बच्चे की डीएनए रिपोर्ट से सामने आया मां का झूठ

नई दिल्ली 
रेप पीड़िता होने का दावा करने वाली एक 17 साल की मां को उसके बच्चे ने ही कोर्ट में झूठा साबित कर दिया। बच्चे की डीएनए रिपोर्ट उस व्यक्ति के डीएनए से मेल नहीं खाई, जिसे वह अपने रेप का आरोपी ठहरा रही थी। हाई कोर्ट ने इस अहम साइंटिफिक सबूत पर भरोसा जताया और आरोपियों को बरी किए जाने के खिलाफ पुलिस की अपील खारिज कर दी।
 
पुलिस ने ट्रायल कोर्ट के 9 अक्टूबर 2017 के आदेश के खिलाफ यह अपील दायर की थी। इस आदेश के तहत मोहम्मद कमरुद्दीन (बदला हुआ नाम) और उसकी पत्नी नाजिया (बदला हुआ नाम) को रेप, धमकाने और पॉक्सो एक्ट के आरोपों से बरी कर दिया था। मयूर विहार थाने की पुलिस ने 17 साल की लड़की की शिकायत पर 13 अप्रैल 2015 को केस दर्ज किया। लड़की का आरोप था कि कमरुद्दीन ने अपने घर में कई बार उसका यौन उत्पीड़न किया और उसकी पत्नी ने मदद की। ट्रायल कोर्ट ने शिकायतकर्ता के बयान में खामियों और सबूतों के अभाव में दोनों को बरी कर दिया। 

हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया। जस्टिस एस. पी. गर्ग ने गौर किया कि शिकायती लड़की और आरोपी काफी समय से एक दूसरे को जानते थे। एफआईआर दर्ज होने से महज 5-6 महीने पहले ही दोनों इस लड़की के पड़ोस में रहने आए थे। लड़की रेप की कथित वारदात के बावजूद क्यों आरोपियों के घर बार-बार आती जाती रही। गर्भवती होने पर सब से पहले नाजिया ने ही सवाल किया और सूचना उसके परिवारवालों को दी। इसके बाद लड़की ने नाजिया और उसके पति पर ही यौन उत्पीड़न का केस दर्ज करा दिया। जांच के दौरान उसने बच्चे को जन्म दिया, जिसका डीएनए टेस्ट कराया गया। टेस्ट में पता चला कि कमरुद्दीन बच्चे का पिता नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा कि साफ है कि पीड़िता ने किसी और से संबंध बनाए, गर्भ नजर आने पर उसने असल जिम्मेदार व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया से बचाने के लिए इस दंपती पर यौन उत्पीड़न का आरोप जड़ दिया।