कल से हो रहा है महापर्व का शुभारंभ, जानिये क्या है पूजन की सही विधि

कल से हो रहा है महापर्व का शुभारंभ, जानिये क्या है पूजन की सही विधि

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से छठ पूजा आरंभ हो जाती है जो सप्तमी तिथि तक चलती है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व का बड़ा ही महत्त्व है।
कहते हैं जो भी इस पूजा को सच्चे मन से करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है इसलिए इस त्योहार को मन्नतों का त्योहार भी कहा जाता है। आपको बता दें इस बार छठ पूजा 11 नवंबर से शुरू होकर 14 नवंबर तक चलने वाली है।

बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह त्योहार बहुत ही लोकप्रिय है लेकिन इस पूजा की महिमा ऐसी है कि आज हर जाति के लोगों की आस्था इसमें देखने को मिलती है।
इस पर्व में शुद्धता और सफाई का ख़ास ध्यान रखना पड़ता है सिर्फ तन ही नहीं बल्कि मन भी शुद्ध होना चाहिए। इसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती। आइए जानते हैं इस त्योहार से जुड़ी कुछ अन्य खास बातें।

कैसे शुरू हुई छठ पूजा की परंपरा?
वैसे तो इस महापर्व से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं उन्हीं में से एक इस प्रकार है- कहते हैं जब पांडव जुए में अपना सब कुछ हार चुके थे तब द्रौपदी ने छठ पूजा की थी और अपना सब कुछ वापस प्राप्त करने के लिए मन्नत मांगी थी। इसी व्रत के प्रताप से पांडवों को अपना सारा राज पाठ वापस मिल गया था। वहीं दूसरी ओर एक कथा के अनुसार इस पूजा की शुरुआत सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी क्योंकि छठ में सूर्यदेव की पूजा की जाती है और कर्ण सूर्यदेव का बहुत बड़ा भक्त था। वह प्रतिदिन नदी में घंटों खड़े रहकर भगवान सूर्य की पूजा करते थे।

चार दिनों तक चलता है यह पर्व
छठ पूजा पूरे चार दिनों तक चलती है इसमें उपासक को लगातर चार दिनों तक व्रत रखना पड़ता है जिन्हें परवैतिन कहते हैं। इस पर्व की शुरुआत होते ही भोजन के साथ साथ बिस्तर पर सोना भी वर्जित माना जाता है। इस दौरान शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है। यहां तक कि लहसुन और प्याज़ का भी त्याग करना पड़ता है। पहले दिन लौकी भात का कार्यक्रम होता है फिर दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन भगवान सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन भक्त उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
कहते हैं छठी मैया सूर्यदेव की बहन है।

छठ व्रत और पूजन विधि
इस पर्व में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है इसलिए सबसे पहले घर की सफाई अच्छी तरह से कर लें। नहाए-खाए के दिन महिलाएं और पुरुष नदियों में स्नान करते हैं। इस दिन विशेष रूप से चावल, चने की दाल और लौकी की सब्ज़ी बनाई जाती है इसलिए इस दिन को लौकी भात भी कहते हैं। दूसरे दिन खरना होता है इस दिन चावल और दूध के पकवान बनाए जाते हैं साथ ही ठेकुआ (घी और आटे से बना प्रसाद) बनाया जाता है। इसके अलावा फल, सब्जियों की पूजा की जाती है। तीसरे दिन शाम को डूबते हुए सूरज को व्रती नदी में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं। चौथे दिन प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

छठ का व्रत निर्जला किया जाता है इसमें 36 घंटों तक पानी की एक बूंद भी नहीं पी सकते हैं।