आसान नहीं है मायावती-अखिलेश का गठबंधन, मुस्लिम बहुल सीटों पर फंस सकता है पेच

आसान नहीं है मायावती-अखिलेश का गठबंधन, मुस्लिम बहुल सीटों पर फंस सकता है पेच

 
नई दिल्ली   
     
आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में महागठबंधन का स्वरूप तय हो गया है. जबकि सीटों के लिहाज से हिंदी पट्टी के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में दो बड़े विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (एसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) में गठबंधन की बात कही जा रही है. यूपी में पिछले दिनों हुए लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में एसपी-बीएसपी गठबंधन को मिली अप्रत्याशित सफलता को देखते हुए यह तय माना जा रहा है कि दोनों सियासी दल आम चुनाव साथ लड़ेंगे. लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि बीएसपी आमतौर पर उपचुनाव नहीं लड़ती. लिहाजा, उपचुनाव में बीएसपी के लिए गठबंधन बड़ी बात नहीं थी.

पांच राज्यों में हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के बाद अब सभी सियासी दलों ने आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. लेकिन सबकी निगाहें उत्तर प्रदेश में टिकी हैं जहां एक- दूसरे के धुर विरोधी दल एसपी और बीएसपी के एक साथ चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. हालांकि, यह इतना आसान नहीं होगा क्योंकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती को मोलभाव के मामले में बहुत कड़ा माना जाता है. फिलहाल, बीएसपी के लोकसभा में एक भी सांसद नहीं हैं. जबकि हाल में हुए गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव को मिलाकर एसपी के 7 सांसद हैं.

34 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी बीएसपी, 31 पर एसपी

आम तौर पर गठबंधन को लेकर जो फॉर्मूला तय होता है उसमें जिस सीट पर जिसका कब्जा होता है वो तो उसी को मिलती है. फिर देखा जाता है कि पिछले चुनाव में किस सीट पर उस राजनीतिक दल का उम्मीदवार दूसरे स्थान पर था. इस लिहाज से यदि 2014 के आम चुनावों को आधार पर बनाया जाए तो बीएसपी 34 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी और समाजवादी पार्टी 31 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी. वहीं 80 लोकसभा सीटों में बाकी की बची सीटों को वोट प्रतिशत के आधार पर बांटा जा सकता है. लेकिन एसपी-बीएसपी गठबंधन में असल पेच मुस्लिम बहुल सीटों पर फंस सकता है.

माया ने 100 मुस्लिमों को दिया था विधासभा का टिकट

यादव-मुस्लिम समीकरण को अपना आधार मानने वाली समाजवादी पार्टी अपना अल्पसंख्यक आधार खोना नहीं चाहेगी. वहीं, बहुजन समाज पार्टी लगातार अल्पसंख्यकों को अपने खेमे में लाने का प्रयास करती रही है. इसी उद्देश्य से साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने 100 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था. जबकि एसपी, कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी थी. ऐसे में एसपी और बीएसपी के उम्मीदवारों में वोटों का बिखराव हो गया जिसका फायदा बीजेपी को हुआ.

ये हैं खास मुस्लिम बहुल सीटें

मुस्लिम आबादी के लिहाज से रामपुर, मुरादाबाद, सहारनपुर, बिजनौर और अमरोहा ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां मुस्लिम आबादी 35 से 50 फीसदी के बीच है. वहीं मेरठ, कैराना, बरेली, मुजफ्फरनगर, संभल, डुमरियागंज, बहराइच, कैसरगंज, लखनऊ, शाहजहांपुर और बाराबंकी में मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से ज्यादा और 35 फीसदी से कम है. हाल के दिनों में बहुजन समाज पार्टी ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपना अल्पसंख्यक आधार बढ़ाया है. लिहाजा, यही वो सीटें हैं जिन्हें लेकर पेच फंस सकता है.

इसके बाद बात उन सीटों की आएगी, जहां एसपी और बीएसपी दोनों ही दूसरे स्थान पर नहीं रहीं. ऐसी स्थिति में जातीय समीकरण मायने रखेंगे और जातियों को लेकर जिन सीटों पर जिनका पलड़ा भारी रहेगा उन्हें वे सीटे मिलेंगी. लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान और छ्त्तीसगढ़ के विधानसभा के अनुभव को देखा जाए तो महज कुछ सीटों की ऊंच- नीच पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने का एकतरफा फैसला ले लिया था.