'नोटबंदी से पहले के लेवल पर नहीं लौटा स्मॉल बिजनस'

नई दिल्ली
नोटबंदी के दो साल पूरे होने पर जहां केंद्र सरकार ने इसके कई फायदे गिनाए, वहीं छोटे कारोबारियों का दावा है कि वे अब भी इसके झटके से उबर नहीं पाए हैं। उनका कहना है कि नोटबंदी के बाद बढ़े डिजिटाइजेशन का भी सबसे ज्यादा फायदा ई-कॉमर्स और बड़े कॉरपोरेट हाउसों को मिला है। नोटंबदी से छह महीने बाद आए जीएसटी ने असंगठित क्षेत्र को और अलग-थलग कर दिया था।
नोटबंदी के खिलाफ कारोबारी संगठनों की सबसे बड़ी दलील यह है कि खुद सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) की संख्या कम से कम 4 करोड़ है, जबकि जीएसटी रजिस्ट्रेशन एक करोड़ ही है यानी तीन चौथाई कारोबारी असंगठित क्षेत्र में हैं, जिनका टर्नओवर 20 लाख रुपये से कम है।
चैंबर ऑफ ट्रेड इंडस्ट्री (सीटीआई) के कन्वीनर बृजेश गोयल ने कहा 'भारत कैश आधारित अर्थव्यवस्था है और नोटबंदी ने सीधे इसकी रीढ़ पर हमला किया। इस चोट से यह अब तक नहीं उबर पाया है। आरबीआई ने माना है कि 15.44 लाख करोड़ में से 15.31 लाख करोड़ रु. सिस्टम में वापस आ गए यानी कालाधन खत्म तो खत्म नहीं हुआ, लेकिन असंगठित कारोबार बिखर गया। लाखों यूनिट बंद हुईं और लोग बेरोजगार हुए। उनका नुकसान हाईटेक समूहों ने हथिया लिया।'
भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के जनरल सेक्रेटरी विजय प्रकाश जैन कहते हैं कि असंगठित क्षेत्र और छोटे व्यापारी अभी नोटबंदी की मार से उबरे भी नहीं थे कि जीएसटी लागू हो गया। इससे बड़ी संख्या में कारोबारी मुख्यधारा में आने के बजाय उससे कट गए, क्योंकि जीएसटी अनरजिस्टर्ड कारोबारियों से खरीद को हतोत्साहित करता है। नोटबंदी में जो नुकसान हुआ, वह वापस नहीं लौटा, जबकि मार्केट में कैश लौट आया है। डिजिटल पेमेंट का सबसे बड़ा फायदा ई-वॉलेट कंपनियों और ई-कॉमर्स को मिला है।
दिल्ली एक्सपोर्टर्स असोसिएशन के प्रेसिडेंट अनिल वर्मा कहते हैं कि नवंबर 2016 के बाद के कई महीनों तक जो कारोबार घटता चला गया, वह अब तक पहले के स्तर तक नहीं आया। बेशक बहुत सी छोटी यूनिट अब ऑर्गानाइज्ड हो रही हैं, लेकिन उन्हें अब भी पहले जैसी दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं। छोटे निर्यातकों को रिफंड लेना अब भी टेढ़ी खीर है।
खान मार्केट ट्रेडर्स असोसिएशन के प्रेसिडेंट संजीव मेहरा ने कहा कि नोटबंदी के बुरे असर का सबूत फेस्टिव सीजन की खराब सेल्स है। दिवाली और होली की बिक्री घटती जा रही है। पिछले दो साल में किसी का व्यापार चमका है तो वह ई-कॉमर्स कंपनियां हैं, जो भारी डिस्काउंट तो दे रही हैं, लेकिन उन पर नकली सामान सप्लाई करने के आरोप भी लग रहे हैं।