तेजी से खत्म हो रहे बस्तर से देसी आम

तेजी से खत्म हो रहे बस्तर से देसी आम

जगदलपुर
 बस्तर में प्रतिवर्ष सात करोड़ रुपये से अधिक का अमचूर का कारोबार होता रहा है लेकिन जंगलों में तेजी से आम वृक्षों के सफाया होने से यह कारोबार भी तेजी से सिमट रहा है। इस बात की जानकारी पौधारोपण कराने वाले विभिन्न् शासकीय विभागों को भी हैं फिर भी वन सहित कृषि और उद्यानिकी विभाग अपेक्षित आम रोपण के मामले में पीछे है। बताया गया कि एक तरफ जहां अत्यधिक दोहन के चलते बस्तर के वनों से आम के वृक्ष तेजी से खत्म हो रहे हैं वहीं दूसरी तरफ रियासत काल में सड़कों के किनारे रोपे गए आम के हजारों वृक्षों को विकास और सुरक्षा के नाम पर काट दिया गया है।

अमचूर का बड़ा बाजार

बस्तर संभाग के कांकेर, भानुप्रतापपुर, केशकाल, कोंडागांव, जगदलपुर, गीदम, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर और नरहरपुर मंडियों के अलावा सैकड़ों हाट-बाजारों में प्रति वर्ष सात करोड़ रुपये से अधिक अमचूर का कारोबार होता है। यहां के मंडी व्यापारी बताते हैं कि फिलहाल अमचूर की कीमत 50 रुपये प्रति किलो है लेकिन हर साल अमचूर की आवक घटती जा रही है। बस्तर का अमचूर देश के विभिन्न् हिस्सों में अलावा पाकिस्तान और अरब देशों में निर्यात किया जाता है। इसका उपयोग आमतौर पर भुजिया उद्योगों में होता है।

जगदलपुर मंडी से जानकारी मिली है कि वर्ष 2018 में यहां करीब आठ हजार क्विंटल अमचूर की आवक हुई थी। अमराइयों का सफाया बढ़ते अतिक्रमण और जमीन दलाली से बस्तर की कई अमराइयां कट चुकी हैं। वहीं निजी भूमि पर खड़े आमवृक्ष की लकड़ियां ईंट भट्ठों में झोंके जा रहे हैं। फलदार पेड़ों को काटना प्रतिबंध है लेकिन इन्हें बचाने वन विभाग ध्यान दे रही हैं न ही राजस्व विभाग। सड़कों के किनारे खड़े आम के पेड़ भी बेदर्दी से कटते रहे और लोक निर्माण विभाग मौन रहा। सड़क किनारे फलदार पेड़ों का रोपण भी लंबे समय से बंद है।