ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के झगड़े की इनसाइड स्टोरी

भोपाल
लंबे इंतजार के बाद सत्ता सामने दिख रही है तो सत्ता के दावेदारों में उठा-पटक लाजिमी है. दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच लड़ाई नई नहीं है, लेकिन जिस तरह टिकट बंटवारे के ठीक पहले ये लड़ाई सामने आ गई उससे आम लोगों के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी सन्न रहे गए. लेकिन आखिर उस रात हुआ क्या था? आखिर ऐसा क्या हो गया, जो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी राजा और महाराज को संभाल नहीं पाए?
दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी सूत्रों की मानें, तो विवाद मुरैना जिले की जौरा सीट से शुरू हुआ और इंदौर व उज्जैन की कई सीटों तक फैल गया.
दरअसल, जौरा सीट से ज्योतिरादित्य बनवारी लाल शर्मा को टिकट दिलाना चाहते थे. लेकिन ठीक उसी समय दिग्विजय सिंह ने दखल देते हुए दो बार लगातार चुनाव हारने वालों को टिकट नहीं देने का फॉर्मूला सूझा दिया. इस सुझाव ने बनवारी लाल के टिकट पर ग्रहण लगा दिया, लेकिन दिग्विजय के इस सुझाव के बाद ज्योतिरादित्य ने उन्हें उनके (ज्योतिरादित्य के) इलाके की सीटों पर हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दे डाली. बदले में दिग्विजय सिंह भी थोड़ा तल्ख हो गए. दिग्विजय सिंह ने कहा कि वे सिर्फ एक सीट के लिए सुझाव नहीं दे रहे हैं. वे तो पार्टी अध्यक्ष को अपनी राय से अवगत करा रहे हैं.
इसके बाद ज्योतिरादित्य ने चुनाव में दिग्विजय सिंह की भूमिका पर ही सवाल खड़ा कर दिया. यानी बात आ गई दिग्विजय की निष्ठा पर. इसके बाद मामला इतना बढ़ गया कि दिग्विजय ने यहां तक कह डाला कि मुझे पार्टी से बाहर करा दीजिए. पूरे मामले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पहले तो बीच-बचाव कर मामला शांत कराने की कोशिश की, लेकिन जब मामला संभलता नहीं दिखा, तो बैठक टालते हुए तीन सदस्यीय टीम का गठन कर दिया. हालांकि दिग्विजय सिंह किसी तरह के विवाद से इनकार कर रहे हैं, लेकिन इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि आखिर बैठक में हंगामा हुआ क्यों और बैठक टली क्यों?
इस घटना के बाद एक सोच कहती है कि चुनावी मौके पर ज्यादा घमासान उसी खेमे में होती है, जिसके हाथ सत्ता आने की संभावना होती है. इस सोच के साथ तो मध्य प्रदेश कांग्रेस खुश हो सकती है, लेकिन दूसरी सोच भी कम मजबूत नहीं है कि अगर घर में ही एकजुट नहीं होंगे, तो विरोधियों से क्या निपटेंगे? वैसे भी इन दिनों कांग्रेस की दहलीज पर आकर फिसल जाने की आदत-सी हो गई है.