ST-SC की आरक्षित 39 सीटों के परिणामों से निकलेगी सत्ता की राह, गठबंधन के असर पर निगाहें

ST-SC की आरक्षित 39 सीटों के परिणामों से निकलेगी सत्ता की राह, गठबंधन के असर पर निगाहें

रायपुर
 इस विधानसभा चुनाव में एससी-एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 39 सीटें नई सरकार का खाका खिंचने में अपनी अहम भूमिका निभाएंगी। इन सीटों पर बसपा-जनता कांग्रेस के गठबंधन का भी बड़ा असर सामने आ सकता है। यही वजह है कि भाजपा-कांग्रेस दोनों की निगाह इन आरक्षित सीटों पर टिकी हुई है। सबसे अहम बात यह है कि इस विधानसभा चुनाव में आरक्षित छह सीटों में ही अधिक मतदान हुए है। बाकी 33 विधानसभा सीटों पर पिछले साल की तुलना में जनता ने कम वोट डाले हैं। ऐसे में यहां के नतीजे काफी चौंकाने वाले हो सकते हैं।

वहीं दूसरा पहलू यह भी है कि एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 29 सीटों पर पिछली बार कांग्रेस का दबदबा था। यहां से कांग्रेस के पास 18 और भाजपा के पास 11 सीटें थी। जबकि एससी वर्ग के लिए आरक्षित 10 में से 9 सीट पर एकतरफा भाजपा का कब्जा था। ऐसे में कम हुए मतदान का प्रतिशत किसे फायदा पहुंचाएगा यह 11 दिसम्बर को मतगणना के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। एक बात तो तय है कि आदिवासी वोट बैंक के रास्ते ही छत्तीसगढ़ की सियासी तस्वीर स्पष्ट हो पाएगी।

इन सीटों पर अधिक मतदान
एससी वर्ग के लिए 10 सीट आरक्षित है। इन सभी सीटों पर पिछले साल की तुलना में कम मतदान हुआ हैं। वहीं एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 29 में से छह सीटों पर अधिक मतदान हुए है। इनमें भरतपुर-सोनहत, पाली-तानाखार, बिन्द्रानवांगढ़, सिहावा, बीजापुर और कोंटा विधानसभा की सीट शामिल हैं। अधिक मतदान वाली छह सीटों में तीन भाजपा और तीन कांग्रेस के खाते में हैं।

इन मुद्दों के कारण खास नजर
भू -राजस्व संहित संशोधन कानून की वजह से वनाचंल के निवासी सरकार से खासे नाराज हो गए थे। कांग्रेस और आदिवासी समाज की दबाव की वजह से सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा था। अब यह देखना होगा कि सरकार ने अपना फैसला बदलकर आदिवासी समाज को कितना साधा है। हालांकि बस्तर में कांग्रेस विधायकों की संख्या अधिक होने की वजह से विधायकों के प्रति नाराजगी भी सामने आईं हैं।

पेसा कानून और पांचवीं अनुसूची को पूरी तरह लागू करने की मांग को लेकर आदिवासी वर्ग सरकार से नाराज है। सरगुजा में पत्थलगढ़ी का आंदोलन इसका बड़ा उदाहरण है। इसकी आग मध्य प्रदेश तक भी पहुंची थी। इस परेशानी से निपटने के लिए संघ को आगे आना पड़ा था। यहां बड़े ही चालाकी से आदिवासी समाज को दो भागों में बांटने का काम किया गया था। इसका सीधा असर चुनाव में पड़ेगा।

चुनाव के पहले आदिवासी समाज दो भाग में बंटा नजर आया। आदिवासी समाज के एक धड़ा ने चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान करते हुए कुछ सीटों पर चुनाव भी लड़ा है। वहीं कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम को अपने पल्ले में लेकर आदिवासी समाज को साधने का काम किया है। इसके बद भाजपा से बागी हुए पूर्व सांसद सोहन पोटाई व अन्य नेता भी थोड़े शांत नजर आ रहे हैं।

भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी ने कहा, आरक्षित सीटों पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबला की स्थिति बनी है। इससे भाजपा को फायदा होगा। हम चौथी बार प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाएंगे।

आदिवासी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अमरजीत भगत ने कहा, इस बार हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की वजह से कांग्रेस को फायदा होगा। इस बार कुल आरक्षित सीटों में से 30 सीटों पर चुनाव जीत रहे हैं।

फैक्ट फाइल
90- कुल विधानसभा सीट
51- सीट सामान्य वर्ग के लिए
29- सीट एसटी वर्ग के लिए
10- सीट एससी वर्ग के लिए

इन सीटों पर अधिक मतदान (प्रतिशत में)
विधानसभा क्षेत्र 2013 2018
भरतपुर-सोनहट 82.08 84.00
पाली-तानाखार 80.41 81.88
बिंद्रानवागढ़ 83.66 85.74
सिहावा 81.92 82.86
बीजापुर 45.01 48.49
कोंटा 48.36 55.30