कुंभ 2019: ब्रह्मा ने किया था यज्ञ, रामायण में भी जिक्र, जानें प्रयाग का इतिहास

कुंभ 2019: ब्रह्मा ने किया था यज्ञ, रामायण में भी जिक्र, जानें प्रयाग का इतिहास

 
नई दिल्ली 

प्रयागराज की पावन धरती पर कुंभ का आयोजन हो रहा है, जिसका धार्मिक आधार पर काफी महत्व है. जिस तरह कुंभ का इतिहास भी काफी पुराना है, वैसे ही प्रयागराज का जिक्र भी रामायण-महाभारत काल के पहले से मिलता है. आज हम आपको इस ऐतिहासिक धरा के पौराणिक इतिहास के बारे में बता रहे हैं ...

ब्रह्मा ने किया था यज्ञ

अगर सृष्टि की रचना के वक्त की बात करें तो भी प्रयागराज का जिक्र मिलता है. परंपराओं के अनुसार, ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है. कहा जाता है कि उन्होंने ही अपने मन से मनु की उत्पत्ति की ओर फिर शतरूपा को बनाया, इसके बाद यह सृष्टि बनी. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, ब्रह्मा ने इसकी रचना से पहले यज्ञ करने के लिए धरती पर प्रयाग को चुना और इसे सभी तीर्थों में सबसे ऊपर, यानी तीर्थराज बताया. इसलिए इसे तीर्थराज भी कहा जाता है और कहीं पर प्रयागराज का नाम इला-वास होने का जिक्र भी है.

रामायण में भी प्रयाग का जिक्र

ब्रह्मा जी के यहां यज्ञ किए जाने की वजह से इसका नाम 'प्रयाग' पड़ा. उसके बाद त्रेतायुग के वर्णन में बताया जाता है कि इस संगम नगरी पर ही त्रेतायुग में भारद्वाज ऋषि का आश्रम था. पौराणिक कहानियों के अनुसार, भगवान राम ने वनवास के वक्त वन जाते समय और लंका-विजय के बाद वापस लौटते समय इनके आश्रम में गए थे. जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का सन्धिकाल था. वहीं तुलसीदास के रामचरित मानस और बाल्मिकी की रामायण में इसका जिक्र है. कहा जाता है कि मत्स्य पुराण के कई अध्याय में प्रयाग का उल्लेख किया गया है.

महाभारत में प्रयाग

कहा जाता है कि महाभारत में कल्पवास का महत्व बताया गया है और मार्कंडेय धर्मराज युधिष्ठिर के एक प्रसंग में प्रयाग के बारे में कहा गया है. साथ ही महाभारत में प्रयाग के लिए कहा गया है कि प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है. साथ ही प्रयाग का वर्णन तो स्कंदपुराण, मत्स्यपुराण, पदमपुराण, ब्रह्मपुराण, विष्णुपुराण और नरसिंहपुराण समेत दूसरे पुराणों में भी है.

गौतम बुद्ध ने की थी तीन यात्राएं

600 ईशा पूर्व में वर्तमान प्रयागराज जिला के भागों को आवृत्त करता हुआ एक राज्य था और इसे 'कौशाम्बी' में राजधानी के साथ 'वत्स' कहा जाता था और जिसके अवशेष आज भी प्रयागराज के पश्चिम में स्थित है. कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने अपनी तीन यात्रायें करके इस शहर को गौरव प्रदान किया. इस क्षेत्र के मौर्य साम्राज्य के अधीन आने के पश्चात् कौशाम्बी को अशोक के प्रांतों में से एक का मुख्यालय बनाया गया था.

शुंग और कुषाण के कई सबूत

प्रयागराज के ही एक स्थान भीटा से मौर्य साम्राज्य की पुरातन वस्तुएं और अवेशष प्राप्त हुए थे. मौर्य के बाद शुंगों ने यहां शासन किया था और इसका पता शुंगकालीन कलात्मक वस्तुओं से चलता है. शुंगों के बाद कुषाण सत्ता में आए और कनिष्क की एक मुहर और एक अद्वितीय मूर्ति लेखन कौशाम्बी में पाई गई है, जो उसके राज्य के दूसरे साल के वक्त की है.

हृवेनसांग ने भी किया है वर्णन

कौशाम्बी, भीटा एवं झूंसी में गुप्त काल की वस्तुयें भी पायी गयी हैं. अशोक स्तम्भ के निकाय पर समुद्रगुप्त की प्रशस्ति की पंक्तियां खुदी हुई हैं जब कि झूंसी में वहां उसके समुद्र कूप हैं. बता दें कि हृवेनसांग ने 7वी शताब्दी में प्रयागराज की यात्रा की थी और प्रयाग को मूर्तिपूजकों का एक महान शहर के रूप में वर्णित किया था.