्टी द्वारा दायर उस अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मेडिकल कॉलेज की सीटों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की घोषणा के संबंध में केंद्र सरकार के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी। उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी, लेकिन फुटनोट में आरक्षण प्रणाली पर टिप्पणियों को दर्ज किया। उच्च न्यायालय ने कहा कि जाति व्यवस्था का ‘सफाया’ करने के बजाय मौजूदा व्यवस्था के तहत आरक्षण को बढ़ाया जा रहा है, जो कि कुछ समय के लिए था।

उन्होंने कहा कि देश को ‘और परिपक्व’ होने की जरूरत है। पीठ ने कहा कि देश की आजादी को 70 सालों से अधिक का समय बीत गया है, ऐसे में हमें अधिक परिपक्व होने की आवश्यकता है। पीठ ने कहा, ‘अब समय आ गया है कि देश के नागरिकों को इतना सशक्त किया जाए कि आरक्षण व्यवस्था की जगह ‘मेरिट’ के आधार पर एडमिशन, नियुक्ति और प्रमोशन हो।’

समाज का एक वर्ग ‘मेरिट’ को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है कि यह तमाम असमानताओं को खत्म कर सकता है और जो असली हकदार होगा, उसी को लाभ मिलेगा।  पीठ ने कहा कि आरक्षण लाने के पीछे संविधान सभा का जो उद्देश्य था, उसमें बार-बार संशोधन करके उसे उलट दिया गया है। इसने यह भी कहा कि उन संप्रदायों के लिए भी आरक्षण दिया गया है, जहां जाति व्यवस्था मौजूद नहीं है।

कानूनी विद्वान कैलाश जीनगर ने अपने एक लेख में कहा है कि संविधान सभा ने, विशेष रूप से, एक समयबद्ध सीमा में आरक्षण की अनुमति देने के प्रस्तावों को खारिज कर दिया था और सामाजिक पिछड़ेपन का कारण बनने वाले कारकों के खत्म होने तक इसकी निरंतरता की परिकल्पना की थी।

बहरहाल इन टिप्पणियों के साथ मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र द्वारा हाल में जारी उस अधिसूचना को मंजूरी दे दी, जिसमें चिकित्सा महाविद्यालयों में प्रवेश के लिए अखिल भारतीय कोटे (एआईक्यू) के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था।

तमिलनाडु के लिए और आरक्षण के लिए दाखिल याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि स्नातक, परास्नातक और मेडिकल डिप्लोमा, दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए एआईक्यू सभी राज्यों में समान होना चाहिए। तार्किक रूप से अगर उम्मीदवारों को पूरे देश में सीटें दी गई हैं तो एक स्तर तक एक राज्य में और दूसरे स्तर पर दूसरे राज्य में आरक्षण नहीं होना चाहिए।

इसके साथ ही अदालत ने सत्तारूढ़ द्रमुक द्वारा दायर अवमानना याचिका को बंद कर दिया, जिसमें जुलाई 2020 के अदालत के आदेश को नहीं लागू करने पर संबंधित केंद्रीय अधिकारियों पर अवमानना की कार्यवाही करने का अनुरोध किया गया था।

पिछले साल तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एपी शाही की अगुवाई वाली पीठ ने अपने आदेश में अन्य बातों के साथ याचिकाकर्ता द्वारा किए गए दावे के अनुरूप आरक्षण लागू करने के लिए समिति गठित करने का निर्देश दिया था। अदालत ने कहा था कि समिति आरक्षण का प्रतिशत तय कर सकती है।