मोरारजी से हामिद अंसारी तक: कब-कब हुआ देश की सुरक्षा से खिलवाड़ 

मोरारजी से हामिद अंसारी तक: कब-कब हुआ देश की सुरक्षा से खिलवाड़ 

Dr. Brahmdeep Alune

90 के दशक में भारत के विदेश मंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने इंद्रकुमार गुजराल का गुजराल सिद्धांत को पाकिस्तान में बहुत सराहा गया था। गुजराल सिद्धांत के अनुसार पड़ोसी देशों का विश्वास जीतने के लिए अप्रत्याशित कदम उठाये गये थे। इन कदमों में दुश्मन देश पाकिस्तान में रॉ की गतिविधियों को विराम दे देना भी शामिल था। दरअसल इंद्रकुमार गुजराल के पिता अवतार नारायण गुजराल पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य थे और वे अपने पिता के सहायक के तौर पर काम कर चूके थे,अत: उन्होंने दुश्मन देश के प्रति बेहद सदाशयता दिखाई और इसके दूरगामी परिणाम भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए आत्मघाती साबित हुए। इसमें कश्मीर में आतंकवाद का बढना शामिल था। रॉ पूरे दक्षिण एशिया में कमज़ोर हुई और इसका खामियाजा राष्ट्रीय सुरक्षा को अब तक भोगना पड़ रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान का मजबूत होना पाकिस्तान के लिए बेहद फायदेमंद रहा और यह भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए जानलेवा बन गया। कश्मीर के अधिकांश आतंकवादी अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान में प्रशिक्षित होते थे और एक दौर तो ऐसा भी आया जब भारत तालिबान के सामने इतना असहाय हो गया कि उसे कंधार में पाकिस्तान के आतंकियों को छोड़कर अपना अपह्रत विमान छुड़वाना पड़ा।

90 का दशक भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था और पाकिस्तान अफगानिस्तान,ईरान और सऊदी अरब जैसे इस्लामिक देशों के साथ भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने की साजिशों में संलग्न था। इस समय रॉ की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी। संयोग से इस समय हामिद अंसारी अफगानिस्तान में 1989 से 1990 तक भारत के राजदूत थे। वे बाद में ईरान में 1990 से 1992 तक तथा सऊदी अरब में 1995 से 2000 तक भारत के राजदूत रहे।

ईरान में हामिद अंसारी के कार्यकाल के दौरान वहीं पर कार्यरत रॉ के एक अधिकारी एन.के.सूद के जो खुलासे किए वह हैरान और परेशान करने वे थे। एन. के.सूद ने कहा कि हमीद अंसारी ईरान की ख़ुफ़िया एजेंसी को रॉ की गोपनीय मिशन की जानकारी देते थे और जब रॉ के लोगों को ईरान में पकड़ा गया तो हामिद अंसारी ने भारत की सरकार को गुमराह किया। रॉ कश्मीरी युवकों के ईरान में आतंकी प्रशिक्षण करने पर नजर रख रही थी और यह जानकारी भी हामिद अंसारी ने ईरान की ख़ुफ़िया एजेंसी को दे दी थी। अंसारी ने ईरान में रॉ के ठिकानों को बंद करने तक की सिफारिशें भी की थीं। 2017 में रॉ की कई अधिकारियों का एक समूह प्रधानमंत्री मोदी से मिला और उन्होंने दावा किया की हमीद अंसारी ईरान में रहकर रॉ के कई ऑपरेशनों को नुकसान पहुंचाया और कई गोपनीय जानकारी ईरान की ख़ुफ़िया एजेंसी को देकर भारत के हितों को प्रभावित किया। सूद ने बताया कि जब अंसारी का ईरान से तबादला हुआ तो भारतीय दूतावास में खुशियां मनाई गईं।

रॉ को सबसे ज्यादा नुकसान भारत के एक प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने पहुंचाया था। दरअसल पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का सबसे पहले पता रॉ ने ही लगाया था। रॉ एजेंट ने कहूटा में नाई की दुकान के फ़र्श से पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिकों के बालों के सैंपल जमा किए। उनको भारत लाकर जब उनका परीक्षण किया गया तो पता चला कि उसमें रेडिएशन के कुछ अंश मौजूद हैं,जिससे पाक की परमाणु तैयारी का पता चला। रॉ के एक एजेंट को 1977 में पाकिस्तान के कहूटा परमाणु संयंत्र का डिज़ाइन प्राप्त हो गया था। लेकिन तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने न सिर्फ़ इसे दस हज़ार डॉलर में खरीदने की पेशकश ठुकरा दी,बल्कि ये बात पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल ज़िया उल-हक़ को बता भी दी। इस घटना का जिक्र मेजर जनरल वी.के.सिंह ने अपनी किताब,सीक्रेट्स ऑफ़ रिसर्च एंड एनालिसिस विंग में किया है. वी.के.सिंह रॉ में कई सालों तक सेवाएं दी थी।
मोरारजी देसाई की यह गलती भारत को बहुत भारी पड़ी और यहीं से जिया-उल-हक ने भारत को तोड़ने के लिए भाषावाद,क्षेत्रीयतावाद और साम्प्रदायिकता पर आधारित ऑपरेशन शुरू किये। यह पंजाब,जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर में हिंसक तरीके से भारत के सामने आये और यह समस्या बदस्तूर जारी है। यह भी माना जाता है कि मोरारजी देसाई ने यदि रॉ को लेकर जिया-उल-हक से बातचीत नहीं की होती तो बलूचिस्तान भी पाकिस्तान से अलग हो गया होता।

रॉ के एक पूर्व अतिरिक्त सचिव बी रमन ने अपनी किताब,द काऊ बॉयज़ ऑफ़ रॉ में लिखा है कि 1971 में रॉ को इस बात की पूरी जानकारी थी कि पाकिस्तान किस दिन भारत के ऊपर हमला करने जा रहा है। पाकिस्तान की सेना और लोगों में रॉ ने बड़ी पैठ बना रखी थी। 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बनने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति मुजीबुर्रहमान को यह कहते हुए रॉ प्रमुख से मिलवाया था कि आप चाहे तो हमारे  काव साहब से आपके देश के बारे में कोई भी जानकारी ले सकते है,वे बांग्लादेश के बारे में जितना जानते है,शायद हम भी नहीं जानते। 1982 में जब फ़्रांस की ख़ुफ़िया एजेंसी के प्रमुख काउंट एलेक्ज़ांद्रे द मरेंचे से पूछा गया कि 70 के दशक के पाँच सर्वश्रेष्ठ ख़ुफ़िया प्रमुखों के नाम बताएं,तो उन्होंने रॉ प्रमुख रामेश्वरनाथ काव को इस सूची में शामिल किया था।1975 में चीन और वैश्विक के दबाव के बाद भी सिक्किम का भारत में विलय भारत की एक बड़ी कूटनीतिक सफलता थी और इसमें रॉ की अहम  भूमिका थी।

90 के दशक में भारत के विदेश मंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने इंद्रकुमार गुजराल का गुजराल सिद्धांत को पाकिस्तान में बहुत सराहा गया था।  गुजराल सिद्धांत के अनुसार पड़ोसी देशों का विश्वास जीतने के लिए अप्रत्याशित कदम उठाये गये थे। इन कदमों में दुश्मन देश पाकिस्तान में रॉ की गतिविधियों को विराम दे देना भी शामिल था। दरअसल इंद्रकुमार गुजराल के पिता अवतार नारायण गुजराल पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य थे और वे अपने पिता के सहायक के तौर पर काम कर चूके थे,अत: उन्होंने दुश्मन देश के प्रति बेहद सदाशयता दिखाई और इसके दूरगामी परिणाम भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए आत्मघाती साबित हुए। इसमें कश्मीर में आतंकवाद का बढना शामिल था। रॉ पूरे दक्षिण एशिया में कमज़ोर हुई और इसका खामियाजा राष्ट्रीय सुरक्षा को अब तक भोगना पड़ रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान का मजबूत होना पाकिस्तान के लिए बेहद फायदेमंद रहा और यह भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए जानलेवा बन गया। कश्मीर के अधिकांश आतंकवादी अफगानिस्तान,ईरान और पाकिस्तान में प्रशिक्षित होते थे और एक दौर तो ऐसा भी आया जब भारत तालिबान के सामने इतना असहाय हो गया कि उसे कंधार में पाकिस्तान के आतंकियों को छोड़कर अपना अपह्रत विमान छुड़वाना पड़ा।