शाही अंदाज में शुरू हुई श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा की पेशवाई
प्रयागराज
तीर्थराज प्रयाग में आयोजित होने वाला आध्यात्मिक पर्व कुंभ मेला बसाने के लिए परंपरागत ढंग से शाही अंदाज में श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा में आराध्य देव भुवन भास्कर भगवान सूर्यनारायण की वैदिक मंत्रोच्चार द्वारा पूजा-पाठ संपन्न होने के बाद परंपरागत पेशवाई गाजे-बाजे के साथ शुरू हुई। कुंभ नगरी में लगने जा रहे विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक मेले के लिए शुक्रवार को हाथी, घोड़े, ऊंट और बैंड बाजे के साथ शैव सन्यासी सम्प्रदाय की तपोनिधि आनंद अखाड़ा की पेशवाई बाघम्बरी गद्दी के निकट स्थित आनंद अखाड़ा के आश्रम से लकझक पेशवाई शुरू हुई। पेशवाई में चांदी के हौदों पर अखाड़ा के आचार्य, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर और अन्य साधु संत सवार थे।
पेशवाई का नेतृत्व अखाड़ा के आचार्य पीठाधीश्वर बालकानंद गिरी कर रहे हैं। पेशवाई बाघम्बरी गद्दी के निकट स्थित आश्रम से शुरू होकर बक्सी बांध पुलिस चौकी, शास्त्री पुल के नीचे से, पक्की सडक मार्ग, मोरीगंज मार्ग होते हुए गंगा पार झूंसी स्थित सेक्टर 16 में स्थापित मेला छावनी शिविर में पहुंचेगी। पेशवाई में सबसे आगे हाथी पर सवार साधु-महात्मा विराजमान थे और उनके पीछे अखाड़े की धर्म ध्वजा फहरा रही थी। ध्वजा के पीछे घोड़े पर सवार नागा साधुओं का समूह चल रहा था। इस समूह के पीछे पालकी में आराध्य भगवान सूर्य नारायण विराजमान थे। इनके पीछे चांदी के हौदे पर अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर ज्ञानानंदजी महाराज समेत महमंड़लेश्वर, मंडलेश्वर, महंत आदि चल रहे थे।
शोभायात्रा की भव्यता और साधु-संतों का दर्शन करने के लिए सैकडो लोगों में दर्शन को उत्सुकता बनी रही। विभिन्न मार्गों पर जगह-जगह शोभायात्रा में फूल-मालाओं के माध्यम से संत, महात्मा, साधु और नागा सन्यासियों को नमन किया गया। पेशवाई को देखने के लिए शाही जुलूस के दोनों ओर श्रद्धालुओं का हुजूम खड़ा था। लोग पेशवाई पर फूल वर्षा कर साधु-संतों का स्वागत कर रहे थे।
अखाड़ों के संतों के नगर प्रवेश के साथ ही प्रयागराज कुंभ की अनौपचारिक शुरुआत भी हो चुकी है। पेशवाई के शिविर में पहुंचने के बाद उस अखाड़ा के साधु-महात्मा, सन्यासी, आचार्य, महामंडलेश्वर और नागा सन्यासी शिविर में ही कुंभ मेला समाप्त होने तक रहकर पूजा-पाठ और ध्यान एवं साधना करते हैं। पेशवाई एक धार्मिक शोभा यात्रा है जिसमें अखाड़ों के आचार्य, पीठाधीश्वर, महामंडलेश्वर, साधु-संत और नागा सन्यासियों का कारवां हाथी, घोड़े और ऊंट पर सवार होकर गंगा के किनारे बनी छावनी में पहुंचता है और पूरे मेले के दौरान वहां प्रवास करता है।