शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 99 वर्ष की उम्र में निधन

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 99 वर्ष की उम्र में निधन

9 वर्ष की उम्र में शुरू की थी धर्मयात्रा

नरसिंहपुर, शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का मध्यप्रदेश के नरसिंगपुर में निधन हो गया है। उन्होंने 99 साल की उम्र में नरसिंहपुर के मणिदीप आश्रम महुआ में अंतिम सांस ली। शंकराचार्य स्वरूपानंद द्वारिका पीठ के शंकराचार्य थे। स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था। उनके निधन के बाद भक्तों में शोक है।

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शंकराचार्य को सोमवार की शाम चार बजे परमहंसी गंगा आश्रम में दी जाएगी समाधि

ज्योतिष और द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य
ज्योतिष और द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया। उन्होंने 99 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया है। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर के परमहंसी गंगा आश्रम में ली दोपहर 3.30 बजे अंतिम सांस ली। शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्म विद्यानंद ने बताया- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को सोमवार को शाम 5 बजे परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जाएगी। स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था। वह आजादी की लड़ाई में भाग लेकर जेल भी गए थे। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी।

सिवनी जिले के दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था जन्म 
हाल ही में उनका जन्मदिवस मनाया गया था। हिंदुओं के सबसे बड़े धर्मगुरू स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। महज नौ साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। इस दौरान वो उत्तरप्रदेश के काशी भी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वो वक्त था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी।

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स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। इस दौरान वह वाराणसी के जेल भी गए 
आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 1942 के इस दौर में वो महज 19 साल की उम्र में क्रांतिकारी साधु के रुप में प्रसिद्ध हुए थे। क्योंकि उस समय देश में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई चल रही थी। जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। इस दौरान वह वाराणसी के जेल भी गए और वहां उन्होंने 9 महीने की सजा काटी। इसके बाद मध्यप्रदेश की जेल में भी उन्होंने 6 महीने की सजा काटी थी।

राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी रहे
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी रहे। 1940 में उन्हे दंडी संन्यासी बनाया गया और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली थी। 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। उनके पास बद्री आश्रम और द्वारकापीठ की जिम्मेदारी थी।

उन्होंने कहा था हिंदुओं के सुप्रीम कोर्ट हम ही हैं
स्वरूपानंद सरस्वती ने राम मंदिर के निर्माण में भी अपना बड़ा योगदान दिया था। शंकराचार्य स्वामी स्परूपानंद सरस्वती ने राम जन्मभूमि न्यास के नाम पर विहिप और भाजपा को घेरा था। उन्होंने कहा था- "अयोध्या में मंदिर के नाम पर भाजपा-विहिप अपना ऑफिस बनाना चाहते हैं, जो हमें मंजूर नहीं है। हिंदुओं में शंकराचार्य ही सर्वोच्च होता है। हिंदुओं के सुप्रीम कोर्ट हम ही हैं। मंदिर का एक धार्मिक रूप होना चाहिए, लेकिन यह लोग इसे राजनीतिक रूप देना चाहते हैं जो कि हम लोगों को मान्य नहीं है।"

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