लोकसभा के सबसे कम अनुभवी अध्यक्षों में शुमार हुए ओम बिड़ला, दूसरे कार्यकाल में बने स्पीकर

नई दिल्ली
ओम बिड़ला ने लोकसभा के नए स्पीकर का पदभार संभाल लिया है. इस हफ्ते से पहले ओम बिड़ला का नाम देश की राजनीति में ज्यादा नहीं सुना गया था, लेकिन 17वीं लोकसभा के पहले संसद सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब ओम बिड़ला का नाम नए स्पीकर के लिए नामित किया तो अचानक वह हर ओर चर्चा का विषय बन गए. वह अपने पूर्ववर्ती स्पीकरों की तुलना में कम अनुभवी हैं, लेकिन सबसे युवा स्पीकर नहीं हैं.
भारतीय संसदीय इतिहास में 1951-52 में पहला लोकसभा चुनाव होने के बाद बतौर स्पीकर ओम बिड़ला का नाम सबसे चौंकाने वाला रहा है. 1970 से पहले देश में 4 लोकसभा चुनाव हुए थे, इस लिहाज से भारतीय नेताओं के पास ज्यादा संसदीय अनुभव नहीं था ऐसे में पुराने और अनुभवी राजनेताओं को स्पीकर के रूप में चुना गया. अगर 1970 के बाद से चुने गए लोकसभा स्पीकर के संसदीय अनुभव की बात करें तो इस लिहाज राजस्थान के कोटा से सांसद ओम बिड़ला का अनुभव कमतर दिखता है.
आठवें सबसे युवा स्पीकर
उम्र के आधार पर लोकसभा स्पीकर बनने की बात करें तो ओम बिड़ला देश के सबसे युवा स्पीकर नहीं हैं. उम्र के आधार पर वह देश के आठवें सबसे कम उम्र के स्पीकर हैं. 50 साल से कम उम्र के 2 लोकसभा स्पीकर (जीएमसी बालयोगी और पीए संगमा) हुए हैं.
देश के पहले दलित स्पीकर होने का गौरव हासिल करने वाले जीएमसी बालयोगी लोकसभा के सबसे युवा स्पीकर भी हैं. स्पीकर बनने के समय जीएमसी बालयोगी 47 साल के थे. जीएमसी बालयोगी (तेलुगू देशम पार्टी) के बाद दूसरे सबसे युवा स्पीकर पीए संगमा (तब कांग्रेस) में थे जो स्पीकर बनने के समय 49 साल के थे.
सबसे बुजुर्ग स्पीकर
इन दोनों के बाद 3 स्पीकर ऐसे हुए जो 54 साल की उम्र में स्पीकर बने. ये नाम हैं नीलम संजीव रेड्डी (1967), गुरदयाल सिंह ढिल्लन (1969) और बलिराम भगत (1976). खास बात यह है कि तीनों का कार्यकाल एक साथ का ही है. 60 साल से कम उम्र के स्पीकरों की संख्या 8 है.
अब सबसे बुजुर्ग स्पीकर पर नजर डालें तो सोमनाथ चटर्जी 75 साल की उम्र में लोकसभा स्पीकर बने. सीपीआई के कद्दावर नेता रहे चटर्जी 2004 में यूपीए-1 कार्यकाल में स्पीकर बने थे. इसके बाद सबसे बुजुर्ग स्पीकर बनीं सुमित्रा महाजन. 2014 में 16वीं स्पीकर बनने वाली सुमित्रा महाजन स्पीकर बनने के समय 71 साल की थीं. 70 से ज्यादा के उम्र के यही 2 स्पीकर हैं. जबकि 60 साल के ऊपर के स्पीकरों की संख्या 9 है.
स्पीकर साल उम्र
अब तक के स्पीकर (क्रमवार) जिस साल पदभार संभाला स्पीकर बनने के समय उम्र
गणेश वासुदेव मावलंकर 1952 64 साल
एम ए आयंगर 1956 65 साल
हुकुम सिंह 1962 67 साल
नीलम संजीव रेड्डी 1967 54 साल
गुरदयाल सिंह ढिल्लन 1969 54 साल
बलिराम भगत 1976 54 साल
केएस हेगड़े 1977 68 साल
बलराम जाखड़ 1980 57 साल, 5 महीना
रवि राय 1989 63 साल
शिवराज पाटिल 1991 56 साल
पीए संगमा 1996 49 साल
जीएमसी बालयोगी 1998 47 साल
मनोहर जोशी 2002 65 साल
सोमनाथ चटर्जी 2004 75 साल
मीरा कुमार 2009 64 साल
सुमित्रा महाजन 2014 71 साल
ओम बिड़ला 2019 57 साल, 7 महीना
1970 के बाद के स्पीकर
पहले संसदीय अनुभव के आधार पर लोकसभा स्पीकरों की बात करें तो 1971 के लोकसभा चुनाव के बाद गुरदयाल सिंह ढिल्लन को स्पीकर के रूप में चुना गया. गुरदयाल सिंह ढिल्लन इससे पहले भी स्पीकर (1 साल, 221 दिन) रहे थे. 1967 में चौथी लोकसभा में नीलम संजीव रेड्डी स्पीकर बने थे, लेकिन राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए पद छोड़ दिया था और फिर उनकी जगह गुरदयाल सिंह ढिल्लन को स्पीकर बनाया गया. 1971 में लोकसभा चुनाव के बाद गुरदयाल सिंह ढिल्लन फिर से स्पीकर बने. वह इस पद पर पौने 5 साल रहे.
ढिल्लन बने स्पीकर
25 जून 1975 को देश में आपाताकाल (इमरजेंसी) लग गई थी जो 21 मार्च 1977 तक रही. गुरदयाल सिंह ढिल्लन के बाद बलिराम भगत 22 मार्च 1971 को लोकसभा के अगले स्पीकर बने और वह इस पद पर करीब एक साल रहे. बलिराम भगत स्पीकर बनने से पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में शामिल रहे.
सुप्रीम कोर्ट के जज बने स्पीकर
1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद जनता दल की सरकार पहली बार सत्ता में आई और बलिराम भगत के बाद नीलम संजीव रेड्डी (26 मार्च 1977) दूसरी बार स्पीकर बने और 109 दिन इस पद पर रहे क्योंकि वह राष्ट्रपति के लिए चुन लिए गए. उनकी जगह केएस हेगड़े देश के अगले स्पीकर बने.
आजादी के बाद वह कई सालों तक सरकारी वकील रहे. 1952 में वह राज्यसभा सांसद बने. इसके बाद 1967 में वह सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त किए गए. 1973 में उन्होंने नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि उनके जूनियर को सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया था.
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष से स्पीकर
हेगड़े के बाद बलराम जाखड़ लोकसभा के अगले स्पीकर चुने गए जो लगातार 2 लोकसभा (1980-1984 और 1984-89) के स्पीकर रहे. स्पीकर चुने जाने के समय जाखड़ पंजाब के कद्दावर नेता थे. लोकसभा आने से पहले वह 2 बार पंजाब विधानसभा (1972 और 1977) के लिए चुने जा चुके थे और 1977 में तो वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने.