भारत दूसरी बार चीन के बेल्ट ऐंड रोड फोरम का बहिष्कार कर सकता है

भारत दूसरी बार चीन के बेल्ट ऐंड रोड फोरम का बहिष्कार कर सकता है

पेइचिंग 
जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र में वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रयासों में चीन के द्वारा फिर अड़ंगा लगाए जाने के बाद भारत एक बड़ा फैसला ले सकता है। भारत ने बुधवार को स्पष्ट संकेत दिए कि वह दूसरी बार भी बेल्ट ऐंड रोड फोरम (BRF) का बहिष्कार करेगा। भारत ने साफ कहा है कि कोई भी देश ऐसी पहल में शामिल नहीं हो सकता है, जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की उसकी प्रमुख आपत्तियों को ही नजरअंदाज करता है। आपको बता दें कि भारत ने 2017 में हुए पहले BRF का बहिष्कार किया था।  

दरअसल, भारत को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गालियारे (CPEC) पर आपत्ति है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है। यह प्रॉजेक्ट भी चीन के बेल्ड ऐंड रोड इनिशटिव (BRI) का हिस्सा है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने हाल में कहा था कि अगले महीने चीन ज्यादा बड़े स्तर पर दूसरा BRF आयोजित करने की तैयारी कर रहा है, जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी शामिल होंगे। 

उधर, इस बात को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या भारत दूसरे बेल्ट ऐंड रोड फोरम में शामिल होगा? चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से अपने शिनजियांग प्रांत को जोड़ने के लिए 60 अरब डॉलर की लागत से CPEC पर काम कर रहा है। इसके जरिए चीन की नजर केवल सड़क और रेल ही नहीं, गैस और ऑइल पाइपलाइन पर भी है। CPEC के तहत उसने कई एनर्जी प्रॉजेक्टों पर काम भी शुरू कर दिया है। 

इस बीच, चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिसरी ने सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स से कहा कि किसी भी कनेक्टिविटी इनिशटिव पर इस तरीके से अमल किया जाना चाहिए जो अन्य देशों की स्वायत्तता, समानता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करता हो। उन्होंने दूसरे फोरम में भारत के भाग लेने के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘कोई देश ऐसी किसी मुहिम का हिस्सा नहीं हो सकता है जो स्वायत्तता और क्षेत्रीय अखंडता की उसकी मुख्य आपत्तियों को नजरअंदाज करती हो।’ 

मिसरी ने कहा, ‘ईमानदारी से कहूं तो हमने कभी भी अपने विचार गोपनीय नहीं रखे और बेल्ट ऐंड रोड मुहिम को लेकर हमारी स्थिति स्पष्ट एवं मजबूत है। हमने संबंधित अथॉरिटीज को इससे अवगत भी कराया है।’ उन्होंने कहा, ‘कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के वैश्विक इच्छाओं में भारत भी एक हिस्सेदार है और यह हमारी आर्थिक एवं राजनयिक पहलों का अभिन्न हिस्सा है। हम खुद हमारे क्षेत्र में विभिन्न देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।’ 

भारतीय राजनयिक ने कहा, ‘वैसे, हमारा यह भी मानना रहा है कि कनेक्टिविटी की मुहिम वैश्विक स्तर पर सर्वमान्य अंतरराष्ट्रीय प्रावधानों, बेहतर संचालन तथा कानून के दायरे में होनी चाहिए। ये मुहिम निश्चित तौर पर सामाजिक स्थिरता, पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन, स्किल को बढ़ावा देने वाली और टेक्नॉलजी हस्तांतरण पर आधारित होनी चाहिए तथा इन्हें खुलापन, पारदर्शिता और वित्तीय टिकाऊपन के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।’ 

गौरतलब है कि भारत, अमेरिका समेत कई देश BRI प्रॉजेक्टों पर अपनी चिंता जताते रहे हैं, जिसने कई छोटे देशों को कर्ज संकट में फंसा दिया है। कर्ज के चलते ही श्री लंका के हंबनटोटा पोर्ट को चीन ने 99 साल की लीज पर ले लिया। यहीं नहीं, मलयेशिया और पाकिस्तान भी कर्ज संबंधी चिंताओं के कारण चीन के प्रॉजेक्टों को कम करना चाहते हैं। 

मिसरी ने भारत-चीन संबंधों के पटरी पर लौटने के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘दोनों देशों के आपसी द्विपक्षीय संबंध न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि व्यापक आर्थिक एवं अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हित में हैं।’