माउंट एवरेस्ट पर पर्वतारोहियों की मौत, नेपाल सरकार ने बताई वजह
काठमांडू
नेपाल सरकार ने गुरुवार को दावा किया कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर बड़ी संख्या में पर्वतारोहियों की मौत सिर्फ भीड़भाड़ होने की वजह से ही नहीं हुई है। इसके पीछे बेहद ऊंचाई पर होने वाली बीमारियां, दूसरे स्वास्थ्य कारण और प्रतिकूल मौसम भी जिम्मेदार है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने माउंट एवरेस्ट पर मृतकों का आंकड़ा 18 बताया है जो इसे 2015 के बाद सबसे खतरनाक बनाता है।
नेपाल पर्यटन मंत्रालय ने हालांकि मरने वालों का आंकड़ा 9 ही दिया है। चार भारतीय पर्वतारोहियों की मौत 8,848 मीटर की ऊंचाई वाले माउंट एवरेस्ट पर हुई जबकि माउंट कंचनजंघा और माउंट मकालू में भी दो-दो भारतीय पर्वतारोहियों की जान गई जिससे हिमालय में मरने वाले भारतीयों का आंकड़ा कुल 8 पहुंच गया।
पर्यटन विभाग के महानिदेशक डांडू राज घिमिरे ने कहा, 'राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा माउंट एवरेस्ट पर मौतों को लेकर दी गई गलत जानकारी की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित किया गया है।' उन्होंने कहा कि भीड़भाड़ होने से जान नहीं गई। भीड़भाड़ तब होती है जब कई पर्वतारोहियों में एक ही समय में शिखर पर पहुंचने की होड़ रहती है और यह खास तौर पर 8000 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर खतरनाक होता है जिसे ‘डेथ जोन’ के तौर पर जाना जाता है।
द हिमालयन टाइम्स की खबर के मुताबिक, विभाग का बयान ऐसे समय आया है जब पर्वतारोहियों की सुरक्षा की अनदेखी करते हुए दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने के लिए काफी ज्यादा परमिट जारी करने को लेकर उसकी तीखी आलोचना हो रही है। घिमिरे के मुताबिक मृत पर्वतारोहियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि उनकी मौत ऊंचाई से संबंधित बीमारियों, कमजोरी या प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों की वजह से हुई।
विभाग ने बयान में कहा कि उसने 2017 में 366 परमिट जारी किए थे जबकि 2018 में 346 परमिट दिए गए थे। वहीं इस साल चढ़ाई के लिए 381 परमिट जारी किए गए थे जो तुलनात्मक रूप से काफी बड़ा अंतर नहीं है। बयान में कहा गया, 'इसलिए, यह गलत है कि माउंट एवरेस्ट पर भीड़भाड़ की वजह से पर्वतारोहियों की मौत हुई और हम सभी से अनुरोध करते हैं कि गलत जानकारी के बहकावे में न आएं।'