सिगरेट और बीड़ी की बिक्री कोरोना महामारी में कुछ समय के लिए बंद की जाए: मुंबई हाईकोर्ट

सिगरेट और बीड़ी की बिक्री कोरोना महामारी में कुछ समय के लिए बंद की जाए: मुंबई हाईकोर्ट

मुंबई
कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में एक महाराट्र में हर दिन कोरोना पॉजिटिव के नए केस तेजी से बढ़ रहे है। वहीं बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने महामारी के दौरान सिगरेट और बीड़ी की बिक्री पर अस्थायी प्रतिबंध का सुझाव दिया है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को केंद्र और राज्य सरकार से कोविड 19 रोगियों के आंकड़ों पर जवाब मांगा, जो धूम्रपान के आदी थे। अदालत ने कहा कि यह सरकारों द्वारा इस तरह के प्रतिबंध पर विचार करने की आवश्‍कता थी क्योंकि कोविड -19 वायरस फेफड़ों को प्रभावित करता है और कमजोर फेफड़े गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।

 अदालत ने महाराष्ट्र राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वह कोविड -19 रोगियों को रेमेडिसवायर दवा उपलब्ध कराने के लिए सभी संभव प्रयास जल्‍द करें। ताकि मरीज या रिश्तेदारों को दवा खोजने या पता लगाने के लिए भटकना न पड़े। अदालत ने गुरुवार को प्रभावी तरीके से कोविड -19 प्रबंधन की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बात कही।

हाईकोर्ट ने कहा "हम समान रूप से इस बात से चिंतित हैं कि क्या जो व्यक्ति कोविड -19 से प्रभावित हैं और उनकी हालत गंभीर हो गई है वे सिगरेट और बीड़ी पीने वाले व्यक्ति हैं क्या? क्योंकि यह अब तक यह स्‍पष्‍ट हो चुका है कि कोविड -19 वायरस फेफड़ों को प्रभावित करता है और कमजोर फेफड़े जल्‍दी इससे ग्रसित होते हैं। पीठ ने कहा यह देखते हुए कि धूम्रपान करने वालों लोगों पर कोविड के प्रभाव के बारे में कोई जानकारी केंद्र या राज्य सरकार के सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं थी, "अगर यह एक ऐसा मुद्दा है जो नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए घातक है और यह हमारे लिए घातक है। राय है कि महामारी के समय सिगरेट और बीड़ी की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए उपाय किए जाने की आवश्यक है।

 HC ने कहा कि हर संक्रमित व्यक्ति तनाव और मानसिक आघात से गुजर रहा है, 'और यह कि जो लोग गंभीर रूप से बीमार हैं, उनकी पीड़ा का वर्णन नहीं किया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गिरीश एस कुलकर्णी की खंडपीठ ने मुंबई की वकील स्नेहा मरजादी द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर निर्देश पारित किया और अधिवक्ताओं सिमिल पुरोहित और अरशिल शाह के माध्यम से तर्क दिया, जिसमें आरोप लगाया गया कि अपर्याप्त सुविधाएं मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है।