'तानाशाहों को भी अपनी कठपुतली बना सकता है एआई''
विश्वदीप नाग
''एआई इतिहास की पहली ऐसी तकनीक है, जो ख़ुद निर्णय ले सकती है और ख़ुद नए विचार उत्पन्न कर सकती है। अगर हम यह नहीं जान सकते कि हम किसी दूसरे इंसान से बात कर रहे हैं या किसी इंसान के रूप में चैटबॉट से, तो लोकतंत्र में किसी भी विषय पर सार्वजनिक बहस कैसे हो सकती है।''
ये विचार अंतरराष्ट्रीय बेस्टसेलिंग लेखक युवाल नोआ हरारी ने अपनी नवीनतम कृति 'नेक्सस' में व्यक्त किए हैं। एआई के संभावित ख़तरों को रेखांकित करते हुए वे कहते हैं कि एआई से लोकतंत्र तो ख़तरे में है ही, लेकिन आने वाले वर्षों में तानाशाहों को ज़्यादा समस्या हो सकती है। एल्गोरिदम उन पर नियंत्रण हासिल कर सकते हैं। पूरे इतिहास में, तानाशाहों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा आमतौर पर उनके अपने अधीनस्थों ने पेश किया है। यदि कोई इक्कीसवीं सदी का तानाशाह कंप्यूटर को बहुत अधिक शक्ति देता है, तो वह तानाशाह उनकी कठपुतली बन सकता है। आख़िरी चीज़ जो एक तानाशाह चाहता है, वह है ख़ुद से ज़्यादा शक्तिशाली कुछ बनाना, या एक ऐसी ताक़त, जिसे वह नियंत्रित करना नहीं जानता।
सूचना नेटवर्क का विकास
हरारी की यह कृति एक साहसिक और विचारोत्तेजक पुस्तक है, जो मानव सूचना नेटवर्क के विकास पर एक व्यापक ऐतिहासिक वर्णन प्रस्तुत करती है।
यह पुस्तक आरंभिक मानव संचार प्रणालियों से लेकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) द्वारा संचालित आधुनिक, डिजिटल युग तक फैली हुई है। यह पुस्तक इतिहास, दर्शन, प्रौद्योगिकी और राजनीतिक विचारों को एक साथ लाती है, जो इस बात की अंतर्विषयक जाँच करती है कि मानव समाज किस तरह से सूचना के प्रवाह से आकार लेते रहे हैं और आगे भी लेते रहेंगे। हरारी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि सूचना केवल संचार से कहीं अधिक है। यह वह मूलभूत आधार है, जिस पर मानव नेटवर्क और समाज का निर्माण किया गया है।
कैसे बन गए दुनियाभर में ट्रॉल्स
पुस्तक के मुताबिक़, ''फ़ेसबुक और यूट्यूब एल्गोरिदम ने हमारे स्वभाव के बेहतर पहलुओं को दंडित करते हुए कुछ आधारभूत प्रवृत्तियों को पुरस्कृत करके दुनियाभर में इंटरनेट ट्रोल बना डाले हैं (आधुनिक परिभाषा के अनुसार, वह व्यक्ति जो जानबूझकर आपत्तिजनक या उत्तेजक ऑनलाइन पोस्ट करता है। कुछ लोग इन्हें इंटरनेट का शैतान भी कहते हैं )। लोगों को कट्टरपंथी बनाने की प्रक्रिया तब शुरू हुई, जब कोर्पोरट्स ने अपने एल्गोरिदम को न केवल म्यांमार में, बल्कि पूरे विश्व में यूज़र्स जुड़ाव बढ़ाने का काम सौंपा। 2012 में यूज़र्स यूट्यूब पर हर दिन लगभग 100 मिलियन घंटे वीडियो देख रहे थे, लेकिन यह कंपनी के अधिकारियों के लिए पर्याप्त नहीं था, जिन्होंने अपने एल्गोरिदम के लिए एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया: 2016 तक प्रतिदिन 1 बिलियन घंटे। लाखों लोगों पर परीक्षण-और-त्रुटि प्रयोगों के माध्यम से, यूट्यूब एल्गोरिदम ने वही पैटर्न खोजा, जो फ़ेसबुक एल्गोरिदम ने भी सीखा था: हिंसात्मक चीज़ें जुड़ाव को बढ़ाती हैं, जबकि संयम ऐसा नहीं करता। तदनुसार, यूट्यूब एल्गोरिदम ने अधिक उदार सामग्री की अनदेखी करते हुए करोड़ों दर्शकों को षड्यंत्र के सिद्धांतों की सिफ़ारिश करना शुरू कर दिया। 2016 तक, यूज़र्स वास्तव में यूट्यूब पर हर दिन एक बिलियन घंटे वीडियो देख रहे थे।''
हरारी के मुताबिक़, यह एआई की पहचान है, यानी मशीन की ख़ुद से सीखने और कार्य करने की क्षमता। भले ही हम एल्गोरिदम को केवल 1 प्रतिशत दोष दें, फिर भी म्यांमार में हुई हिंसा इतिहास का पहला नस्लीय-सफ़ाये का अभियान था, जिसके लिए आंशिक रूप से ग़ैर-मानवीय बुद्धि द्वारा लिए गए निर्णयों का दोष था। इसके आख़िरी होने की संभावना नहीं है, ख़ासकर इसलिए क्योंकि एल्गोरिदम अब केवल कट्टरपंथियों द्वारा बनाई गई फ़ेक न्यूज़ और षड्यंत्र के सिद्धांतों को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं, बल्कि 2020 के दशक की शुरुआत तक एल्गोरिदम ख़ुद से ही फ़ेक न्यूज़ और षड्यंत्र के नक़ली सिद्धांत गढ़ने में सक्षम हो चुके थे। हमारे सामने अपने भविष्य पर नियंत्रण खोने का ख़तरा मंडरा रहा है।
निष्कर्ष
पुस्तक में हरारी पाठकों को एक स्पष्ट संदेश देते हैं: मानवता का भविष्य इस बात से निर्धारित होगा कि हम सूचना के उन नेटवर्कों को कैसे प्रबंधित करते हैं, जो हमेशा से हमारे समाजों के केंद्र में रहे हैं। अगर हम इन नेटवर्कों को नियंत्रित करने में विफल रहते हैं, तो हम ख़ुद को इनके द्वारा नियंत्रित पा सकते हैं। इस कृति का मूल अँग्रेज़ी संस्करण आ चुका है। मंजुल पब्लिशिंग हाउस इसके हिंदी अनुवाद का प्रकाशन कर रहा है, जो शीघ्र आने वाला है।
( समीक्षक वरिष्ठ पत्रकार हैं , संपर्क - 6260774189 )