सरकारी खर्च पर सेंसरशिप, आर्थिक तंगी से जूझ रहा मप्र 

सरकारी खर्च पर सेंसरशिप, आर्थिक तंगी से जूझ रहा मप्र 

वित्त विभाग केवल उन्हीं कामों के लिए दे रहा मद की मंजूरी जो अति आवश्यक

भोपाल। आर्थिक तंगी से मप्र लगातार जूझ रहा है। सरकार का खजाना खाली हो चुका है। ऐसे में वित्त विभाग ने सरकारी खर्च पर सेंसरशिप लगा दी है। इससे कई विभागों के सामने समस्या खड़ी हो गई है। आलम यह है कि विभागों ने कई योजनाओं-परियोजनाओं की रफ्तार या तो कम कर दी है या बंद कर दिया है। उधर, वित्त विभाग केवल उन्हीं कामों के लिए मद की मंजूरी दे रहा है जो अति आवश्यक हैं। इस का असर यह हुआ है कि विभागों में काम करने वाले ठेकेदारों का भुगतान भी रूका हुआ है।
गौरतलब है कि चुनावी वर्ष में वित्त विभाग ने खर्च के मामले में पहले ही वित्तीय अनुशासन के नाम पर कई विभागों के खर्च में पाबंदी लागू कर दी है। केवल जरूरी खर्च के लिए ही राशि आहरण की अनुमति दी जा रही है। राशि खर्च करने के लिए भी विभागों को पहले वित्त विभाग से अनुमति लेना बीच निर्माण कार्य से जुड़े दो बड़े महकमे लिए वित्त विभाग ने खर्च की सीमा तय की है। वे अक्टूबर माह में वित्त विभाग द्वारा तय की गई राशि से अधिक के बिल ट्रेजरी में नहीं लगा सकेंगे।

केवल आवश्यक योजनाओं पर खर्च

वित्त विभाग से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में केवल आवश्यक योजनाओं पर खर्च किया जा रहा है। उधर वित्त विभाग ने नए सिरे से दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसके तहत नर्मदा घाटी विकास विभाग इस अवधि में 322 करोड़ रुपए खर्च कर सकेगा, वहीं जल संसाधन विभाग को 430 करोड़ रुपए खर्च करने की अनुमति दी गई है। पिछले सप्ताह चिकित्सा शिक्षा विभाग को 327 करोड़ रुपए 50 लाख रुपए खर्च की लिमिट तय की गई थी। अब ये विभाग अक्टूबर माह के लिए तय राशि से अधिक का भुगतान नहीं कर सकेंगे। यहां बता दें कि नर्मदा घाटी विकास विभाग के तहत एक दर्जन से अधिक बड़ी और मध्यम परियोजनाओं का काम तेजी से चल रहा है, जिससे कि नर्मदा नदी के पानी का पूरा उपयोग किया जा सके। नर्मदा के पानी से सरोकार रखने वाले प्रमुख राज्यों के बीच जो सहमति बनी है, उसके मुताबिक मप्र का वर्ष 2024 तक उसे आवंटित पानी का पूरा उपयोग करना है। ऐसे में राज्य सरकार नर्मदा घाटी से जुड़ी परियोजनाओं पर तेजी से काम कर रही है। इसी तरह जल संसाधन विभाग की भी छोटी-बड़ी 50 से अधिक परियोजनाओं पर इस समय तेजी से काम चल रहा है।

 घोषणाएं सरकार के खजाने पर भारी

चुनावी साल में हो रही घोषणाएं सरकार के खजाने पर भारी पड़ रही हैं। मौजूदा बजट के मुताबिक सरकार की आमदनी 2.25 लाख करोड़ रुपए है और खर्च इससे 54 हजार करोड़ ज्यादा। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 23 हजार करोड़ की नई घोषणाएं कर चुके हैं। अकेले लाड़ली बहना योजना पर ही सालाना 19 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसी बीच वित्त विभाग ने घोषणाओं पर होने वाले खर्च का खाका भी तैयार किया है। इन आंकड़ों में चौकाने वाले तथ्य निकलकर सामने आए है। वर्तमान में 3.30 लाख करोड़ के कर्ज में डूबी सरकार चुनावी दौर में की गई घोषणाओं पर सालाना 21 हजार 864 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करेगी। सरकार का औसतन खर्च 22 हजार करोड़ प्रतिमाह से बढक़र 23 हजार 822 करोड़ होगा। वहीं हर महीने का 1 हजार 822 रुपए प्रति माह खर्च बढ़ेगा। सरकार की नई घोषणाओं के कारण प्रतिमाह 23 हजार 822 करोड़ खर्चा होगा। इसके साथ ही चुनावी माहौल में सालाना 21 हजार 864 करोड़ अतिरिक्त खर्च होंगे। मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना पर सालाना खर्च 15 हजार करोड़ खर्चा किए जाएंगे। वहीं ग्राम रोजगार सहायकों के मानदेय पर 274.95 करोड़ प्रति वर्ष रहेगा। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय पर 371 करोड़ सालाना होगा। तो कर्मचारियों को 42 प्रतिशत महंगाई भत्ता पर 1520 करोड़ सालाना रहेगा। वहीं संविदा कर्मियों के समान वेतन पर 720 करोड़ सालाना और नई भर्तियों पर कुल 3600 करोड़ सालाना तय किया गया। लैपटॉप योजना पर 196 करोड़ सालाना खर्ज किया जाएगा। तो वहीं ई-स्कूटी योजना पर 135 करोड़ सालाना रहेगा। ग्रामीण विकास विभाग से संबंधित मानदेय पर 56.38 करोड़ होंगे। प्रतिवर्ष खर्च वर्तमान में सरकार पर 3.30 लाख करोड़ का खर्च रहेगा।

कर्ज पर कर्ज ले रही सरकार

प्रदेश की वित्तीय स्थिति फिलहाल ठीक नजर नहीं आ रही है। सरकार लगातार नई नई योजनाओं को पूरा करने के लिए कर्ज भी लेती जा रही है। फिलहाल सरकार ने सभी विभागों को नया फरमान जारी किया है। इस नए फरमान में लिखा गया है कोई भी विभाग 25 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता। इससे ज्यादा खर्च करना है तो वित्त विभाग की अनुमति लेनी होगी। यहां तक कि केंद्र सरकार के बजट और अनुदान के खर्च का भी विभाग नहीं कर सकेंगे इस्तेमाल, वित्त की अनुमति के बाद ही फंड निकालने की इजाजत मिलेगी। आर्थिक तंगी से मध्यप्रदेश लगातार जूझ रहा है। शिवराज सरकार का खजाना खाली हो चुका है। राज्य सरकार आचार संहिता से पहले कर्ज पर कर्ज ले रही है। 4 अक्टूबर को शिवराज सरकार ने एक बार फिर 3000 करोड़ का कर्ज लिया। एक ही दिन में दो बार अलग-अलग टेन्योर पर सरकार ने 3000 करोड़ का कर्ज लिया है। सरकार ने 15 साल के टेन्योर पर 1000 करोड़ का एक कर्ज लिया है। 12 साल के टेन्योर पर 2000 करोड़ का दूसरा कर्ज लिया गया। महज 9 दिन में 5 बार शिवराज सरकार ने कर्ज ले चुकी है। इसके पहले 26 सितंबर को एक ही दिन में तीन बार सरकार ने कर्ज लिया था। सितंबर महीने में ही सरकार ने पांच बार कर्ज लिया था। इसके पहले शिवराज सरकार 12 सितंबर को 1000 और 21 सितंबर को 500 करोड़ का कर्ज आरबीआई से कर्ज ले चुकी है। सिर्फ सितंबर में ही 6.5 हजार करोड़ का कर्ज लिया गया। चुनावी साल में जनता को लुभाने के लिए नई घोषणाएं कर रही है और कर्ज लेने का सिलसिला थम नहीं रहा है।

फिलहाल 4 लाख करोड़ का कर्ज

मप्र के वित्तीय हालात के अनुसार, प्रदेश के हर व्यक्ति पर 40 हजार रुपये से ज्यादा का कर्ज है। मध्यप्रदेश सरकार इस साल छह महीनों में अलग-अलग तारीखों पर 13 बार कर्ज ले चुकी है। जनवरी, फरवरी, मार्च, मई, जून और सितंबर में सरकार ने आरबीआई से लोन लिया। हालांकि, 2023-24 का वित्तीय वर्ष शुरू होने के बाद सरकार का यह 10वां कर्ज है। नया वित्तीय वर्ष शुरू होने तक एमपी पर लगभग 3.32 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज था। इसके बाद लगातार कर्ज लेने से यह आंकड़ा 4 लाख करोड़ के करीब पहुंच चुका है। इसके बाद भी मध्यप्रदेश में घोषणाओं का सिलसिला जारी है। एमपी सरकार हर साल कर्ज पर 20 हजार करोड़ रुपये ब्याज देती है।

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