मकर संक्रांति: जानिए क्यों मनाया जाता है यह पर्व और इस दिन खिचड़ी का महत्व 

मकर संक्रांति: जानिए क्यों मनाया जाता है यह पर्व और इस दिन खिचड़ी का महत्व 

आपको मकर संक्रांति पर्व की अनंत हार्दिक शुभकामनाएं

भोपाल। हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार है मकर संक्रान्ति। मकर संक्रांति को संक्रांति, पोंगल, माघी, उत्तरायण, उत्तरायणी और खिचड़ी आदि जैसे नामों से भी जाना जाता है। हिन्दू पंचांग में कैलेंडर दो प्रकार के हैं। एक सूर्य आधारित और दूसरा चंद्र आधारित। यह पर्व सूर्य आधारित कैलेंडर के आधार पर मनाया जाता है। इस साल 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। यह दिन भगवान सूर्य को समर्पित है. इस दिन सूर्य देव धनु राशि से होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसी दिन से यह पर्व मनाया जाता है।

किस राज्य में किस नाम से इस पर्व को मनाया जाता है

उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल
उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में इसे खिचड़ी का पर्व कहते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाना बहुत शुभ माना जाता है। प्रयाग में माघ मेला शुरू होता है। त्रिवेणी के अलावा, उत्तर प्रदेश के हरिद्वार और गढ़ मुक्तेश्वर और बिहार में पटना जैसे कई जगहों पर भी धार्मिक स्नान का महत्व है।

कर्नाटक और आंध्र प्रदेश
कर्नाटक और आंध प्रदेश में मकर संक्रमामा नाम से मानते है। जिसे यहां तीन दिन का त्योहार पोंगल के रूप में मनाते हैं। तेलुगू इसे पेंडा पादुगा कहते है, जिसका अर्थ होता है बड़ा उत्सव।

तमिलनाडु
तमिलनाडु में इसे पोंगल त्योहार के नाम से मनाते हैं, जोकि किसानों के फसल काटने वाले दिन की शुरुआत के लिए मनाया जाता है।

गुजरात और राजस्थान
उत्तरायण नाम से मकर संक्रांति पर्व को गुजरात और राजस्थान में मनाया जाता है। इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता रखी जाती है। गुजरात में यह एक बहुत बड़ा त्योहार है। इस दौरान वहां पर अवकाश भी होता है।

बुंदेलखंड
बुंदेलखंड में विशेष कर मध्य प्रदेश में मकर संक्रांति के त्योहार को सकरात नाम से जाना जाता है। यह त्योहार मिठाइयों के साथ बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

कश्मीर
कश्मीर में मकर संक्रांति के त्योहार को शिशुर सेंक्रांत नाम से जानते है। 

मगही नाम से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में यह त्योहार मनाया जाता है।

पंजाब
पंजाब में लोहड़ी नाम से इसे मनाया जाता है, जो सभी पंजाबी के लिए बहुत महत्व रखता है.इस दिन से सभी किसान अपनी फसल काटना शुरू करते है और उसकी पूजा करते हैं।

इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने, सूर्य को अर्घ्य देने, पूजा करने, दान करने के साथ ही तिल, गुड़, रेवड़ी आदि का सेवन करने का महत्व है। इस दिन खिचड़ी का सेवन करना अनिवार्य माना जाता है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी पकाने, खाने और दान करने का भी महत्व है।

क्यों कहते हैं मकर संक्रांति, जुड़ा इतिहास
यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। इस त्योहार को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति को तमिळनाडु में पोंगल के रूप में तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक व केरला में यह पर्व सिर्फ संक्रान्ति के नाम से प्रसिद्ध हैं।

तिल-गुड़ का ही महत्व 
इस पर्व पर खास तौर पर तिल-गुड़ का ही महत्व होता है। इस दिन तिल, गुड़ का दान करना, दाल-चावल की खिचड़ी का दान करना अत्यंत महत्वूपर्ण माना जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस दिन तिल, खिचड़ी और गुड़ दान करने से आपके अशुभ परिणामों में कमी आती है। इस दिन तिल-गुड़ से बने लड्‍डू, पपड़ी, और कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं।

हल्दी-कँकू लगाकर तिल-गुड़ भेंट देती है ‍महिलाएँ 
मकर संक्रांति के दिन महाराष्‍ट्र में 'तिळ घ्या आणि गोड गोड बोला' इस शब्द का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। इस दिन यह लाइन बोलने के साथ ही तिल के साथ-साथ एक-दूसरे को उपहार बाँटने का प्रायोजन भी जारी रहता है। विवाहित ‍महिलाएँ इस दिन अपने घर दूसरी ‍महिलाओं को आमंत्रित कर उन्हें हल्दी-कँकू लगाकर तिल-गुड़ के साथ-साथ उपहारों की पूजा करके भेंट देती है। और यह एक बहुत ही शुभ शगुन माना जाता है।

मकर संक्रांति की ‘खिचड़ी' खास क्यों
खिचड़ी कोई साधारण भोजन नहीं बल्कि इसे ग्रहों का प्रसाद कहा जाता है। दाल, चावल, घी, हल्दी और हरी सब्जियों से मिश्रण से बनने वाले खिचड़ी का संबंध ग्रहों से होता है, जिसका शुभ फल मिलता है।

सूर्य देव के साथ शनि देव की कृपा प्राप्त होती है
खिचड़ी के चावल को चंद्रमा, नमक को शुक्र, हल्दी को गुरु, हरी सब्जियों को बुध और खिचड़ी के ताप को मंगल ग्रह का कारक माना गया है। मकर संकांति पर बनी काली ऊड़द दाल की खिचड़ी को खाने और दान करने से सूर्य देव के साथ शनि देव की कृपा प्राप्त होती है।

खिचड़ी खाने की पुरानी परंपरा
मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने की परंपरा बहुत ही पुरानी है। इससे जुड़ी कथा के अनुसार, अलाउद्दीन खिलजी और उसकी सेना के विरुद्ध बाबा गोरखनाथ और उनके शिष्यों ने भी खूब संघर्ष किया। युद्ध के कारण योगी भोजन पकाकर खा नहीं पाते थे। इस कारण योगियों की शारीरिक शक्ति कमजोर होती जा रही थी।
तब बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और हरी सब्जियों को मिलाकर एक व्यजंन तैयार किया, जिसे खिचड़ी का नाम दिया गया। यह कम समय और कम मेहनत में बनकर तैयार हो गया और इसके सेवन से योगी शारीरिक रूप से ऊर्जावान भी रहते थे। खिलजी जब भारत छोड़कर गए तो योगियों ने मकर संक्रांति के उत्सव में प्रसाद के रूप में खिचड़ी बनाई। इस कारण हर साल मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाई जाती है और बाबा गोरखनाथ को भोग लगाकर इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

शास्त्रानुकूल नहीं है रविवार के दिन खिचड़ी खाना
खिचड़ी का विशेष धार्मिक महत्व है और इसका संबंध ग्रहों से भी है। साथ ही स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी खिचड़ी सबसे अच्छा और सुपाच्य भोजन माना जाता है। लेकिन रविवार के दिन खिचड़ी खाना शास्त्रानुकूल नहीं माना गया है। मान्यता है कि रविवार के दिन काली उड़द की दाल से बनी खिचड़ी का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि काली उड़द की दाल और खिचड़ी शनि देव से संबंधित भोजन है। ज्योतिष के अनुसार रविवार के दिन शनि से संबंधित चीजों का सेवन करने से कुंडली में सूर्य कमजोर होता है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और शनि का प्रतिकूल प्रभाव भी कम होता है। धार्मिक कथा के अनुसार, मकर संक्रांति पर सूर्यदेव अपनी नाराजगी दूर कर पुत्र शनि के घर उनसे मिलने जाते हैं।

खिचड़ी का भोग ग्रहण करने में किसी प्रकार का कोई दोष नहीं
इसलिए यदि आप उलझन में हैं कि क्या मकर संक्रांति के दिन रविवार को खिचड़ी खा सकते हैं या नहीं तो इस उलझन को निकाल दीजिए। मकर संक्रांति पर खिचड़ी का भोग ग्रहण करने में किसी प्रकार का कोई दोष नहीं है। खिचड़ी को तो स्वयं ग्रहों का प्रसाद कहा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि प्रसाद सभी स्थिति में ग्रहण करने योग्य होता है।

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