गठबंधन दो फाड़: सपा का अकेले का सफर मुश्किलों भरा

लखनऊ
सियासी अखाड़े में चुनावी गठजोड़ के खेल में चरखा दांव खा चुकी सपा अब अकेले चलने की तैयारी में है। पार्टी के लिए आगे का सफर मुश्किलों भरा है। गठबंधन के प्रयोगों के चक्कर में पार्टी ढाई साल में काफी पीछे जा चुकी है। ऐसे में अब उसके सामने नए सिरे से रोड मैप बना कर कार्यकर्ताओं में जोश भरने व वोट बैंक का विस्तार करने की चुनौती है। उसकी पहली परीक्षा तो बस इसी साल 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के जरिए होनी है। उसके सामने बसपा से ज्यादा सीटें जीतने की होगी।
सपा 2017 का विधानसभा चुनाव व 2019 का लोकसभा चुनाव के जरिए दो बड़े इम्तहान गठबंधन करके दे चुकी है। नतीजों ने उसे निराशा ही दी। अब उसने 2022 के विधानसभा चुनाव के रूप में तीसरा इम्तहान अपने बूते देने का ऐलान किया है।
सपा को अब यह अहसास तो हो गया है कि कांग्रेस व बसपा के साथ समझौता करने से उसे कोई खास फायदा तो नहीं हुआ उल्टे नुकसान जरूर हो गया। नुकसान केवल वोटों व सीटों की शक्ल में नहीं बल्कि संगठन की उपेक्षा की कीमत पर भी हुआ है। अब अखिलेश यादव को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी।
यादव वोट में सेंध
बसपा का आरोप है कि सपा अपना यादव वोट बैंक सहेज नहीं पाई और इसे गठबंधन प्रत्याशियों को ट्रांसफर नहीं करा पाई। इसके उलट यादव वर्ग भाजपा की ओर चला गया। ऐसा ही आरोप कांग्रेस ने अमेठी में अपनी हार के चलते लगाया है। पार्टी का आरोप है कि सपा का वोट कांग्रेस को नहीं गया। सपा मुखिया अखिलेश यादव के सामने स्वाजातीय वोट को फिर अपने साथ बांध पाने का मुश्किल टारगेट है।
शिवपाल फैक्टर से निपटने की चुनौती
लोकसभा चुनाव नतीजों से साफ है कि शिवपाल यादव की प्रसपा की वजह से पार्टी को खासा नुकसान हुआ। फिरोजाबाद की सीट तो पार्टी इसी वजह से हारी। पर इसके अलावा प्रसपा ने कई सीटों पर सपा की पराजय में भूमिका निभाई। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसीलिए कहा कि शिवपाल यादव ने यादव वोट भाजपा को ट्रांसफर करा दिए। अब बसपा का साथ भले ही न हो, लेकिन शिवपाल फैक्टर तो सपा के लिए आगे भी अहम रहेगा।
अखिलेश की छवि और मुलायम के अनुभव का सहारा
अखिलेश की अपनी बेदाग छवि, संरक्षक व पिता मुलायम सिंह यादव का अनुभव व पुराने नेताओं का साथ- इसके जरिए सपा को फिर से उठाकर खड़ा करने की उम्मीद है।