भोपाल। मप्र में अगली सरकार किसकी बनेगी यह तो 11 दिसंबर को ही तय हो पाएगा। लेकिन भावी सरकार को लेकर लगातार सर्वे आ रहे हैं, जिसमें कोई भाजपा तो कोई कांग्रेस की सरकार बनवा रहा है। वहीं प्रदेश में टिकट वितरण के बाद बगावत की जो स्थिति दिख रही है उसको देखते हुए सट्टा बाजार में ज्यादातर बुकी मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में त्रिशुंक विधानसभा पर दांव लगा रहे हैं। सट्टा बाजार के अनुसार, भाजपा 99-105, कांग्रेस 105-113 और बसपा 10-15 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। बुकियों के अनुसार, सबसे अधिक करीब 5,000 करोड़ रूपए त्रिशंकु सरकार पर लगाया गया है। वहीं भाजपा की सरकार पर 3,000 करोड़ रूपए तो कांग्रेस की सरकार पर 2,000 करोड़ रूपए लगाए गए हैं।

प्रदेश में 28 नवंबर को मतदान होना है। सभी पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतार कर जोर-शोर से प्रचार शुरू कर दिया है। मुख्य मुकाबला इस बार भी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। उधर, चुनाव मैदान में उतरे सियासी चेहरों की शह और मात को लेकर प्रदेश में सट्टा बाजार गरमाने लगा है। इसा बार सट्टा बाजार भी एक नजर नहीं आ रहा है। भोपाल और इंदौर के बुकी भाजपा की सरकार बनवा रहे हैं तो मुंबई, रायपुर, नागपुर के बुकी त्रिशंकु सरकार की बात कह रहे हैं। वहीं दुबई, जबलपुर, ग्वालियर आदि शहरों में कांग्रेस की सरकार बनने पर दांव लगाया जा रहा है।
पल-पल बदल रहा बाजार
देश के अधिकांश सट्टा बाजार का अनुमान है कि इस बार मध्यप्रदेश में काटें की टक्कर है। सट्टेबाजों के मुताबिक भाजपा अभी भी बड़ी पार्टी बनेगी, लेकिन इस बार कांग्रेस भी उसके ईदगिर्द ही रहेगी। प्रदेश में सट्टा बाजार के प्रमुख केंद्र्र इंदौर और भोपाल के ट्रेंड के मुताबिक प्रत्याशियों की घोषणा से पहले जो भाव चल रहा था, उसके मुताबिक यदि कोई व्यक्ति भाजपा के सत्ता में आने को लेकर 10 हजार रुपए लगाता है और भाजपा सरकार बनाती तो उसे 11 हजार रुपए मिलतेेे, जबकि कांग्रेस पर 4400 रुपए लगाने वाले को कांग्रेस की सरकार बनने पर 10 हजार रुपए मिलते। इस भाव से साफ है कि सटोरियों ने मुकाबले में भाजपा का पलड़ा भारी रखा था, लेकिन जब दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों का ऐलान हुआ तो परिस्थितियां बिल्कुल उलट हो गई हैं। एक बुकी ने बताया कि दोनों पार्टियों के ज्यादातर उम्मीदवारों के नाम सामने आने के बाद सट्टा बाजार में मुकाबला फिफ्टी-फिफ्टी हो गया है।
कांग्रेस के मजबूत माने जा रहे उम्मीदवारों ने भाव में भारी अंतर ला दिया है। अब भाजपा पर 10 हजार रुपए लगाने पर 15 हजार मिलेंगे तो कांग्रेस पर पांच हजार रुपए लगाने पर आठ हजार रुपए का भाव है।
10 हजार करोड़ का सट्टा कारोबार
चुनाव पर करीब 10 हजार करोड़ रुपए के सट्टा कारोबार का अनुमान है। अब मोबाइल, वेबसाइट और ऑनलाइन ऐप्लीकेशन के जरिए सट्टा लगने लगा है। ऑनलाइन सट्टेबाजी मूविंग कार, कैफे या शहर के पब्लिक प्लेस से भी संचालित की जा रही है। सट्टेबाजों में इन दिनों क्रिकेट से ज्यादा चुनाव को लेकर क्रेज है। बुकियों के अनुसार, दुबई और मुंबई से संचालित होने वाले सट्टे में अधिकतर हाईप्रोफाइल लोग दांव लगाते है। चुनाव भले ही मध्यप्रदेश में हो रहा है लेकिन यहां की हार-जीत के लिए देशभर में सट्टा लगाया जा रहा है।
बुकियों का कहना है कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और त्रिशंकु सरकार बनाने की संभावनाओं के साथ एक-एक सीट पर जीत-हार के लिए भी दांव लगाया जा रहा है। सीटों पर जीत-हार के दांव लोकल स्तर पर लगाए जा रहे हैं।
सेशन में कांग्रेस ने मारी बाजी
सटोरियों ने भाजपा-कांग्रेस दोनों दलों के उम्मीदवारों पर बड़ी बारीकी से देखने के बाद सेशन की शुरुआत की है। सेशन में लगे दांव के कारण बाजार कांग्रेस की चर्चाओं को लेकर गर्मा रहा है। प्रारंभिक तौर पर बाजार से जो संकेत मिल रहे हैं, उससे जाहिर है कि भाजपा का नारा अबकी बार 200 पार काफी पीछे छूट रहा है। भाजपा के सेशन यानी इवन (जितनी राशि लगाएंगे, उतनी ही वापस मिलेगी) के लिए बाजार में 98 से 101 सीट मिल रही है। वहीं, कांग्रेस इस सेशन में भाजपा से आगे निकल गई और बाजार में 114 से 116 सीट के लिए इवन प्वॉइंट है।
कई बुकी का मानना है कि साल 2013 में 58 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस बार अपनी सीटों की संख्या को दोगुना कर सकती है। वहीं कुछ का मानना है कि उसे सरकार बनाने लायक बहुमत का आंकड़ा नहीं मिल पाएगा। कई बुकीज का कहना है कि मध्यप्रदेश चुनाव के लिए बेटिंग का धंधा करीब 10,000 करोड़ रुपए के पार जा सकता है।
दरअसल, इस बार के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच नेक टू नेक फाइट नजर आ रही है। 2003, 2008 और 2013 से शुरू से भाजपा के पक्ष में माहौल रहा, जबकि इस बार के चुनाव में सत्ता के विरूद्ध जबरदस्त माहौल है। लेकिन भाजपा के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि अभी भी प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान का जादू कायम है और सरकार के खिलाफ कोई एंटी इंकमबेंसी नहीं है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह कहते हैं कि यह कांग्रेस द्वारा फैलाई गई अफवाह है। जबकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का दावा है कि भाजपा की हार का काउंट डाउन शुरू हो गया है। हालांकि सट्टा बाजार इस बात से सहमत नहीं है।
प्रदेश में जिस तरह की जमीनी हालात नजर आ रहा है उससे बुकियों का मानना है कि चुनाव में दो से तीन फीसदी मतों के इधर-उधर होने से नतीजों पर काफी असर पड़ेगा। हालांकि साल 2013 में मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट प्रतिशत का अंतर काफी बड़ा था। भाजपा को जहां 44.88 प्रतिशत वोट मिले थे तो कांग्रेस को 36.38 प्रतिशत वोट ही मिले थे। यानी दोनों पार्टियों के बीच 8.5 प्रतिशत का अंतर है। यह कोई मामुली अंतर नहीं है। लेकिन राजनीतिक विश£ेषकों का आकलन है कि इस बार चुनाव परिणाम चौकाने वाला हो सकता है। जिस तरह सत्ता के खिलाफ माहौल है उससे ऐसा लगता है कि भाजपा को 2013 की अपेक्षा कम वोट मिलेंगे। ऐसे में 4 से 6 फीसदी मत सत्ता का समीकरण बदल सकते हैं। प्रदेश में सत्ता का जो जादुई आंकड़ा 116 का है उस पाने के लिए कांग्रेस को 4 से 6 फीसदी मतों की जरुरत पड़ेगी। सत्ता विरोधी माहौल और कांग्रेस की सक्रियता को देखकर लगता है यह कोई बड़ा लक्ष्य नहीं है। लेकिन शिवराज के जादू के आगे यह लक्ष्य पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। चुनाव की घोषणा से पहले और बाद में आए अधिकांश सर्वेक्षणों में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर बताई गई है। वहीं बसपा, सपा सहित कुछ और पार्टिया करीब दो दर्जन सीटों पर मजबूत नजर आ रही हैं। ऐसे में प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा की संभावना भी जताई जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अधिकांश सर्वे एक सीमित संख्या में मतदाताओं से बातचीत और पिछले चुनावों के आंकड़ों के जोड़-तोड़ पर आधारित हैं। लिहाजा ये सर्वे मतदाताओं की सही नब्ज नहीं पकड़ पा रहे। मझधार में रहने वाले मतदाता काफी निर्णायक साबित होंगे। चुनाव की घोषाणा से पहले ही कांग्रेस आक्रामक रही और उसने मुद्दे तय कर भाजपा को रक्षात्मक होने को विवश किया।
बसपा की मदद से बनेगी सरकार!
मध्यप्रदेश में जिस तरह के हालात दिख रहे हैं, उसको देखते हुए मुंबई, रायपुर, नागपुर के सट्टा बाजार का मानना है कि यहां भी कर्नाटक जैसी स्थिति है। यानी यहां भी त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनेगी और बसपा किंगमेकर बन सकती है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश विधानसभा में 230 सीटे हैं जिसमें बहुमत के लिए 116 सीटें जरूरी हैं। एक बुकी के अनुसार, हम कांग्रेस की रणनीतिक कुशलता पर भरोसा कर रहे हैं और हमारा यह मानना है कि बसपा की मदद से कांग्रेस सरकार बना लेगी। सट्टा बाजार का अपना एक अलग आकलन होता है। दिसंबर 2017 में जब ऐसा लगता था कि गुजरात चुनाव में भाजपा अच्छी जीत हासिल करेगी, सट्टा बाजार के बुकीज ने बिल्कुल सही अनुमान लगाते हुए भाजपा की सीटें पहले से कम होने का अनुमान लगाया था। इसी तरह कर्नाटक चुनाव में भी त्रिशंकु सरकार की बात कही गई थी। अब इस बार बुकियों का कहना है कि बीते डेढ़ दशक से स्थिर सत्ता वाले मध्यप्रदेश में भी परिवर्तन के आसार हैं। भाजपा के 15 साल सत्ता में रहने के बाद अब सत्ता की बारी कांग्रेस की है। लेकिन इसके लिए बसपा की मदद की जरूरत है।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव पर सबकी नजरें टिकी है। सत्ता के इस सेमीफाइनल को लेकर भाजपा व कांग्रेस पूरी ताकत लगा रहे है। राजनीति के जानकार तमाम चुनावी सर्वे व सट्टा बाजार फिलहाल मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी का दावा कर रहे हैं। मुंबई, रायपुर, नागपुर के परंपरागत सट्टा बाजार की गणित के मुताबिक कांग्रेस जहां पहले 140 सीट पर चल रही थी वह 112 पर टिकी हुई है। उधर, भाजपा 101 के करीब पहुंच गई है।
भाजपा को पसंद करने का एक प्रमुख कारण मध्यप्रदेश में पिछले कई वर्ष से शांति, सुरक्षा व समद्धि को माना जा रहा है। हालांकि सीट के अलावा भाव के मामले में भी कांग्रेस बहुत मजबूत स्थिति में है, बाजार के जानकार बताते हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार का भाव 25 पैसा बोल रहा है। जबकि हाल की स्थिति में भाजपा का भाव तक नहीं खुल रहा है।
राजस्थानी सट्टा बाजार में भाजपा मजबूत
मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में राजस्थान के जयपुर, फलौदी, शेखावाटी, बीकानेर और जोधपुर के सट्टा बाजार में भी दांव लग रहा है। राजस्थानी बुकियों के अनुसार, मध्यप्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भाजपा होगी, लेकिन सरकार वहां कांग्रेस की बनेगी। मौजूदा समय में कांग्रेस पार्टी राजस्थानी सटोरियों की फेवरिट बनी हुई है और उस पर 1 के बदले 7 का दांव लगाया गया है, जबकि राज्य में भाजपा की सरकार के बनने का दांव भी खेला गया है। इसमें 1 के बदले 9 का रेट तय हुआ है। बाजार में बसपा पर दांव खेला गया है कि यह पार्टी सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएगी जिस पर 1 के बदले 6 का रेट तया किया गया है। चौंकाने वाली बात ये है कि सट्टा बाजार में भले ही कांग्रेस बड़ी पार्टी बन कर नहीं उभर रही, लेकिन उसके बाद भी मध्यप्रदेश में उसी की सरकार बनेगी। इस पर 1 के बदले 9 और 11 का रेट तय किया गया है।
राजस्थानी सट्टा बाजार के मुताबिक भाजपा को मौजूदा समय में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में रखा गया है, लेकिन कहा गया है कि यह पार्टी सत्ता के अंक का आंकड़ा नहीं छू पाएगी। इसलिए बाजार में सटोरियों के तय रेट के मुताबिक कांग्रेस के बड़ी पार्टी के रूप में आने पर 1 के बदले 7 का दांव खेला जा रहा है। बाजार में सटोरियों ने कांग्रेस को इस बार सबसे ज्यादा सीटें दी हैं, जबकि फेवरिट के साथ दांव लगा है कि अगर कांग्रेस अपने पुराने आंकड़े को छूती है तो 1 के बदले 11 दिए जाएंगे।
कहने को क्रिकेट, बारिश, आंधी (मौसम), चुनाव पर सटोरिए भाव खोलकर पैसा लगाते-खाते हैं और सटोरियों की सट्टा बाजार की खाईवाली रूपी-भविष्यवाणियां भी लगभग सही होती आई हैं। अब भविष्य के गर्त में है कि 29 नवंबर को साइलेंट मतदाता का रुझान किस ओर होगा तथा 11 दिसंबर को परिणाम किसके पक्ष और विपक्ष में आएंगे। देखने वाली बात होगी कि क्या इस बार भी बाजार का रुझान ही सही साबित होकर इतिहास दोहराएगा या मौन बैठा मतदाता बाजार को गच्चा देगा।
सीटों पर भी सट्टा
एक बुकी के अनुसार, सट्टा बाजार के ये आंकड़े सेशन के आंकड़े हैं। यानि अगर कोई व्यक्ति भाजपा के 92 सीट जीतने पर 1 लाख रुपए लगाता है और भाजपा 92 या उससे कम सीटें लाती है तो पैसे लगाने वाले को एक लाख के दो लाख मिलेंगे। लेकिन अगर भाजपा 93 या उसके ऊपर सीटें जीतती है तो वो व्यक्ति हार जाएगा। वहीं अगर कोई व्यक्ति भाजपा के 94 सीट जीतने पर 1 लाख रुपए लगाता है और भाजपा 94 या उससे ज्यादा सीटें लाती है तो पैसे लगानेवाले को एक लाख के दो लाख मिलेंगे। लेकिन अगर भाजपा 93 से कम सीटें जीतती है तो वो व्यक्ति हार जाएगा। ठीक इसी तरह कांग्रेस पर सट्टा लग रहा है।
सट्टा बाजार में भाजपा और कांग्रेस कितनी सीटें जीतेगी इस पर भी सट्टा लग रहा है। बुकीज के आंकड़ों के मुताबिक, भाजपा के 100 सीटें जीतने का भाव 2.50 रुपए यानि एक रुपया लगाने पर 2.50 रुपए मिलेंगे। मिशन 116 हासिल करने का भाव 5.2 रुपए। वहीं कांग्रेस के 100 सीटें जीतने का भाव 3.4 रुपए और और बहुमत हासिल करने का भाव 6.1 रुपए।
पार्टी की जीत के अलावा सट्टा बाजार वीआईपी सीटों पर भी सट्टा ले रहा है। जिन सीटों पर बड़े नाम चुनाव लड़ रहे हैं उन सीटों की हार जीत पर भी बड़ा सट्टा लग रहा है। वीआईपी सीटों की बात करें तो सट्टा बाजार के आंकड़ें दिलचस्प गणित बयां कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बुदनी सीट पर उनकी जीत निश्चित मानी जा रही है। इसलिए बुदनी से इनकी जीत का भाव 0.70 पैसे है। वहीं नेताप्रतिपक्ष अजय सिंह का चुरहट सीट पर जीत का भाव 0.50 पैसे हैं।
भाजपा की जीत पर 3,000 करोड़
28 अक्टूबर को मतदाता यह तय कर देंगे कि प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी। लेकिन भोपाल और इंदौर के बुकी भाजपा की सरकार बनवा रहे हैं। राजधानी के उपनगर के एक बुकी का कहना है कि देशभर में भाजपा की जीत पर करीब 3,000 करोड़ रूपए दांव पर लगाया गया है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जाएगा रकम बढऩे या घटने की संभावना बनी रहेगी। सट्टेबाजी के पहले दौर में, सट्टेबाजों ने भाजपा के लिए 10 पर 11 का भाव लगा रहे हैं। इसका मतलब यह है कि अगर भाजपा को 113 सीटें मिलेंगी तो प्रत्येक 10 रुपए के बदले 11 रुपए मिलेंगे। यानी भाजपा की जीत होने पर पैसा लगाने वाले को 10 के बदले 21 रुपए मिलेंगे। सट्टेबाजों की दूसरी पसंद कांग्रेस है। कांग्रेस की जीत पर दाव लगाने वाले को अगर पार्टी जीतती है तो 10 के बदले 25 रुपए मिलेंगे।
सट्टेबाजों की तीसरी पसंद बसपा है। सट्टा बाजार में उस पर 10 के बदले 160 रुपए मिल सकते हैं। हालांकि भाजपा की जीत की उम्मीद बहुत कम है। सट्टा बाजार में भाजपा ने नाम पर कम रिटर्न का मतलब भोपाल और इंदौर के सट्टेबाज भी मानते हैं कि भाजपा की राज्य में वापसी हो सकती है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सट्टा बुक करने वाले बैरागढ़ के एक बुकी के मुताबिक सट्टा बाजार में अधिकांश लोग कांग्रेस पर दांव खेल रहे हैं, लेकिन सरकार न बनने की बात भी कह रहे हैं। उनके मुताबिक हाल में कई चैनलों ने जो सर्वे दिखाया उसके बाद कांग्रेस के भाव बदल गए हैं। सटोरियों ने कांग्रेस के सबसे ज्यादा सीटें जीतने पर दांव खेला है जबकि बहुत लोगों ने सरकार बनाने पर ही दांव लगाया है। सट्टा बाजार के जानकार मानते हैं कि इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत पर तीन हजार से लेकर पांच हजार करोड़ तक का सट्टा लगने का अनुमान है। इस बार का सट्टा बाजार पूरी तरीके से हाईटेक है। व्हाट्सएप कॉलिंग जैसे सोशल माध्यमों का उपयोग में किया जा रहा है।
कांग्रेस की जीत पर 2,000 करोड़
दुबई, जबलपुर, ग्वालियर आदि शहरों के सट्टा बाजार की मानें तो इस समय कांग्रेस भाजपा पर भारी दिख रही है और कांग्रेस और भाजपा के बीच सीटें मिलने का अंतर काफी ज्यादा नजर नहीं आ रहा है। विश्व में सट्टा बाजार की सबसे प्रमुख केंद्र कहे जाने वाले दुबई सट्टा बाजार में भी दोनों ही दलों के भाव जारी कर दिए हैं और उसके हिसाब से कांग्रेस की 109-114 और भाजपा की 105 से 111 सीट आने का अनुमान है। इसी तरह जबलपुर सट्टा बाजार में भी कांग्रेस को इस समय के माहौल के हिसाब से 105 से 112 सीटों पर जीत सकती है जबकि भाजपा को 99 से 107 सीट मिलने का अनुमान है। ग्वालियर में भी बड़ी संख्या में सटोरिए सक्रिय हैं और उनका अनुमान है कि कांग्रेस 102 से 114 सीटे लेकर राज्य में सरकार बनाने वाली है।
इसी तरह सतना में भी सट्टा बाजार भी मौजूदा माहौल को देखेते हुए कांग्रेस को इस बार 111 से 113 सीटें मिलने का अनुमान लगा रहा हैं। हालांकि सट्टा बाजार का यह आंकलन टिकट वितरण के तुरंत बाद का है। जैसे-जैसे मतदान का समय नजदीक आएगा सट्टा बाजार में कई तरह के उतार-चढ़ाव आएंगे। कई देशी-विदेशी बुकी इस बार कांग्रेस की जीत तय मान रहे हैं। फिर भी लोगों को विश्वास नहीं है कि कांग्रेस सत्ता में वापसी कर पाएगी। यही कारण है कि जहां भाजपा की जीत पर अभी तक 3,000 करोड़ रूपए लगे हैं वहीं कांग्रेस की जीत पर 2,000 करोड़ रूपए का दांव लगा है।
इस इस बात का संकेत है कि आज भी लोगों को कांग्रेस पर विश्वास नहीं है। राजनीतिक विश£ेषकों का कहना है कि प्रदेश में 15 साल तक कांग्रेस का संगठन इस कदर निष्क्रिय रहा है कि जनता को विश्वास ही नहीं हो पा रहा है कि वह सत्ता में वापसी की स्थिति में है।
त्रिशंकु विधानसभा पर 5,000 करोड़ का सट्टा
सट्टा बाजार में जहां एक तरफ भाजपा की जीत तो दूसरी तरफ कांग्रेस की जीत का दावा किया जा रहा है, वहीं मुंबई, रायपुर, नागपुर के बुकी त्रिशंकु सरकार की बात कह रहे हैं। हद तो यह है कि सबसे अधिक 5,000 करोड़ का सट्टा त्रिशंकु विधानसभा पर लगने का अनुमान है। जानकारों की मानें तो मुंबई, रायपुर, नागपुर का सट्टा बाजार अपने सटीक आकलन अनुमानों के लिए देशभर में चर्चाओं में रहता है।
मुंबई, रायपुर, नागपुर का सट्टा बाजार का आकलन है कि प्रदेश में चौथी बार सरकार बनाने के अभियान में जुटी भाजपा के सामने तीन बड़ी चुनौतियां- किसान संकट, एससी/एसटी एक्ट असंतोष और सत्ता विरोधी फैक्टर है। भाजपा को इस विधानसभा चुनाव में इन तीन बड़े मुद्दों से पार पाना बड़ी चुनौती होगी। वहीं कांग्रेस की चुनौती पार्टी में गुटबाजी खत्म कर इन मुद्दों को भुना कर इन तीनों राज्य में सत्ता पाने की होगी। गौरतलब है कि किसान भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक रहे हैं। लेकिन हाल के वर्षों में कम होती आय के चलते सरकार को किसानों के गुस्से का भी सामना करना पड़़ा है। आय में कमी के चलते हाल के वर्षों में कई बार किसान आंदोलन हुए हैं। प्रदेश के मंदसौर में किसान अंदोलन के दौरान कई लोगों की मौत भी हो गई थी। वहीं राजस्थान में भी कई बार किसान आंदोलन कर चुके हैं।
एससी-एसटी एक्ट पर विवाद और इस मुद्दे पर भाजपा नेताओं के अलग-अलग रुख के चलते जनजातीय और अगड़ी जातियों के वोटरों को एकजुट रखना मुश्किल हो रहा है। सरकार की ओर से मुद्दे को हल करने के तरीके से एससी/एसटी मतदाता खुश नहीं हैं। वहीं भाजपा के अगड़ी जाति के मूल वोटर भी पार्टी से नाराज हैं। किसानों के प्रदर्शन, एससी/एसटी एक्ट के साथ इन तीनों राज्यों में भाजपा के लिए सत्ता विरोधी फैक्टर भी काफी अहम होगी। क्योंकि भाजपा इन राज्यों में सत्तारूढ़ है। ग्वालियर, मंदसौर, उज्जैन मध्यप्रदेश के वे तीन शहर हैं, जहां से एससी-एसटी एक्ट, किसान आंदोलन और सवर्ण आंदोलन ने जन्म लिया और पूरे प्रदेश में इनकी आंच पहुंच चुकी है। इस आंच में चौथी पारी की आस झुलस न जाए इसके लिए भाजपा पूरी तैयारी के साथ जुट गई है। भाजपा में बेहतर प्रबंधन के लिए चुनाव वाले राज्यों में दूसरे राज्यों के नेता प्रदेश और जिला संगठन मंत्रियों के साथ मिलकर काम कर रही है। बता दें कि स्थानीय नेताओं को नाराजगी उनके दखल पर नाराजगी थी। इसको देखते हुए शीर्ष नेतृत्व ने यह कदम उठाया गया है।
दांव पर भाजपा की प्रतिष्ठा
पांच राज्यों में से तीन बड़े हिन्दी शासित राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव ने देश का सियासी पारा बढ़ा रखा है, जिन पांच राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से तीन राज्यों में भाजपा की सरकार है और कांग्रेस यहां वापसी के लिये हाथ-पैर मार रही है। इन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के लगातार दौरों के चलते यह तीन राज्य खूब चुनावी सुर्खिंया बटोर रहे हैं। इसमें मध्य प्रदेश की 230, राजस्थान की 200 और छत्तीसगढ़ की 90 सीटें शामिल हैं। इन तीन राज्यों के चुनाव में राजस्थान ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां भाजपा की सत्ता में वापसी सर्वाधिक मुश्किल मानी जा रही है। यहां 1993 से अदल-बदलकर सत्ता परिवर्तन की परंपरा रही है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर भाजपा आलाकमान ही नहीं आश्वस्त नजर आ रहा है, तमाम मीडिया सर्वे भी उसी के पक्ष में आ रहे हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को बहुमत नहीं भी मिला तो वह सबसे बड़ी पार्टी बन कर जरूर उभरती दिख रही है।
तीन राज्यों के विधान सभा चुनावों को अगले वर्ष होने वाले आम चुनाव का सेमीफाइनल भी माना जा रहा है। मोदी को यही से घेरने की रणनीति बनाई जा रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष में जो भी यहां जीतेगा, वह अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के मैदान में सिकंदर की तरह उतरेगा। चुनाव भले ही तीन राज्यों का हो, लेकिन यहां कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी के राज्य सरकारों के कामकाज की जगह मोदी और उनकी सरकार की चर्चा सबसे अधिक कर रहे है। भाजपा लगातार 15 सालों से मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज है। कांग्रेस ने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा आगे कर भाजपा को चुनौती पेश की है। ऐसे में दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच जुबानी जंग भी तेज होती जा ही है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्य प्रदेश में अपने चुनावी दौरे के दौरान जगह-जगह जनसभाओं में राफेल डील को भ्रष्टाचार का खुला मामला बता रहे हैं। पीएम मोदी और उद्योगपति अनिल अंबानी के बीच सांठगांठ का आरोप लगा रहे हैं। सीबीआई विवाद को भी हवा दी जा रही है। राफेल पर तो राहुल गांधी यहां तक कहते फिर रहे हैं कि अगर राफेल विवाद मामले की जांच होती है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जेल जाएंगे।
मप्र कांग्रेस अभी एक नहीं
राहुल के ऊपर भाजपा वाले तो हमलावर हैं ही उन्हें अपना घर भी संभालना पड़ रहा है। कांग्रेस की मध्य प्रदेश में वापसी की सुगबुगाहट ने कांग्रेस के दिग्गज नेताओं दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ जैसे नेताओं के बीच खाई पैदा कर दी है। हद तो तब हो गई जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के दौरान मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच तीखी कहासुनी हो गई। शुरुआती बहस कुछ ही देर में तीखी नोक-झोंक में बदल गई। दोनों में काफी समय तक तू-तू-मैं-मैं भी चलता रहा। दोनों के बीच जब बात नहीं बनी तो विवाद सुलझाने के लिए राहुल गांधी को तीन सदस्यीय समिति बनानी पड़ी। सिंधिया और दिग्गी राज के बीच में छिड़ी जंग की तह में जाया जाए तो पता चलता है कि सिंधिया स्वयं सीएम बनने का सपना पाले हैं, इस लिये वह अपनी पसंद के अधिक से अधिक नेताओं को टिकट दिलाना चाहते थे, जबकि दिग्गी राज मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह पर हाथ रखे हुए हैं। वह उन्हें सीएम बनाने का सपना पाले हुए हैं।
उधर, मप्र में 15 साल से सत्ता का वनवास काट रही कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोर्चा संभाल लिया है। इसके लिए उन्होंने मंदिरों केे साथ ही जनता के दर पर दस्तक देकर जीत का आशीर्वाद मांगा है। उन्हें जीत का आशीर्वाद मिलेगा की नहीं यह तो 11 दिसंबर को ही सामने आएगा, लेकिन उनकी सक्रियता ने भाजपा के खेमें में हलचल पैदा कर दी है।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में साल 2003 में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। उसके बाद से ही कांग्रेस सत्ता का वनवास झेल रही है। जबकि मध्यप्रदेश में सरकार बदलने की परंपरा देखी जाती रही है। कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस सत्ता में रही है। लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस के दिग्विजय-काल के बाद से हालात बदल गए। पहले दिग्विजय सिंह ने दस साल राज किया तो अब शिवराज सिंह पंद्रह साल से सत्ता पर हैं। दिग्विजय-दौर के दस साल के बाद जनता ने शिवराज को हर पांच साल बाद पांच साल का एक्स्ट्रा बोनस देने का काम किया जिससे कांग्रेस का वनवास सरकते-सरकते 15 साल तक पहुंच गया।
लेकिन राहुल के मध्यप्रदेश के लगातार दौरों ने इस बार राजनीति के समीकरणों को बदलने का काम किया है। राहुल के दौरे से पहले तक भाजपा विधानसभा चुनाव को साल 2013 के एक्शन-रीप्ले की तरह ही देख रही थी क्योंकि भाजपा के सामने कांग्रेस अपनी अंदरूनी गुटबाजी के चलते कमजोर नजर आ रही थी। लेकिन राहुल के दौरे से मध्यप्रदेश की सियासत में गर्मी आ गई है। राहुल की वजह से 15 साल से सोई कांग्रेस की उम्मीद भी जगी है। राहुल को सुनने के लिए उमड़ी भीड़ में कांग्रेस अब सत्ता विरोधी लहर देखने लगी है। रोड शो और रैलियों में उमड़ी भीड़ से उत्साहित राहुल ने मध्यप्रदेश के किसानों से वादा किया है कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनती है तो सिर्फ 10 दिनों में किसानों का कर्जा माफ किया जाएगा और ऐसा न करने वाले सीएम को ग्यारहवें दिन बदल दिया जाएगा। राहुल का यह अंदाज उन किसानों में उम्मीद जगा सकता है जिन्होंने मंदसौर किसान आंदोलन देखा। अब कांग्रेस के लिए किसान आंदोलन की फसल काटने का समय है। वैसे भी मंदसौर के निकाय चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत से प्रदेश की जनता का मिजाज समझा जा सकता है। तभी राहुल को मध्यप्रदेश में एंटी इंकमबेंसी दिखाई दे रही है और वो कह रहे हैं कि इस बार मध्यप्रदेश में वोट स्विंग हो सकता है जिसका फायदा कांग्रेस को ही मिलेगा।
हालांकि साल 2013 में मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट प्रतिशत का अंतर काफी बड़ा था। भाजपा को जहां 44.88 प्रतिशत वोट मिले थे तो कांग्रेस को 36.38 प्रतिशत वोट ही मिले थे। ऐसे में राहुल गांधी का आशावादी नजरिया संदेह पैदा करता है। लेकिन, राहुल के दौरे से कांग्रेस अब भाजपा के मुकाबले में जरूर खड़ी हो गई है। पहले मंदसौर किसान आंदोलन ने शिवराज सरकार की नींद उड़ाने का काम किया तो अब राहुल के दौरों ने भाजपा के लिए चिंता की लकीरें खींच गया है।